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मांस का सेवन देता है कई बीमारियों को आमंत्रण

भारतीयों को मुफ्त की चीजे पसंद हंै। और वे चिकन पसंद करते हैं। पिछले 50 वर्षों में पोल्ट्री का प्रति व्यक्ति उपभोग चार गुणा बढ़ गया है। आइए मैं आपको आपके चिकन के साथ मुफ्त में आने वाली दो चीजों की जानकारी देती हूं। कैम्पीलोबैक्टर नामक एक बैक्टीरियम और हमारे स्नानघरों को साफ करने के काम आने वाला क्लोरीन।

कैम्पीलोबैक्टर संदूषित मांस उत्पादों विशेष रूप से पोल्ट्री से आता है। पक्षी प्रजातियां कैम्पीलोबैक्टर के लिए सबसे आम मेजबान है संभवत: उनके शरीर के उच्चतर तामपान के चलते। संदूषण फार्म तथा पोल्ट्री वध संयंत्रों दोनों में होता है। फार्म में रूटीन प्रक्रियाएं जैसे की भोजन, हैण्डलिंग और परिवहन के व्यवहार संक्रमित पक्षियों को वध हेतु लाते है। वध संयंत्रों में पंख उतारना, अंतडिय़ां निकालना और मृत शरीरों को ठंडा करने वाली मशीनों को पोल्ट्री के मृत शरीरों को आपस में संदूषित करते हुए पाया गया है। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि गर्म महीनों के दौरान पोल्ट्री की अधिकतम संख्या पर कैम्पीलोबैक्टर पाया जाता है। इन माहों के दौरान, परीक्षण किए गए 87 से 97 प्रतिशत नमूने बैक्टीरिया हेतु पॉजिटिव पाए गए थे। फ्रीजिंग से संदूषित भोजनों पर से पैथोजेन समाप्त नहीं होते। ये 4 डिग्री सेल्सियस पर भी बने रहते है।

कैम्पीलोबैक्टर का वर्णन पहली बार 1880 में थियोडर एशेरिश द्वारा किया गया था। इसे काफी समय से मवेशियों में डायरिया और मवेशियों तथा भेड़ों में सेप्टिक गर्भपात का कारण माना जाता है। केवल पिछले 25 वर्षों में ही कैम्पीलोबैक्टर को मानव की बीमारी का एक महत्वपूर्ण कारण माना गया है। सेंटर फॉर डिजीस कंट्रोल एण्ड प्रिवेंशन ने इसे बैक्टीरया से होने वाली डायरिया की बीमारी का एक प्रमुख कारण माना है जिसके हर साल हजारों मामले सामने आते है और इसमें से 50 से 70 प्रतिशत का कारण पोल्ट्री तथा पोल्ट्री उत्पादों का उपभोग होता है। बच्चों और युवाओं को यह रोग होने की संभावना अधिक होती है और इम्यूनोस्प्रेशन वाले लोगों में इससे लंबी या अत्यधिक गंभीर बीमारी के मामले हो सकते है। इससे कई हजार लोगों की मौत होती है। 500 जीव जितनी कम मात्रा की खुराक से भी बीमार होने के मामले सूचित किए गए है।

कैम्पीलोबैक्टर के सबसे आम क्लीनिकल लक्षण बुखार, पेट मे दर्द और डायरिया है जो सी.जेजूनी से संदूषित भोजन या पानी के सेवन के 2 से 5 दिन के भीतर होता है। अब आमतौर पर एरिथ्रोमाइसिन तथा फ्लूरोकिनोलोस जैसे एंटीबायटिक की सिफारिश की जाती है पर अब बैक्टीरिया दोनों के साथ प्रतिरोधिता विकसित कर चुका है। 1000 में से 1 मामले में संक्रमण के पश्चात गिलैन-बारे सिन्ड्रोम होता है, जो बुखार, दर्द तथा कमजोरी के साथ कमजोर कर देने वाली सूजन है तथा आगे जाकर लकवा तक कर सकती है। कैम्पीलोबैक्टर संक्रमणों से अन्य संभावित ऑटोइम्यून रोगों में मिलर फिशर सिन्ड्रोम और रीटर्स सिन्ड्रोम या रिएक्टिव आर्थराइटिस है।

उपभोक्ता स्तर पर, कच्चे चिकन के रस की 1 बूंद भी गलती से ले लिए जाने पर वह आसानी से एक संक्रमित खुराक बन सकती है। संक्रमण कच्चे चिकन के मृत शरीर की अनुचित हैण्डलिंग के दौरान, अपर्याप्त रूप से पका हुआ चिकन खाने से और कच्चे चिकन को तैयार करने के लिए उपयोग किए गए चाकुओं या कटिंग बोर्ड के संपर्क में आने वाले अन्य भोजना के साथ आपस में संदूषण के माध्यम से हो सकता है।

पक्षियों को मारने से पूर्व उनमें से कैम्पीलोबैक्टर संक्रमण को हटा पाना व्यवहार्य नहीं है। यह संदूषित पेय जल, हैण्डलर के हाथों, मल के माध्यम से फैलता है जो भारत की समूची पोल्ट्री को संदूषित कर देता है। चिकन को पिंजरों में ठूस कर वध किए जाने हेतु भेजा जाता है। कैम्पीलोबैक्टर में परिवहन के दौरान वृद्धि होते हुए देखी गई है। यह ज्ञात है कि तनाव से जीवित पशु की प्रतिरोधिता कम हो जाती है और आंतों के बैक्टीरिया के फैलाव में वृद्धि होती है। पोल्ट्री के मृत शरीरों में कैम्पीलोबैक्टर संदूषण के संभाव्य स्रोतों में वध सुविधा तक परिवहन के दौरान पंख तथा खाल का मल से संदूषण, नली से मल तत्वों का रिसाव होना, आंतों का फटना, और संदूषित उपकरण, पानी या अन्य मृत शरीरों से संपर्क होना है। पक्षियों के वध किए जाने के स्थान पर पहुंचने तक कैम्पीलोबैक्टर संक्रमण दिन की शुरूआत में होने वाले संक्रमणों से 10 गुणा बढ़ चुके होते है।

पक्षियों को उतारा, जंजीर से बांधा, मारा, जलाया जाता है, उनके पंख उतारे जाते हैं, आंतडिय़ां निकाली जाती हैं और उन्हें धोया जाता है। डाटा में जलाए जाने तथा पंख उतारे जाने के दौरान मृत शरीरों पर बैक्टीरिया, इशचेरीचिया कोली, या कैम्पीलोबैक्टर में कोई कमी नहीं देखी गई थी।

तो पोल्ट्री उद्योग एक आखिरी उपाय के रूप में पिछले 40 वर्षों से रक्त, मल और बैक्टीरियल संदूषण को हटाने के लिए मृत शरीरों को क्लोरीनयुक्त पानी में डुबो रहा है। फिर मृत शरीरों को तेजी से ठंडा किया जाना होता है ताकि बैक्टीरिया की वृद्धि को रोका जा सके। अत: मृत पक्षियों को पानी ठंडा करने वाले सामान में डाला जाता है। 20 से 50 पीपीएम क्लोरीन और क्लोरीन डाइऑक्साइड को पानी ठंडा करने वाले सामानों में मिलाया जाता है और शरीरों को 5-15 मिनट के लिए इसमें डुबोया जाता है। क्लोरीन का उपयोग सीधे चिकन पर नहीं किया जाता बल्कि और सारी मशीनरी पर इसका उपयोग होता है जो पक्षी को काटने तथा साफ करने के लिए उपयोग में लाई जाती है।
क्लोरीन के कई प्रकार के उपयोग है। इसका उपयोग पानी को विसंक्रमित करने के लिए किया जाता है और यह सीवेज तथा औद्योगिक कचरे के लिए स्वच्छता प्रक्रिया का एक भाग है। इसका उपयोग उत्पादों को साफ करने, घरेलू ब्लीच, सॉल्वेंट, कीटनाशकों, पॉलीमर, सिंथेटिक रबड़, और रेफ्रीजरेन्टस में किया जाता है। क्लोरीन ब्लीच का उपयोग शौचालय के बाउल को विसंक्रमित करने के लिए किया जाता है।

क्लोरीन का उपयोग पोल्ट्री में स्पॉइलेज बैक्टीरिया तथा कैम्पीलोबैक्टर को रोकने, पैथोजन के फैलाव को नियंत्रित करने, और कार्य करने की सतह तथा उपकरणों पर सूक्षमजीवों के जमावड़े को रोकने के लिए किया जाता है। क्या इसमें सफलता मिलती है? वास्तव में नहीं। अधिकांश अध्ययन दर्शाते हंै कि वाणिज्यिक पोल्ट्रियों में क्लोरीन मृत शरीरों के संदूषण में थोड़ी ही कमी दर्शाते है। सैन्डर्स और ब्लैक जैसे अनुसंधानकर्ता कहते हैं कि मृत शरीर की अंतिम धुलाई में क्लोरीन का बहुत ही कम प्रभाव होता है जब तक कि कम से कम 40 एमजी प्रति लीटर का उपयोग न किया जाएं। बाद में 50 एमजी प्रति लीटर के क्लोरीन वाले ठंडे पानी में धोए गए मृत शरीर में सालमोनीला बैक्टीरिया के अनुपात कम नहीं होते। इन अध्ययनों ने पर्याप्त संपर्क समय के महत्व पर बल दिया था, जो आमतौर पर धुलाई प्रचालनों में नहीं किया जाता है।

Updated : 27 Oct 2016 12:00 AM GMT
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