Home > Archived > पशु भी अपना तनाव दर्शा सकते हैं

पशु भी अपना तनाव दर्शा सकते हैं

ऐसा क्यों है कि लोग कुछ पशुओं को खाते हैं तथा अन्यों को पालतू के रूप में रखते है। बहुधा इसलिए कि वे सोचते है कि वे जिन पशुओं को खाते हैं वे सचेतन नहीं हंै, उन्हें डर, भय या तनाव नहीं होता। परंतु सभी पशु आपके जैसा ही महसूस करते हंै और वे भी अपना तनाव दर्शा सकते हैं।

उदाहरण के लिए, जिन फार्मों में मवेशियों को वध हेतु पाला जाता है, गाय अपने बच्चे को एक एकांत स्थान पर जन्म देने का प्रयास करती है और यदि वह मानव को वहां जाते हुए देखती है तो अपने बछड़े की ओर जाने का दिखावा करते हुए वास्तव में उस व्यक्ति को कहीं और ले जाने का प्रयास करती है। ऐसा लगता है कि जैसे उसे पता हो कि वह एक संकेन्द्रण शिविर में है और वह अपने बच्चे को बच निकलने के लिए एक मौका देना चाहती है।

कुछ देशों में (अब यह भारत और ईयू सहित विश्व के अधिकांश भागों में प्रतिबंधित है) गर्भवती सुअरों को उनकी समूची 16 सप्ताह की गर्भावस्था अवधि के लिए गर्भाधान क्रेटों में रखा जाता है। गर्भाधान क्रेट धातु का कोई क्रेट या पिंजरा होता है, जिसमें सिर्फ लकड़ी के तख्तों वाला फर्श होता है जो इतना संकरा होता है कि सुअर मुड़ भी नहीं सकती और उसे खड़े होने तथा लेटने में काफी कठिनाई होती है। सुअर इस अत्यधिक तनाव पर कैसी प्रतिक्रिया दिखाती है? वे क्लीनिकल डिप्रेशन का शिकार हो जाती है, चबाने का दिखावा करते हुए और छड़ों को काटते हुए गंभीर खीज तथा तनाव को दर्शाती है।

घोड़ों को खाने तथा चलने के लिए बनाया गया है और उनमें सामाजिक संबंध होते हैं, और जब इन्हें तोड़ा जाता है तो परिणाम असामान्य व्यवहार होता है। वे अपने सिरों को इधर-उधर हिलाते हैं और अपने वजन को एक से दूसरे पैर पर ले जाते रहते है। पिजड़े को काटना एक असामान्य, मजबूरीवश किया जाने वाला व्यवहार है, जिसमें घोड़ा घुड़साल के दरवाजे या चाहरदीवारी को अपने आगे के दांतों से पकड़ कर, अपनी गर्दन उठाते हुए वस्तु की ओर खींचते हुए इसे हवा में लहराता है।

जब मवेशियों को गहन फैक्ट्रियों में सीमित करके रखा जाता है, वे अपनी जीभ को मुंह के भीतर या बाहर मोड़ते या खोलते हुए, आंशिक रूप से इसे निगल कर तथा हवा को गटक कर अपना तनाव दर्शाते हंै। वस्तुओं को चाटना तथा छड़ों को काटना आम बात है।

सफेद मांस के लिए पाले गए बछड़े को आमतौर पर जन्म से लेकर लगभग चार माह की आयु में वध किए जाने तक एक दूध जैसा भोजन दिया जाता है। बछड़ों को घास जैसे किसी ठोस भोजन को खाने से रोका जाता है ताकि मांस का रंग फीका बना रहे। इस अप्राकृतिक खुराक से कुछ ही दिनों में बछड़े अत्यधिक तनाव में चले जाते है। वे हर दिन घंटों खाली स्थान में चरने जैसा दिखावा करते रहते हैं। वे अपने मुंह से जीभ बाहर निकालते है और उसे साइड की ओर घुमाते हैं तो ऐसा लगता है कि मवेशी घास को चरते हुए उसे अपने मुंह से खींच रहे हैं परंतु वास्तव में बछड़े इसे केवल हवा में ही करते हैं, जिसमें जीभ किसी भौतिक वस्तु के संपर्क में नहीं आती।

बिन मां के बछड़े अपने मुंह से बाड़े तथा बाल्टियों या यहां तक कि अन्य बछड़ों की खाल को भी पकडऩे तथा चूसने का प्रयास करते हैं। वे कानों, पेट तथा अण्डकोश को वरीयता देते हैं। उनके शरीर की स्थिति और मुद्रा धक्के देने वाली गतिविधियों सहित प्राकृतिक रूप से चूस रहे बछड़े की लगती है।

भेड़ों में तनाव को मापने के लिए न्यू साउथ वेल्स में सीएसआईआरओ के अनुसंधानकर्ताओं ने व्यवहार में परिवर्तनों को देखने के लिए एक प्रयोग विकसित किया है जिसमें पशु के मूड का पता चलता है। जब मानव व्यग्रता महसूस करते हैं तो हम खतरा प्रतीत होने वाली चीजों पर अधिक ध्यान देते हंै। वैज्ञानिक इसे एक ‘‘अटेंशन बायस’’ कहते है। यदि फार्म के पशु भी ऐसा ही करते हंै तो वे कितने व्यग्र है को मापने का एक सुरक्षित तरीका खतरों के प्रति उनकी सचेतता को माप कर लगाया जा सकता है।

60 मादा मेरीनो भेड़ों को तीन समूहों में विभाजित किया गया था। नियंत्रण समूह ने प्रयोग उनकी व्यग्रता के प्राकृतिक स्तर के साथ ही किया। अनुसंधानकर्ताओं ने भेड़ के दूसरे समूह में मिथाइल-क्लोरोफेनाइलपीपेराजाइन या एमसीपीपी इंजेक्ट करके उनके व्यग्रता के स्तर को कृत्रिम रूप से बढ़ा दिया, जिसके बारे में वे लिखते है कि यह एक ऐसी दवा है जिसे कई प्रजातियों में व्यग्रता को बढ़ाने के संबंध में सूचित किया गया है। भेड़ों के तीसरे समूह को डाइजीपैम, जिसे वैलियम के नाम से भी जाना जाता है, का आराम देने वाले इंजेक्शन लगाया गया था।

प्रत्येक भेड़ को एक चाहरदीवारी वाले अहाते में ले जाया गया जहां बीच में भोजन की एक बाल्टी रखी गई थी। एक दीवार में एक खिडक़ी से बाहर एक खामोश बैठा हुआ कुत्ता देखा जा सकता था। 10 सेकेंड के पश्चात, खिडक़ी बंद कर दी गई ताकि भेड़ें कुत्ते को फिर न देख सकें। प्रत्येक भेड़ लगभग तीन मिनट तक अहाते में रही और इस दौरान वीडियो कैमरा ने उसका व्यवहार रिकार्ड किया।

कुत्ते को देखने पर हरेक भेड़ सहम गई। परंतु खिडक़ी को बंद कर दिए जाने पर क्या हुआ। नियंत्रण समूह में भेड़ ने खिडक़ी को बंद किए जाने के पश्चात लगभग 22 सेकेंड तक उसकी दिशा में देखा। व्यग्रता बढ़ाने वाले एमसीपीपी को लगाई गई भेड़ ने लगभग 40 सेकेंड ऐसा करने में बिताए। परंतु व्यग्रता-रोधी दवा दी गई भेड़ ने औसतन मात्र 14 सेकेंड तक ऐसा किया, और फिर अपने काम में लग गई। डाइजीपैम दी गई आधी से अधिक भेड़ों ने फिर बाल्टी में से खाया। नियंत्रण वाली किसी भेड़ ने बमुश्किल ही खाना खाया और अधिक व्यग्रता वाली किसी भी भेड़ ने एक टुकड़ा भी नहीं खाया।
भेड़ जितनी अधिक व्यग्र थी, उसने संभावित खतरे पर उतना ही अधिक ध्यान दिया - जैसा कि मानव करते हैं। हालांकि व्यग्रता (या व्यग्रता का अभाव) वाला प्रयोग दवा देकर किया गया था, पर इसने भेड़ द्वारा अपने प्रतिदिन के अनुभवों से महसूस की जाने वाली व्यग्रता को मापने का एक तरीका मुहैया करवाया।

फार्म में पाली जाने वाली मछलियां काफी तनावपूर्ण स्थितियों में रहती हंै, खुले में उनके द्वारा सहन किए जाने के लिए विकसित होने से अत्यधिक भिन्न। एक्वाकल्चर फार्मों में मछलियों को भीड़-भाड़ वाले टैंकों में रहने और अन्य मछलियों से अनचाहे संपर्क, मानवों द्वारा हैण्डलिंग, भोजन प्राप्त करने में संघर्ष तथा रोशनी, पानी की गहराई एवं प्रवाह में एकाएक बदलाव को सहन करने के लिए बाध्य किया जाता है। कैंद में बंद ये मछलियां एक पीड़ा भरा जीवन व्यतीत करती हैं। मछली फार्मों में एक-तिहाई मछली की अवरूद्ध वृद्धि होती है तथा उन्हें पहुंचाई जाने वाली मानसिक पीड़ा इतनी गंभीर होती है कि वे मृत जैसी अवस्था में टैंक की सतह पर तैरती रहती हैं। इन मछलियों को ‘ड्रॉप आउट’ कहा जाता है। रायल सोसाइटी ओपन साइंस द्वारा किए गए एक नए अनुसंधान के अनुसार, ये मछलियां तनावयुक्त तथा डिप्रेस्ड लोगों जैसे ही व्यवहार तथा मस्तिष्क स्थिति को दर्शाती है।

अपने को उनके स्थान पर रख कर देखें। आप उन्हें एक ही बार नहीं मारते है जब आप उन्हें खाते हैं। वे हर रोज हजारों मौत मरती हैं।

Updated : 16 Nov 2016 12:00 AM GMT
Next Story
Top