Home > Archived > कांग्रेस में सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत

कांग्रेस में सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत

कांग्रेस में सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत

एक कहावत बहुत पुरानी है कि जब हम दूसरे पर एक अंगुली उठाते हैं तो चार अंगुलियां स्वयं हमारी ओर उठ जाती हैं। कांग्रेस पर यह कहावत पूरी तरह से लागू होती है। जनभावनाओं को समझाने की इंदिरा गांधी की कांग्रेस उससे बहुत दूर जा चुकी है। उन्होंने कांग्रेस में प्रभावशाली ‘‘सिंडीकेट’’ पर सीधे हमला बोलने के बजाय उन नीतियों को अपनाया-जो भले ही क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार बढ़ाने वाली साबित हुई हों-जनमानस को ‘‘सिंडीकेट की भ्रष्टता’’ से मुक्ति का बोध कराया। यद्यपि सिंडीकेट के रूप में जिन नेताओं की पहचान बनी थी, उनके सार्वजनिक जीवन की स्वच्छता असंदिग्ध थी, तथापि इंदिरा गांधी के गरीबी उन्मुख नारों ने उन्हें पूंजीपतियों के दलाल के रूप में यह मान बना दिया।

पा किस्तान के खिलाफ सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रधानमंत्री को सैनिकों के खून का दलाल कहने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष ने 500 और 1000 रुपए के चालू नोट को एक निर्धारित अवधि में पूर्णतर बदल देने के लिए उठाए गए कदम को पूंजीपतियेां को संरक्षण देने वाला बताकर यह साबित कर दिया है कि जो छिछोरेपन की अभिव्यक्ति गुजरात के चुनाव में मोदी का मौत को सौदागर कहने के परिणाम हुए उससे उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है। इससे यह भी साबित होता है कि सेना और नोट परिवर्तन के कदम का प्रथम प्रतिक्रिया में स्वागत करने के बाद किंतु परंतु के दौर से आगे बढक़र राहुल गांधी की भौड़ी अभिव्यक्ति और केजरीवाल की भाजपा वालों को पहले से मालूम था, को विश्वसनीयता का आधार बनाकर सरकार को घेरने का प्रयास कर कांग्रेस जनभावना को समझने की असमर्थता के कारण निरंतर जिस विसर्जन की ओर बढ़ रही है उसकी गति थमने के बजाय बढ़ती जा रही है। यह ठीक है कि राहुल गांधी के एलबम में किसी के घर भोजन करने को लेकर चार हजार रुपये के नोट बदलने तक की तस्वीरें उन्हें अवश्य ही आह्लादित कर रही हैं लेकिन प्रत्येक तस्वीर के साथ उन्हें और कांग्रेसियों को यह भी समझने की आवश्यकता है कि उसे खींचे जाते समय उनके साथ खड़े रहने या उनकी लड़ाई को अपना बताने की लफ्फाजी भर से पार्टी के लिए अनुकूल के बजाय प्रतिकूल माहौल बनता जा रहा है। स्वयं राहुल गांधी किसी भी तस्वीर वाले स्थान पर लौटकर हालचाल पूछने भी नहीं गए। एक समय था जब देश जवाहरलाल नेहरू की अभिव्यक्ति को श्रद्धा के साथ सुनता था, उनके खिलाफ अभियान चलाने वाले डाक्टर राममनोहर लोहिया की सभा तक नहीं होने देता था। लेकिन समय ऐसा बदला कि इमरजेंसी का भयावह माहौल होने के बावजूद अवाम इंदिरा गांधी की अभिव्यक्ति का मखौल उड़ाने लगा था। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व के प्रारंभिक दिनों में अच्छे दिन अवश्य लौट आये थे लेकिन सौदों- विशेशकर रक्षा सौदों में दलाली के खुलासे ने उनकी स्वच्छ छवि को ‘‘मिस्टर व्हाइट वाश’’ में बदल दिया। जो दस वर्ष का शासनकाल मनमोहन सिंह का माना जाता है वह वास्तव में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का ही रहा है और बोफोर्स सौदे की दलाली में जिस इटली कनेक्शन का खुलासा हुआ था उसका व्याप्त इतना बढ़ गया कि सोनिया राहुल की सत्ता घोटाले की सत्ता का पर्याय बन गया था। स्वयं सोनिया गांधी और राहुल गांधी सार्वजनिक सम्पत्ति को निजी बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी के करोड़ों रुपए लगाने के अभियोग में अदालत में खड़े हैं।

इंदिरा गांधी के समय पुराने और तपस्वी कांग्रेसियों को बदनाम करने के लिए जो ब्रिगेड तैयार हुआ था, वह सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सत्ता के समय चाटुकारिता का कीर्तन करने वालों की मंडली में तब्दील होगा। कांग्रेस में चरणगान का ऐसा अधिपत्य हो गया कि पिछले दस वर्षों। में जहां-जहां भी मतदान हुए उसके परिणाम के पूर्व ‘‘हार के लिए राहुल गांधी जिम्मेदार नहीं’’ का हुल्लड़ मचाकर पार्टी को सम्यक समीक्षा से दूर ही रखा, यहां तक कि सोनिया गांधी के सबसे विश्वस्त बन गए पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी द्वारा हार के लिए जिन कारणों का आंकलन पेश किया गया था, उसका भी संज्ञान नहीं लिया गया। सोनिया गांधी पिछले सत्रह साल से कांग्रेस की सत्ता में हैं। उन्हें जिन लोगों ने नरसिंह राव को ठिकाने लगाने के लिए कंधे पर उठाया था, वे सभी किनारे लगा दिए गए तथा पार्टी में हाईकमान के नाम पर सुप्रीमो बनी सोनिया गांधी और उनके युवराज राहुल गांधी की चरणगान मंडली का इतना प्रभाव बढ़ गया कि अब एंटोनी और मनमोहन सिंह जैसे समझदार समझे जाने वाले लोग भी सोनिया गांधी से अपेक्षा कर रहे हैं कि राहुल गांधी को औपचारिक रूप से पार्टी की कमान सौंप देने की आकांक्षा व्यक्त की है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी के कांग्रेसमुक्त भारत अभियान को सफल बनाने में यदि किसी का सबसे प्रभावी योगदान रहा है तो वह राहुल गांधी ही हैं। सोनिया गांधी जो सत्रह वर्षों में लिखित भाषण पढऩे से आगे नहीं बढ़ पायीं, औपचारिक भर के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष हैं। मनमोहन सिंह की सरकार और सोनिया गांधी कांग्रेस उद्धार हो सकेगा जो अपना अस्तित्व बचाने के लिए बिहार में लालू नीतीष गठबंधन का दुमछल्ला से लाभान्वित होने के कारण-ठेके पर पार्टी को सौंपकर उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की ओर कातर भावयुक्त याचक के रूप में खड़ी दिखाई पड़ रही है। कुछ वर्षों से यह अभिव्यक्ति हो रही है कि जिस कांग्रेस को एक विदेशी मूल के व्यक्ति ने स्थापित किया था, उसका विसर्जन भी एक विदेशी मूल के व्यक्ति द्वारा ही होगा। राहुल गांधी को औपचारिक रूप से बागडोर सौंपने से कांग्रेस इस ‘‘कलंक’’ से बच सकती है लेकिन जो नेतृत्व चुनना उसकी नियति बन चुकी है वह कांग्रेसमुक्त भारत की परिणिति को रोक पाने में समर्थ हो सकेगी इसकी सम्भावना उस नेतृत्व के अतीत में प्रभाव का अनुभव वर्तमान का आचरण भविष्य की आशा का विश्वास दिला पाने में असमर्थ है।

एक कहावत बहुत पुरानी है कि जब हम दूसरे पर एक अंगुली उठाते हैं तो चार अंगुलियां स्वयं हमारी ओर उठ जाती हैं। कांग्रेस पर यह कहावत पूरी तरह से लागू होती है। जनभावनाओं को समझाने की इंदिरा गांधी की कांग्रेस उससे बहुत दूर जा चुकी है। उन्होंने कांग्रेस में प्रभावशाली ‘‘सिंडीकेट’’ पर सीधे हमला बोलने के बजाय उन नीतियों को अपनाया-जो भले ही क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार बढ़ाने वाली साबित हुई हों-जनमानस को ‘‘सिंडीकेट की भ्रष्टता’’ से मुक्ति का बोध कराया। यद्यपि सिंडीकेट के रूप में जिन नेताओं की पहचान बनी थी, उनके सार्वजनिक जीवन की स्वच्छता असंदिग्ध थी, तथापि इंदिरा गांधी के गरीबी उन्मुख नारों ने उन्हें पूंजीपतियों के दलाल के रूप में यह मान बना दिया। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियां और उनका क्रियान्वयन भी गरीबोन्मुखी है, ऐसे में उनकी सरकार को पूंजीपति हितकारी साबित करने का प्रयास करने वालों के विपरीत प्रभाव इसलिए डाल रहा है क्योंकि उसने लोगों को दस वर्ष के घोटालों की याद ताजा करा देने का अवसर प्रदान कर दिया है। काले धन का राजनीति के चलन का आविष्कार कांग्रेस ने ही किया। तथापि कुछ क्षेत्रीय दल जिन्हें संभवत: उसके निवेश सफलता तरीका अभी नहीं मालूम है, कांग्रेस से भी आये बढक़र नोट बदली के अभियान का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस इस मामले में भी पिछलग्गू ही साबित हो रही है। कठिनाइयों के बावजूद अवाम द्वारा मोदी की इस अर्थिक सर्जिकल का जहां जय-जयकार किया जा रहा है, वही डूब रहे कुछ लोग अवाम के नाम पर अपने दुर्दिन को सामने खड़ा देखकर हाहाकार कर रहे हैं। क्षेत्रीय नेतृत्व जिस व्यक्ति भक्ति पर खड़े हैं उनके उदय अस्त से यदि कांग्रेस ने कुछ नहीं सीखा तो आश्चर्य इसलिए नहीं होना चाहिए क्योंकि क्षेत्रीय दलों ने आचरण में कांग्रेस का ही अनुकरण किया था, लेकिन जिस प्रकार 1967 में लोकप्रियता के ग्राफ में निचले पायदान पर खिसक गई कांग्रेस को अनैतिक आचरण के आरोप की भी अनदेखी कर तत्कालीन नेतृत्व के खिलाफ इंदिरा गांधी ने सर्जिकल स्ट्राइक किया था, तिरोहित होने के कगार पर खड़ी कांग्रेस को बचाने के लिए उसके वर्तमान नेतृत्व का सर्जिकल इलाज उसी प्रकार किया जाना अपरिहार्य है। क्या कांग्रेस में ऐसा हो सकेगा। शायद नहीं। तो क्या उसका विसर्जन का आंकलन सही साबित होगा?

Updated : 18 Nov 2016 12:00 AM GMT
Next Story
Top