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जय श्रीराम चुनावी मुद्दा क्यों न हो?

जय श्रीराम चुनावी मुद्दा क्यों न हो?
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विजयादशमी के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लखनऊ की रामलीला में जय श्रीराम बोलकर जो ‘‘गुनाह’’ किया है उसका राजनीतिक भुगतान करने में जिस प्रकार तमाम दलों के नेता मुखरित हो रहे हैं उससे उन्हें लगता है कि वे मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर मुखातिब कर लेंगे। संविधान में समान नागरिक संहिता के निर्देश सर्वोच्च न्यायालय की बार-बार दी गई हिदायत के बावजूद इस दिशा में कदम उठाने में आगा पीछा करने वालों ने तीन तलाक के मसले पर-जो मुस्लिम महिलाओं द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में ले जाया गया है, केंद्र सरकार को घेरने में असफलता के बाद रामलीला में जय श्रीराम का उद्घोष करने पर प्रधानमंत्री को घेरकर मुस्लिम वोट पाना चाहते हैं। इन लोगों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी शामिल हो गए हैं जो कल तक अयोध्या को राममय बनाने के लिए संतों के समागम में छाती ठोककर विकास योजनाओं की घोषणा कर रहे थे। वैसे तो उनके द्वारा विज्ञापन अभियान में अरबों रूपया झोंककर लोकप्रियता हासिल करने के अभियान का प्रगटीकरण पिता से विद्रोही हो जाने के रूप में प्रगट ही हो चुका है। जो कभी राम के दशरथ के समान सत्ता सोंपने के कारण उनके आदर्श थे, प्रधानमंत्री से वह सवाल कर रहे हैं कि वे जय श्रीराम बोलकर देश को कहां ले जाना चाहते हैं। अखिलेश यादव उस समाजवाद के प्रतीक हैं जो विचार की धारा को परिवार में तिरोहित कर व्यक्तिगत अभियान में डूबकर डाक्टर राम मनोहर लोहिया को नाममात्र लेकर अपने अस्तित्व को कायम रखना चाहते हैं, यह भूलकर कि समान नागरिक संहिता तथा राम के बारे में उनकी क्या अवधारणा थी, हमें कांशी‘‘राम’’ की भक्तिन मायावती का जय श्रीराम विरोध समझ में आने में कोई भ्रम नहीं है क्योंकि जो अपने को ‘‘जीवित देवी’’ कहकर चढ़ावे का आह्वान करती हो उससे किसी सात्विक विचार की अपेक्षा ही कैसे की जा सकती है। लेकिन जब रामराज्य लाने का लक्ष्य लेकर जिस नामधारी संस्था ने वर्षों स्वतंत्रता संग्राम किया उसके द्वारा जय श्रीराम या रामलीला में प्रधानमंत्री की उपस्थिति को चुनावी स्टंट कहा जाय तब यह प्रश्न स्वाभाविक उठता है कि वर्षानुवर्ष राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जो ज्यादातर कांग्रेसी ही थे, रामलीला में क्यों राम, लक्ष्मण को तिलककर आरती उतारते रहे हैं। इस वर्ष भी वही हुआ और ईसाइयत में आस्था रखने वालीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी दिल्ली की रामलीला में जाकर राम लक्ष्मण को तिलक क्यों किया? राम के प्रति दुराग्रह का प्रदर्शन तुलसीदास की ‘‘सियाराम मय सब जग जानी’’ जो सबका साथ सबका विकास संकल्प का आधार है, विपरीत ही नहीं अपितु विघटनकारी भी है।

नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय सत्ता संभालने के साथ जिन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया है उसमें एक क्षेत्र पर्यटन भी है। जिसकी अपार संभावनाएं हैं। भारत में श्रद्धा के केंद्र ही पर्यटकों के लिए आकर्षण के केंद्र हैं। घरेलू पर्यटक तो शत प्रतिशत उन्हीं के इर्द गिर्द सीमित रहते हैं विदेशी पर्यटक भी अधिकांश इन्हीं स्थलों पर जाते हैं। मोदी ने इन्हें अधिक आकर्षक और सुगम बनाने के लिए रामकृष्ण और बुद्ध पर्यटन परिपथ की योजना बनाई और उन्हें मूर्त रूप देना शुरू किया है। कृष्ण और बुद्ध से जुड़े केंद्र की अपेक्षा राम से जुड़े केंद्र उपेक्षित हैं। उन्हें आकर्षक बनाने के लिए सबसे आवश्यक है अयोध्या को आकर्षक बनाना। अयोध्या के अधिपति के विश्वभर में सबसे अधिक प्रेरक होने के बावजूद अयोध्या को देखकर निराशा होती है। अयोध्या का उल्लेख आजकल रामजन्म भूमि के विवाद के रूप में होता है जिसका मसला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। केंद्र सरकार ने अयोध्या को पर्यटक आकर्षण का केंद्र बनाने के उद्देश्य से बजट में 251 करोड़ रूपये की व्यवस्था कर पहल की है और राम परिपथ की प्रथम योजना के रूप में अयोध्या में एक रामायण संग्रहालय बनाने हेतु भूमि का चयन करने के लिए पर्यटन मंत्री डा. महेश शर्मा के आगमन पर जहां चुनाव के समय राम की याद आने के आरोपों की बौछार शुरू हो गई वहीं कुछ तथाकथित रामभक्तों ने जिनका एजेंडा ‘राम नाम जपना पराया माल अपना’ हो रहा है, रामायण संग्रहालय को लालीपाप दिखाना बताकर अपनी कुंठा को निकालना प्रारम्भ कर दिया है यह कहकर कि सरकार यदि रामभक्तों की है तो राम मंदिर बनवाने की पहल करे। यह जानते हुए भी सत्तारूढ़ भाजपा ने राम मंदिर के लिए प्रतिबद्धता के साथ आपसी सहमति या न्यायालय के फैसले के तरीके को स्वीकार करने की भी बात कही है। क्या सरकार न्यायालय की उपेक्षा कर संसद में कानून बनाए और क्या संसद में कानून बनाने की स्थिति है इसका संज्ञान होते हुए भी ‘‘रोजी रोटी के लिए’’ रामायण संग्रहालय योजना को लालीपाप बता रहे हैं। ऐसे लोग रामभक्त नहीं ‘‘रामभोक्ता’’ हैं उनकी भी सम्पत्ति संग्रह की जांच होनी चाहिए।

रामजन्मभूमि मुक्ति का अभियान जहां से शुरू हुआ है और आज जिस स्थिति में है सम्पूर्ण घटनाक्रम की यदि समीक्षा की जाय तो यह कहा जा सकता है कि 1949 में मूर्ति स्थापित होने से लेकर जो कुछ हुआ है उसमें राजनीति का पुट होने से इंकार भी नहीं किया जा सकता। लेकिन यदि मजहबी आस्था, जातीय संकुचितता मुफ्तखोरी के आर्थिक प्रलोभन देकर मत प्राप्त करने का प्रयास करते हैं कर रहे हैं, तो मर्यादा पुरूषोत्तम राम के प्रति निष्ठा को चुनावी मुद्दा बनाने में हर्ज क्या है। रामराज्य की अवधारणा जिस दैहिक दैविक और भौतिक तीनों तापों से लोभमुक्त थे उसके संस्थापक राम के प्रति निष्ठा को दृष्टिदोष रखने वालों से कुंठित मानसिकता वालों को ही अखर सकता है। लेकिन क्या ऐसे लोगों ने राम को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया क्या राजीव गांधी के काल में बंद परिसर का ताला नहीं खुलवाया गया और चुनावी अभियान की शुरूआत के लिए अयोध्या क्षेत्र को नहीं चुना गया। क्या पिछले पांच वर्षों में अयोध्या के संतों महंतों में पैठ के लिए अखिलेश ने प्रयास नहीं किया, उनकी श्रवण यात्रा का उद्देश्य क्या है। यही नहीं तो केंद्रीय सरकार की येाजना के मुकाबले रामकथा पोथी आदि योजनाओं की घोषणा क्या चुनावी आंकलन पर आधारित नहीं है। ऐसे लोगों की विडंबना यह है कि राम के प्रति निष्ठा से उन्हें भय लगता है कि मुस्लिम मतदाता भडक़ जायेंगे। इसलिए जय श्रीराम का रामलीला में भी उच्चारण उनके लिए सांप्रदायिक हो जाता है ये वो लोग हैं जो सरकारी खर्चे पर रमजान के महीने में इफ्तार आयोजित कर बल्कि कभी-कभी नमाज में भी शामिल हो जाते हैं। इन लोगों का यह विश्वास है कि हिन्दू मतदाता तो जाति क्षेत्र के आधार पर बरगलाया जा सकता है, मुसलमानों को हमवार करने के लिए प्रलोभन देना आवश्यक है। इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी मुस्लिम मतदाताओं को थोक में अपनी ओर करने के लिए हर पार्टी भाजपा को हमी हरा सकते हैं का दावा कर रही है। लेकिन वह यह भूल जाती है कि एक ध्रुवीकरण होने दूसरा ध्रुवीकरण भी प्रतिक्रिया स्वरूप होता है। गुजरात में यह बार-बार दोहराया जा सका है। यह मुसलमानों को विचार करने की जरूरत है कि क्या उन्हें भावनात्मक उत्तेजना से अपनी ओर खींचने के प्रयास का प्रयोग और परिणाम को दोहराना है या फिर किसी सरकार के कामकाज की समीक्षा के आधार पर जो सर्वजन सुखाय और सर्वजन हिताय की नीति पर अमल करती हो, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से बाहर निकलता है क्योंकि उनका ध्रुवीकरण दूसरे ध्रुवीकरण को खड़ा करने में सहायक होगा। राम यदि चुनावी मुद्दा बनते हैं तो हमें ही क्या है। जो हमारा सर्वोच्च आदर्श है उसका जीवन चरित्र आज दुनिया के लिए अनुकरणीय बन रहा है। जय श्रीराम की गूंज हो रही है इसलिए राम के जन्म प्रदेश में जयश्रीराम की गूंज सबके साथ और सबके विकास के अनुरूप है।

Updated : 5 Nov 2016 12:00 AM GMT
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