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भौतिकवाद में बहकती युवा पीढ़ी

भौतिकवाद में बहकती युवा पीढ़ी
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आज का युवा अपने आपको आधुनिक कहलवाने की चाह में, भौतिकता की आग में कुछ इस तरह कूद पड़ा है, कि उसे यह तक आभास नही है कि वह जो कर रहा है। वह उसके भविष्य के लिए कितना उचित है।

कभी जगत गुरू के नाम से मशहूर भारत के युवा अपने आपको अध्यात्म और दर्शन के लिए समर्पित कर देते थे, और यही कारण है कि हमारे भारत के स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ जैसे युवा विचारकों ने अपनी प्रतिभा का लोहा सारे विश्व को मनवा दिया ।

मगर आधुनिक युवा अपने को वैश्विक दिखाने के चक्कर मे स्वयं ही रास्ता भटक गये हैं, ऐसे लोग जो खुद दिग्भ्रमित हैं वह दूसरे को क्या खाक रास्ता दिखाएंगे ।

जिस देश में कहा जाता था कि नशा नाश की जड़ है आज उसी देश का युवा नशे का आदी होता जा रहा है, उन्हें लगता है कि शराब और सिगरेट किसी व्यक्ति की रायल्टी को प्रदर्शित करते हैं, और वह फैशन समझकर इसके आदी होते जा रहे हैं । शराब तो इस कदर युवाओं के दिमाग में घर कर गयी है कि वह भविष्य के बारे में भी नहीं सोचते, जिसका उदाहरण अभी कुछ दिन पहले देखने को मिला जब उ. प्र. के ग्यारह प्रशिक्षु न्यायाधीशों ने शराब पीकर एक होटल में बवाल काटा और उन सबको निलम्बन का सामना करना पड़ा, इनकी तरह हजारों नौजवान अपने भविष्य के नशे की आग मे जला रहे हैं ।

युवाओं के इस बहकाव के लिये फिल्मी दुनिया भी उत्तर दायी है, बहुत सारे गीतों में गायक खुद वोदका पीने को बताता है, अभी हाल ही में आयी एक फिल्म में फिल्म की नायिका, फिल्म के नायक और उसके दोस्तों से शर्त लगाती है कि कौन ज्यादा तेज शराब पी सकता, और तेज शराब पीने की प्रतिस्पर्धा होती है। अब ऐसी फिल्में समाज को क्या संदेश देगी?, हालीवुड की फिल्मों से प्रेरित होकर हमारे देश के लडक़े ही नही लड़कियाँ तक धूम्रपान और मद्यपान की ओर बहक रही हैं। बहुत सारी बालीवुड फिल्मों तमाम ऐसे दृश्य होते हैं जो युवाओं को दिग्भ्रमित करने का काम करते है ,ऐसे दृश्यों को फिल्मों से हटा देना चाहिए, मगर सेंसर बोर्ड ऐसी फिल्मों को बिना किसी आपत्ति के पास कर देता है, और निर्माता निर्देशक उस दृश्य पर एक वैधानिक चेतावनी दिखाकर छुट्टी ले लेते हैं,। इसके लिये हमारे देश का प्रशासन भी जिम्मेदार है, आबकारी के चक्कर में हर साल सिर्फ उत्तर प्रदेश मे सैकड़ों शराब के नये ठेकों का सृजन होता है ।

हमारा मानना यह है कि जो चीज समाज को बरबाद करती हो उसका क्रय विक्रय ही बन्द कर दिया जाय, वैधानिक चेतावनी के साथ किसी हानिकारक वस्तु की बिक्री, समस्या का हल नहीं है ।

अभिभावकों का भी यह कर्तव्य है कि वह किशोरवय बच्चों पर निगाह रक्खें कि कहीं हमारा बच्चा किसी गलत संगत का शिकार तो नही हो रहा है, क्योंकि किशोरावस्था ऐसी उमर होती है, जिसमें बिगडऩे की संभावनाएँ सबसे अधिक होती हैं। किसी देश की रीढ़ युवा होते हैं, किसी भी देश के उत्थान के लिये युवाओं का उत्थान अति आवश्यक है, अगर देश को सुधारना है तो युवाओं को सुधरना ही होगा। मैं तो यही अपील करूँगा कि ऐ मेरे देश के नौजवानों, याद करो स्वामी विवेकानंद को, उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रूको मत।

Updated : 7 Nov 2016 12:00 AM GMT
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