Home > Archived > समान नागरिक संहिता सभी के लिए

समान नागरिक संहिता सभी के लिए

समान नागरिक संहिता सभी के लिए
X


भारतीय संविधान स्वीकृत होने के पूर्व देश के उन्हीं नागरिकों को मतदान का अधिकार था जिनकी ‘‘हैसियत’’ थी। हैसियत का निर्धारण सरकार को दिए जाने वाले कर पर आधारित थी। फलत: देश का अस्सी प्रतिशत नागरिक मतदान प्रक्रिया से अलग था। ब्रिटिश शासन ने ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों को भी चिन्हित किया था, जहां से केवल मुसलमान ही उम्मीदवार हो सकते थे, चाहे वह केंद्रीय धारा सभा हो या राज्य की। भारतीय संविधान लागू होने पर भेदभाव रहित नागरिक समानता का सिद्धांत स्वीकार करते हुए संविधान निर्माताओं ने एक आयु प्राप्त होने पर सभी नागरिकों को बिना भेदभाव के मतदान का अधिकार प्रदान किया। पहले इसके लिए 21 वर्ष की आयु मानक माना गया था। जो अब 18 वर्ष हो गई है। प्रथम दो निर्वाचनों में अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था सामान्य उम्मीदवार के साथ की गई थी। बाद में सर्वेक्षण के आधार पर उनके लिए निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित किए गए जो स्थायी नहीं हैं।

प्रत्येक दस वर्ष बाद जनगणना में मतदाताओं के प्रतिशत के आधार पर क्षेत्रों का निर्धारण होता है। क्यों हमारा संविधान पंथ निरपेक्ष (सेक्युलर) है इसलिए मजहब के आधार पर मुसलमानों के लिए अंग्रेजों ने जो आरक्षण की व्यवस्था की थी उसे त्याग दिया गया। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित क्षेत्र में सभी मतदाताओं को मताधिकार प्राप्त है जबकि मुसलमानों के लिए आरक्षित क्षेत्र में केवल मुस्लिम मतदाता ही मत दे सकते थे। संविधान ने आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक पिछड़ेपन को आरक्षण का आधार माना है, मजहब के आधार पर नहीं। यद्यपि पिछड़ेपन की अवधारणा के परिणामों पर अंगुली उठने लगी है, लेकिन उसकी समीक्षा करने के लिए भी माहौल नहीं बन रहा है। मजहब के आधार पर आरक्षण के औचित्य को, इसी आधार पर पाकिस्तान बनने के बाद प्राय: सभी ने अस्वीकार कर दिया फिर भी ‘‘मुसलमानों के हितों की अनदेखी, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाए रखना आदि’’ के तर्क देकर अलग से निर्वाचन क्षेत्र तथा आरक्षण में प्रतिशत की मांग यदा कदा उठाई जाने लगी है। सेवाओं और शिक्षा संस्थाओं में उनको आरक्षण देने का वादा प्राय: चुनावों के समय उठाया जाता है। संविधान में अल्पसंख्यकों को चिन्हित किया गया है और उन्हें उनके मजहबी आस्था को पूर्ण संरक्षण देते हुए भाषाई अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षा संस्थान चलाने की छूट दी गई है, बशर्ते उनकी स्थापना किसी विधायिका द्वारा पारित किए गए किसी कानून के अंतर्गत की गई हो। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को मनमोहन सिंह सरकार ने जो अल्पसंयक संस्था होने का कानून बना दिया था, उसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसी आधार पर अवैध करार कर दिया था जिसके खिलाफ विश्वविद्यालय की अपील सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। वर्तमान केंद्र सरकार ने संविधान के प्रावधानों का हवाला देकर मनमोहन सिंह सरकार के समक्ष दिए गए हलफनामे के पक्ष में खड़ा रहने से इनकार कर दिया है। जामिया मीलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को जिसकी स्थापना के लिए केंद्रीय एसेम्बली में कानून बना था, अल्पसंख्यक संस्थान माना जाय या नहीं इस पर सर्वोच्च न्यायालय को फैसला करना है।

इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर संविधान के निर्देशानुसार समान नागरिक संहिता (कामन सिविल कोड) बनाने के कई बार अभिमत व्यक्त करने का हवाला देते हुए, सरकार से उसका पक्ष जानना चाहा था। सरकार ने कानूनों की समीक्षा के लिए गठित विधि आयोग से परामर्श चाहा है। विधि आयोग ने इस पर आम जनता का अभिमत आमंत्रित किया है। विधि आयोग के इस कदम को ‘‘मोदी सरकार की साजिश’’ की संज्ञा प्रदान करते हुए मुस्लिम समुदाय को उग्र विरोध करने के लिए उभारा जा रहा है, यह कहकर कि उनके मजहबी मामलों में सरकार हस्तक्षेप कर रही है। वे इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। उनकी आस्था एक अल्लाह पैगम्बर मोहम्मद साहिब और कुरान में है जिसकी समीक्षा के लिए अदालतें हैं किसी और को उसकी समीक्षा का अधिकार नहीं दिया जा सकता। विधि आयोग के द्वारा जारी प्रश्नावली का उत्तर देने के बजाय उसके बहिष्कार का आह्वान किया गया है। संविधान के निर्माण में जिस राजनीतिक संगठन-कांग्रेस- से जुड़े लोगों का वर्चस्व था, उन्होंने आयोग को ‘‘ऐसे प्रश्न के लिए उपयुक्त समय नहीं है’’ कहकर अपना पल्ला झाडऩे का काम किया है।

अनेक राजनीतिक और ‘‘स्वायत्ती’’ संगठन मुसलमानों के मन में उत्पन्न भ्रम को बढ़ावा दे रहे हैं, कुछ ‘‘मुस्लिम’’ नेता इस्लाम पर सरकारी हमव्य तथा समान नागरिक संहिता को हिन्दुत्व का पर्याय बताकर उसके खतरे से आगाह करते हुए अशांति पैदा होने की धमकियां दे रहे। एक विश्वविद्यालय के कुलपति ने एक अंग्रेजी समाचार पत्र में लेख लिखकर हिन्दू कोडविल का डाक्टर राजेंद्र प्रसाद आदि द्वारा विरोध किए जाने का भी तर्क दिया जो गुमराह करने वाला इसलिए है क्योंकि उन्होंने हिन्दू कोडविल का विरोध करते हुए समान नागरिक संहिता का प्रतिपादन किया था, जैसा संविधान का निर्देश है। साठ के दशक में अनेक प्रमुख ‘‘समाजवादी मुस्लिम’’ नेताओं के पार्टी छोड़ देने के बावजूद डाक्टर राममनोहर लोहिया ने समान नागरिक संहिता का अभियान उस समय चलाया था जब अन्य संगठन इससे ‘‘अनभिज्ञ’’ बने हुए थे। भारत के संविधान में विविधताओं का संज्ञान रखते हुए भी जैसे शरीर की संपूर्णता का संज्ञान लिया जाता है, यह ध्यान में रखकर कि मुख्यधारा के रूप में प्रवाहित होने वाला संचार यदि समानुपातिक नहीं रहा तो वह अंग दुर्बल होगा, अवरोध होने पर उपचार का सहारा लेता है, वैसे ही एकदेश एकजन की भावना से समरसता अतीत आवश्यकता के आपराधिक मामलों में जैसा समानता का कानून है वैसा ही संपत्ति आदि के संदर्भ में भी हो, सर्वोच्च न्यायालय संविधान प्राविधान के अनुरूप नागरिक संहिता के लिए कानून बनाने का निर्देश जारी कर रहा है।

जो लोग संविधान के प्रावधान, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश और विधि आयोग द्वारा जनमत जानने के लिए जारी की गई प्रश्नावली को मोदी सरकार का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा जारी निर्देश का एजेंडा बताकर अपने को मुस्लिम हितैषी साबित करने की होड़ में लगे हैं, वे उनके हितैषी होने का चाहे जो स्वांग भरकर सामने आये, उन्हें केवल वोटबैंक भर बनाये रखने के लिए भयदोहन की रणनीति पर अमल कर रहे हैं। मुस्लिम समुदाय में तो तलाक के खिलाफ महिलाओं का अभियान एक ओर जहां सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है, वहीं दूसरी ओर अनेक मुस्लिम संगठनों जिनमें पर्सनल लॉ बोर्ड भी शामिल है, तीन तलाक के अब तक के प्रचलन के दोष मिटाने में जुट गया है। शरीयत अदालतें अब पूर्णत: इस्लामिक अवधारणा वाले देशों में मान्य नहीं रह गई हैं। तो भारत जैसे सेक्युलर देश में उसका कोई औचित्य नहीं है। भारतीय संविधान पूजा प्रार्थना अथवा अन्य मजहबी कर्मकांड के लिए विभिन्न प्रकार के समूहों को गारंटी देता है, वहीं उसने सभी नागरिकों को समानता के आधार पर कानूनी संरक्षण का भी प्रावधान किया है। मुस्लिम समुदाय के पिछड़ेपन का रोना रोने वाले उनकी मजहबी आस्था के लिए समानता के प्रावधान को संकट के रूप में प्रचारित कर जहां विभक्ति का दायरा बढ़ाने का काम कर रहे हैं वहीं एक बड़े वर्ग को पिछड़ा रहने के लिए विवश भी बनाए हुए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभक्ति की विभिन्न अवधरणाओं को खत्म करने के लिए ‘‘सबका साथ और सबका विकास’’ की जिस नीति के अनुरूप शासनादेश का संकल्प किया है, वह एक कारगर उपाय अवश्य है तथापि समान नागरिक संहिता सभी के लिए है। प्रचलित आचरण या भ्रमात्मक अवधारणा के कारण सामाजिक शोषण और राजनीतिक भयादोहन का खात्मा होगा तथा सभी नागरिकों में समानता की भावना प्रखर होगी जो देश को शक्ति और सक्षमता प्रदान करेगा। मुसलमानों को भयादोहकों के बहकावे से बचने, बचाने और मुख्यधारा में शामिल होकर बराबरी के आधार पर अपने को स्थापित करने के लिए वरदान साबित हो सकता है। समस्या को समूह मात्र के रूढि़वादी नजरिए हो देखते रहने के परिणामों को समीक्षा कर इस समानता के अवसर को बेकार नहीं जाने देना चाहिए। मुस्लिम समुदाय को बराबरी के अवसर के लिए तैयार करने की आवश्यकता है ना कि प्रथम अवसर की जो मिलने वाला नहीं है। वादे चाहे जितने किए जाएं। इसलिए मुसलमानों के लिए समग्रता में विचार करना ही लाभकारी है पृथकता में नहीं। उन्हें सबके विकास के अवसर का लाभ उठाना चाहिए।


Updated : 1 Dec 2016 12:00 AM GMT
Next Story
Top