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एक कविता ....नववर्ष नये हाव -भाव

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नववर्ष नये हाव -भाव
नये अंदाज नये ग्यानालोक के
इन्द्रधनुषी परिवेश मे सजा -संवरा
अथाह /अजस्र ऊर्जा का प्रवाह लिए
कुछ कर गुजरने की प्रेरणा लिए
ग्लोबल विलेज एवं डिजिटल इन्डिया की
आभा से मंडित पधारा है ।
हमारे गांव /कस्बे /शहर
जल /थल /नभ /झोपड़ी व महल मे ।
जगा रहा है नये नये सपने
छोटे -बड़े /सभी जनो मे ।
जगा रहा है हमे /स्वार्थ की उन्माद की
गहरी नींद से /धर्मान्धता से।
कह रहा है -भूल गये अपनी सांस्कृतिक जड़े
सभ्यता का उन्नयन । और
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी की महिमा को
और लिप्त हो गये अराष्ट्रीय /अमानवीय गतिविधियो मे ।
आओ अब भूलसुधार करे /भूल जाये परस्पर बैरभाव
ईर्ष्या द्वेष नफरत को।
गर्व करे स्वराष्ट्र पर स्वभाषा पर और रिषयो पर।
परम्परा निबाहे मूल्यो की /मानवीयता की
परदुखकातर बने /परोपकारी बने ।
कुछऐसा गढे /जो सराहा जाता रहे युगो तक ।
छोड़ जाये पद चिह्न /आगामी पीढियो के लिए
रच जाये /ब्रह्मांड सा अमिट कुछ ।
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डॉक्टर डॉ अवधेश चंसौलिया ग्वालियर

Updated : 31 Dec 2016 12:00 AM GMT
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