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निर्धन बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनके उभरा CA छात्र आयुष

निर्धन बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनके उभरा CA छात्र आयुष
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निर्धन बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनके उभरा CA छात्र आयुष

* नवीन सविता



आयुष वैद्य का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। पिता एक मेडिकल स्टोर के संचालक है, माँ गृहिणी है और एक भाई इंदौर में अध्ययनरत है। आयुष का बचपन ग्वालियर की गलियों में ही बीता है, आयुष की स्कूली शिक्षा ग्वालियर के सिद्धार्थ कान्वेंट स्कूल में हुई है, अन्य मेधावी बच्चों की तरह ही आयुष को पड़ने लिखने में बहुत रूचि है और फिलहाल CA की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन इस छात्र के जीवन में बड़ा बदलाव बारहवीं कक्षा की अंतिम परीक्षा के बाद आया, स्कूल के दिनों में हुई एक घटना ने आयुष की सोच और उनके नज़रिए को पूरी तरह से बदल दिया।


2 जुलाई 2015, समय सुबह 7 बजे । आयुष सुबह उठकर न्यूज़पेपर पढ़ रहे थे, ध्यान एक खबर पर गया जिसमे शिक्षा से जुडी एक सामाजिक संगठन की अखबार में खबर प्रकाशित हुई थी जिसमे स्कूल न जाने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के प्रयास करने के तहत सप्ताह के दो दिन शनिवार- इतवार को निचली बस्तियों में जाकर बच्चों को पढ़ाया गया, यह खबर अखबारों में फोटो के साथ प्रकाशित हुई. खबर को पढ़ने के बाद एकाएक आयुष के मन मस्तिष्क में आया की जिस तरह सामाजिक संगठन शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं जिसमे सप्ताह के सिर्फ दो दिन पढ़ा कर बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास किया जाता है, फिर उनकी कवरेज अख़बारों में प्रकाशित होती है. ऐसी ही तमाम ख़बरें अखबारों में अपना स्थान बना लेती है. आयुष ने सोचा की क्या सिर्फ सप्ताह के दो दिन पढ़ाने से बच्चे शिक्षित हो जायेंगे ? अपने मन में आये इस प्रश्न का उत्तर ढूढने के लिए प्रयास करने लगे, निष्कर्ष निकाला की ऐसे अभियान से सिर्फ एक सामाजिक संस्था का भला हो सकता है किन्तु बच्चों का नहीं और इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा.

समीक्षा करने के बाद आयुष ने इसको अन्य संगठनों के द्वारा चलाए जा रहे अभियान से जोड़ कर देखा तो पाया की जिस स्तर की शिक्षा अभियान के माध्यम से दी जाती है उससे उससे कोई बच्चा जिम्मेदार नागरिक बनके निकले यह अपने आप में प्रश्न करने वाली बात है. फिर आयुष ने सोचा की सामाजिक संगठनों द्वारा चलाए जा रहे अभियानों में कुछ और अच्छा करने की और गुंजाइश है.

एक दिन अपने माता-पिता के साथ चर्चा में शिक्षा का महत्त्व बताते हुए अपने विचार उनके सामने रखे, माता पिता ने आयुष के विचारों को सुनकर कुछ और अच्छा करने की प्रेरणा देने के साथ-साथ उसका हरकदम पर साथ देने के लिए भी तैयार हो गए. फिर आयुष एक ऐसे क्षेत्र की तलाश में थे जहाँ शिक्षा की सबसे ज्यादा जरुरत हो. इस ओर ध्यान दिया तो पाया की घर से 15 KM दूर मोतीझील के पास पहाड़ी पर स्थित बस्ती कृष्णा नगर हैं. यहाँ मजदूर वर्ग रहता है हर दिन लड़ाई, झगडें, और शराब खोरी होती रहती हैं आयुष ने यहाँ समय देना प्रारंभ किया और कुछ समय बस्ती के बच्चों के साथ बिताने लगे देखा की छोटे छोटे बच्चे सिर्फ खेल में ही मस्त रहते है, इसी दौरान आयुष बच्चों के साथ घुल मिल गए और बच्चों से बातें की तो पता चला की बच्चों ने स्कूल की शक्ल ही नहीं देखी है.


आयुष ने लड़ाई, झगडें, और शराब खोरी की परवाह किये बिना. बच्चों के स्कूल न जाने का कारण पता किया तो बात यह सामने आई की बस्ती में एक भी स्कूल नहीं हैं, और बच्चों को घर से दूर भेज नहीं सकते और जो स्कूल है वो बस्ती से काफी दूर हाईवे के दूसरी तरफ स्थित हैं. प्राय देखा गया हैं की उस रोड पर अत्याधिक दुर्घटनाएं होती रहती हैं इसलिए अभिभावक उनको स्कूल भेजने से कतराते हैं. यह सुन कर वही पर आयुष के मन-मस्तिष्क में आया की बच्चों को इस माहौल से उबारने की सख्त जरुरत है और कम से कम गुणवत्ता पूर्ण प्राथमिक शिक्षा दिलवाने के लिए प्रयास करने की कोशिश जरुर करनी चाहिए. फिर आयुष ने अपने माता-पिता से चर्चा की और उनकी सहमति मिलने के बाद इस ओर कदम बढ़ा दिए.

आयुष ने इन बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए बदलाब करने के लिए खुद अकेले ही निकल पड़े. 25 जुलाई 2015 को शुरुआत में अपने माता-पिता के साथ जाकर बच्चो को पढ़ाना शुरू किया. और उसके फोटो व्हाट्सएप एवं फेसबुक पर पोस्ट करते रहते थे.

“इस बीच आयुष को कुछ असामाजिक तत्वों ने इस नेक कार्य को रोकने के लिए भरपूर प्रयास किये और बहुत दुःख पहुचायां.”

एक दिन आयुष ने मित्रों से सहयोग की बात की, मित्रों से हां मिलने के बाद “मानवता ग्रुप - “जहाँ सबसे ज्यादा जरुरत हो, वहा मानवता ग्रुप कैसे न हो के नाम से एक ग्रुप बनाया उद्देश्य था बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराना और उनको एक जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करना, आज ग्रुप में 80 से अधिक सदस्य हैं । शुरुआती चरण में जब आयुष ने वहां के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था तब बच्चों की संख्या 10 थी और धीरे-धीरे संख्या में इजाफा होता चला गया अब लगभग 150 से ज्यादा बच्चें ग्रुप के सदस्यों से शिक्षा का लाभ ले रहे हैं. मानवता ग्रुप में आज स्टूडेंट, टीचर, ऑफिसर , IAS, IPS विशेषकर इंदौर कलेक्टर पी. नरहरी, IAS नीरज सिंह आदि इस ग्रुप के सदस्य हैं और सभी सदस्य हर महीने Rs.100 का आर्थिक सहयोग भी करते हैं. जिससे बच्चों की पढाई का खर्चा वहन होता है. अब यह ग्रुप 15 अगस्त 2015 से निरंतर अपने सेवाएं जरुरतमंदो के बीच सेवा उपलब्ध करा रहा हैं.


मानवता ग्रुप के द्वारा किये गए कार्य समाचार पत्रों में प्रकाशित होना शुरू हुए और आयुष ने स्वयं आगे आकर प्रसाशनिक अधिकारीयों को कृष्णा नगर बस्ती की स्थिति के बारें में अवगत कराया. अधिकारी भी बस्ती की स्थिति को सुनकर आश्चर्यचकित हुए और आयुष के कार्य की सराहना भी अधिकारीयों द्वारा की गई. आयुष ने अधिकारीयों को ज्ञापन सौंप कर अनुरोध किया की कृष्णा नगर में बच्चों के लिए एक स्कूल अवस्य होना चाहिए I आयुष के अथक प्रयास के चलते ही 20 जून 2016 को प्रशासनिक अधिकारी IAS नीरज सिंह द्वारा बस्ती में एक सरकारी स्कूल खोलने की घोषणा की गई, उसको मूर्तरूप देने का कार्य प्रारंभ हो चुका हैं. साथ ही सिर्फ एक डॉक्यूमेंट के माध्यम से बस्ती के 30 बच्चों का डायरेक्ट दाखिला पागन वी सी स्कूल में करवाया गया. कृष्णा नगर में आये इस बदलाव ने आयुष को बहुत अत्यंत ख़ुशी दी हैं.


आज आयुष अपनी CA की तैयारी करने के साथ-साथ जरुरत मंद बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए अथक प्रयास करते हुए पुरे समर्पण भाव से लगे हुए है. इस सामाजिक कार्य के साथ-साथ आयुष ने महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने एवं अत्याचारों से लड़ने के लिए ग्वालियर एस. पी हरिनारायणचारी मिश्रा एवं अन्य पुलिस अधिकारीयों की मदद से पुलिस कंट्रोल रूम एवं बीइंग रक्षक ग्रुप के साझा सहयोग से फोन पर महिलाओं एवं युवतियों को त्वरित सहयोग देते है.

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Updated : 4 Aug 2016 12:00 AM GMT
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