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हर जीव संकेतों से व्यक्त करता है अपनी बुद्धिमता

ट्रॉपिकल जलवायु में पक्षियों को भक्षकों - जिसमें बड़े पक्षी, स्तनधारी और सांप शामिल हैं - का सामना करना पड़ता है जो उनके घोंसले तोड़ देते हैं, अंडे चुरा लेते हंै या उनके बच्चों को मार डालते हंै। द अमेरिकन नेचुरलिस्ट में प्रकाशित एक अध्ययन में वैज्ञानिक ट्रॉपिकल निचली भूमियों में रहने वाले एक पक्षी द्वारा अपनाए जाने वाले अनूठे घोंसला बनाने के तरीके के बारे में बताते हैं जो घोंसला भक्षकों से होने वाली व्यापक हानि वाले क्षेत्रों में रहते हैं। पेरू में सिनेरियस मॉर्नर के नवजात चूजों में रोंएदार पंख तथा लंबे संतरी रंग के सफेद किनारे वाले कांटे होते हैं। नवजात बच्चा अपने सिर को धीरे-धीरे एक ओर से दूसरी ओर निकट मौजूद होने वाले समान आकार तथा रंग के जहरीले कैटरपिलर जैसे ही हिलाता है। नवजात बच्चा भक्षक के साथ छल करके उसे यह मानने पर मजबूर कर देता है कि वह एक विषैला, कांटेदार कैटरपिलर है न कि कोई खाया जा सकने वाला नवजात बच्चा। इस बेहतरीन बदलाव से घोंसले के जीवों का भक्षण कम हो जाता है।

यहां तक कि चिकन भी अंडे से बाहर निकलने के कुछ ही घंटों के भीतर बुद्धिमतापूर्ण व्यवहार को दर्शाते हैं। नवजात चूजे पांच तक संख्याओं का ट्रैक रख पाने में समर्थ होते हैं। प्लास्टिक के अंडों के दो समूह के मध्य विकल्प दिए जाने पर वे निश्चित तौर पर बड़े वाले अंडों को ही चुनते हंै, भले ही जब चुनाव का निर्णय दो या तीन अंडों के मध्य लिया जाना था और उनकी गणितीय क्षमता यही पर समाप्त नहीं होती। 20 वर्षों के अनुसंधान के पश्चात लिखे गए एक पेपर द इन्टेलीजेन्ट हेन में, प्रोफेसर निकोल सिद्ध करते हैं कि पक्षियों में जन्म से ही भौतिकी - और विशेष रूप से ढांचागत अभियांत्रिकी - की समझ होती है। इसे ऐसे प्रयोगों द्वारा दर्शाया गया है जिनमें उन्होंने किसी ऐसी वस्तु के चित्र में रूचि दर्शाई जिसे वास्तव में बनाया जा सके बजाए उसके जो भौतिकी के सिद्धांतों को नकारता हो।

प्रयोग यह भी दर्शाते हैं कि बहुत छोटे चूजे यह समझते हैं कि नजरों से ओझल हो जाने वाली वस्तु का फिर भी अस्तित्व रहता है। मानव के बच्चे को इस महत्वपूर्ण अवधारणा को समझने में दो वर्ष लग जाते हंै कि आंखों से ओझल हो जाने का मतलब गायब हो जाना नहीं है। चूजे मूलभूत परानुभूति दिखाते हैं और आगे की योजना बना सकते हैं तथा सही समय आने तक आत्म-नियंत्रण दर्शा सकते हैं। जैसे कि, पक्षी जल्दी से यह जान जाते हंै कि यदि वे भोजन खाना प्रारंभ करने में थोड़ी प्रतीक्षा करें तो वे इस पर थोड़े और समय तक पहुंच बनाए रख सकते हैं। मुर्गी की बुद्धिमता का और साक्ष्य ऐसे परीक्षणों से आता है जिनमें मात्र दो सप्ताह के बच्चे सूर्य की रोशनी का उपयोग करते हुए अपना रास्ता ढूंढ सकते हैं, एक ऐसी विशेषता जिसमें जीवों को दिन के दौरान सूर्य की ऊंचाई तथा स्थिति का अंदाजा लगाना होता है।

साइंस जर्नल में एक अध्ययन के अनुसार यहां तक कि नवजात बतख के बच्चे भी पक्षी दिमाग की हमारी समझ के विचार को चुनौती देते हंै। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्राणीशास्त्रियों ने एक प्रयोग विकसित किया। 1 दिन की आयु के बतख के बच्चों को चलती-फिरती वस्तुओं के एक जोड़े के सामने ले जाया गया। दो वस्तुएं आकार या रंग में समान या भिन्न प्रकार की थी। फिर प्रत्येक बतख के बच्चों को चलती-फिरती वस्तुओं के दो पूर्णत: नए जोड़ों के सामने रखा गया था। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि उनके द्वारा अध्ययन किए गए बतख के बच्चों में से लगभग 70 प्रतिशत ने उसी आकार अथवा रंग वाली वस्तुओं के जोड़े की ओर जाने को प्राथमिकता दी जो पहले वाले के समान थे। दूसरे शब्दों में, पहले हरे रंग के दो चक्र दिखाए गए। बतख के बच्चों की नीले रंग के दो चक्रों की ओर जाने की संभावना अधिक थी, बजाए संतरी तथा वाइलेट चक्रों के एक बेमेल जोड़े के। बतख के बच्चे जन्म के थोड़ी ही देर बाद दिमाग में अंकित किए जाने वाली सीखने की एक तीव्र प्रक्रिया से गुजरते हैं - इससे ही वे अपनी माताओं की पहचान तथा उनके अनुकरण में समर्थ होते हैं। ये निष्कर्ष दर्शाते हैं कि बतख के बच्चे अपनी माताओं की पहचान करने के लिए रंग, आकार, आवाज तथा गंध जैसे संवेदी गुणों के मध्य के ठोस संबंधों का उपयोग करते हैं - जिसका अर्थ हुआ कि किसी पशु का बच्चा बिना किसी प्रशिक्षण के अवधारणाओं के मध्य संबंधों को सीख सकता है।

जब लोग दूसरों का ध्यान किसी ओर आकर्षित करना चाहते हैं तो वे ऐसा अपने हाथ/अंगुलियों से इशारा करके करते हैं। करेंट बायोलॉजी में रिपोर्टिंग करने वाले अनुसंधानकर्ताओं ने दर्शाया है कि यहां तक कि हाथी का बच्चा भी बिना किसी प्रशिक्षण के मानव के इशारों के सार को समझ लेता है और इसका उपयोग भोजन ढूंढने के लिए एक संकेत के रूप में कर सकता है। जहां तक इशारे के हाव-भावों को समझने की बात थी बंदी के रूप में जन्मे या रखे गए हाथी तथा जंगल में पैदा हुए हाथियों के मध्य कोई अंतर नहीं था। वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा संभव है कि हाथी अपनी लंबी सूंड़ का उपयोग करते हुए एक-दूसरे से संप्रेषण के साधन के रूप में इशारों जैसी किसी चीज से काम लेते हों। हाथी नियमित रूप से सूंड से कई प्रमुख संकेत देते हैं और इन संकेतों का कुछ 'अर्थ' हो सकता है।

घोड़े का बच्चा जीवन के पहले मिनट में उठ कर दौडऩे लगता है। व्हेल के बच्चे तत्काल अपने झुंड के साथ तैर सकते हैं। पिल्ले अपनी आंखें खोलने के कुछेक दिनों बाद ही सामाजिक स्तरों को समझ लेते है-''सामाजिक दर्जे में कौन ऊपर जा रहा है या कौन नीचे उतर रहा है, और कौन किसके साथ सो रहा है।''

पशु बुद्धिमता क्या है? जीवन ने मुझे सिखाया है कि उत्तर कोई मायने नहीं रखते: महत्वपूर्ण तो प्रश्न हंै। फ्रैन्स डी वाल द्वारा लिखित एक नई पुस्तक आर वी स्मार्ट एनफ टू नो हाउ स्मार्ट एनिमल्स आर?'' यह तर्क देती है कि पशुओं की मानसिक शक्तियां उससे कहीं अधिक जटिल हैं जितनी हम आमतौर पर मानते हैं। कई वैज्ञानिक पशु बुद्धिमता पर गलत प्रश्न पूछते हैं और पिंजरे में कैद जीव पर पुराने परीक्षण परिणामों पर दोष मढ़ देते हैं जबकि गलती प्रयोगशाला में परीक्षण करने वालों की थी।

वह लिखते हैं कि पशुओं की बुद्धिमता की तुलना मानवों से करना एक भूल है, और इसे इसके तरीके से ही देखा जाना चाहिए। क्लाक्र्स नटक्रैकर नामक एक पक्षी ठीक ढंग से यह याद रख सकता है कि उसने प्रत्येक वर्ष दबा दिए गए 20,000 पाइन नट को कहां रखा है - पर लोग हर समय कार की चाबियां कहां रखी हैं को भूलते रहते है। स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइन्सेस, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन ने दर्शाया है कि युवा मधुमक्खियां ऐसी जटिल गणितीय समस्याओं को हल कर सकती हंै जिनके लिए कम्प्यूटरों को कई दिन लगते हंै। ये छोटे कीड़े यादृच्छिक क्रम में फूलों के मध्य संभव लघुतम मार्ग की गणना कर पाने में समर्थ होते है।

लेखक कहते हैं कि चिंपाजी पहचान अध्ययनों में बेहतर कर सकते हैं यदि कोई उन्हें उनके माता-पिता से अलग करके डराने के बजाए पहले उन्हें राजी कर लेता। और यह चूहों तथा मछली पर भी लागू होता है। यदि आप वास्तव में जानना चाहते हैं तो पशु बुद्धिमता के संकेत आपके चारों ओर बिखरे पड़े हैं। जब आप किसी पशु को खाते है या उससे दुव्र्यवहार करते हंै तो आप अपने जैसी ही किसी बुद्धिमान - या आप से ज्यादा बुद्धिमान - जीव को खा रहे है। केवल एक बात जो पशु को ''मूर्ख'' सिद्ध करती है वह हिंसा के लिए हिंसा को सीख पाने से इंकार करना है, जिसे मानव के बच्चे को शैशव काल से ही अपने माता-पिता के शेष संसार के साथ क्रूर होने को देखते हुए सीखा जाता है।
लेखिका केन्द्रीय मंत्री व पशु कल्याण आंदोलन से संबद्ध हैं।

Updated : 21 Sep 2016 12:00 AM GMT
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