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जहां धर्म वहां विजय

जहां धर्म वहां विजय
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रूप नगर में एक दानी और धर्मात्मा राजा राज्य करता था। एक दिन उसके पास एक साधु आया और बोला, आप बारह साल के लिए मुझे अपना राज्य दे दीजिए या अपना धर्म दे दीजिए।



राजा बोला, धर्म तो नहीं दे पाऊंगा। आप मेरा राज्य ले सकते हैं। साधु राजगद्दी पर बैठा और राजा जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल में राजा को एक युवती मिली। उसने बताया कि वह आनंदपुर राज्य की राजकुमारी है। शत्रुओं ने उसके पिता की हत्या कर राज्य हड़प लिया है।

उस युवती के कहने पर राजा ने एक दूसरे नगर में रहना स्वीकार कर लिया। जब भी राजा को किसी वस्तु की आवश्यकता होती वह युवती मदद करती। एक दिन उस राजा से उस नगर का राजा मिला। दोनों में दोस्ती हो गई। एक दिन उस विस्थापित राजा ने नगर के राजा और उसके सैनिकों को भोज पर बुलाया। नगर का राजा हैरान था। यह देखकर कि उस विस्थापित राजा ने यह सारा इंतजाम कैसे किया।
विस्थापित राजा भी हैरान, तब उसने उस युवती से पूछा, तुमने इतने कम सयम में ये सारी व्यवस्थाएं कैसे की?

उस युवती ने राजा से कहा, आपका राज्य संभालने का वक्त आ गया है। आप जाकर राज्य संभालें। मैं युवती नहीं, धर्म हूं। एक दिन आपने राजपाट छोडक़र मुझे बचाया था, इसलिए मैंने आपकी मदद की। जो धर्म को जानकर उसकी रक्षा करता है। धर्म उसकी रक्षा करता है। जहां धर्म है वहां विजय है। इसलिए धर्म को गहराई से समझना आवश्यक है।

Updated : 16 Jan 2017 12:00 AM GMT
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