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''सुधीर राव दुरापे जिन्होंने बनाया रक्तदान महादान को जीवन का लक्ष्य''

सुधीर राव दुरापे जिन्होंने बनाया रक्तदान महादान को जीवन का लक्ष्य
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11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में लगातार 11 मिनट के अंतराल मे 7 प्रेशर कुकर मे रखे हुए बमो में विस्फोट हुए थे। जिसमे लगभग 209 व्यक्तियों की मौत हुई, और लगभग 700 व्यक्ति घायल हुए। इस सनसनीखेज घटना ने ग्वालियर निवासी सुधीर राव दुरापे का सपूर्ण जीवन ही बदल दिया।

"बम धमाको में हुई जनहानि और घायलों को अत्यधिक रक्त से बिगड़े हुए वस्त्रों में देखा तो सुधीर को इस घटनाक्रम ने अन्दर से बहुत झकझोर दिया था।"

इस घटना के बाद सुधीर का लगाव घायलो के प्रति बढता चला गया, और मुंबई निवासी कुछ मित्रों से संपर्क में रहे , तब सुधीर को मालूम चला की वहां पर घायल व्यक्तियों को रक्त की उपलब्धता न होने के कारण वो जिंदगी और मौत से जूझ रहे है, इस ह्रदय विदारक घटना ने सुधीर को अन्दर से बहुत झकझोर दिया साथ ही कुछ और घटनाक्रमों ने सुधीर को रक्तदाता बनने की प्रेरणा दी।

सुधीर ने सोचा की,

"अनायास दुर्घटना या बीमारी का शिकार हमारे ग्वालियर शहर में हममें से कोई भी हो सकता है। आज हम सभी सभ्य समाज के जिम्मेदार नागरिक है, जो केवल अपनी ही नहीं साथ-साथ दूसरों की भलाई के लिए भी सोचते हैं।"

सुधीर ने इसकी शुरुआत वर्ष 2007 में गंभीर रोग से पीडि़त बच्ची को रक्त देकर की, और ज्यादा से ज्यादा लोगो की समय पर जिंदगी बचाने के उद्देश्य से अकेले ही समय समय पर रक्तदान करते रहे। अपना खुद का रक्त दान करते-करते कुछ लोगो की जिंदगी बचाई, जो उद्देश्य था वो निभाने के लिए नौकरी के साथ-साथ रक्तदान करके समाज सेवा भी करते रहे।

"रक्तदान जीवनदान है। हमारे द्वारा किया गया रक्तदान कई जिंदगीयो को बचाता है। इस बात का अहसास हमें तब होता है जब हमारा कोई अपना खून के लिए जिंदगी और मौत के बीच जूझता है और हम उसे बचाने के लिए खून के इंतजाम की जद्दोजहद करते हैं।"

इसी को ध्यान में रखते हुए 2010 में रक्तदान शिविर लगवाया जिसमे 11 रक्तदाताओं को प्रेरित कर रक्तदान करवाया, इसके बाद से सुधीर अपने स्तर पर रक्तदान करने के लिए प्रेरित करते रहे और इसका क्रम चलता रहा ढ्ढ इतना सब कुछ करने के बाद भी सुधीर के मन में एक कसक रहती थी, की अभी जितना कार्य रक्तदान के लिए हो रहा है ये कम है और अपने उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए 2014 से निरंतर रक्तदान का कार्य कर रहे है अब अपनी जॉब छोड़ कर अपना सपूर्ण समय पुरे समर्पण के साथ अपना उद्देश्य (ज्यादा से ज्यादा लोगो की जान बचाना) पूरा करने में लगे हुए है।


"अभी तक सुधीर ने 25 बार रक्तदान किया है, 1300 व्यक्तियों की मदद कर चुके है।"


सुधीर ने बताया की, मुझे इस कार्य करने से आत्मिक शांति, सुकून मिलता है और मुझे जब किसी का रक्त उपलब्ध करने के लिए कॉल आता है तो मुझे उसकी 1 यूनिट ब्लड की सहायता करने के लिए के लिए कम से कम 20 डोनर्स को कॉल करना पड़ता है तब जाके 1 यूनिट ब्लड उपलब्ध करवा पाता हूं , इस प्रक्रिया में हुए मोबाइल और पेट्रोल के व्यय में किसी की भी आर्थिक सहायता नहीं मिलती और इस समाजसेवा में इतना मग्न हूं जिसके कारण में बेरोजगार हूं, आर्थिक सहायता मुझे मेरे परिवार से मिलती है इसमें मेरे पिताजी, भाई और पत्नी का विशेष सहयोग है। परिवार के सदस्यों एवं ईश्वर के सहयोग के कारण ही में अपना पूरा समयदान रक्तदान समाज सेवा के लिए कर रहा हूं।

सुधीर ने एक घटना के बारे में बताया की, रात के 9:15 बज रहे थे, किसी सज्जन का कॉल आया और बोला की में इन्दरगढ से आया हूं और मेरी पत्नी के पेट की अंदुरुनी नस फट गयी है जिसके कारण बहुत तबियत खराब हो गयी है, और डॉक्टर ब्लड लाने के लिए बोल रहे हंै और ऑपरेशन रुका हुआ है, इस घटना ने मुझे स्पॉट पर पहुचने पर मजबूर कर दिया और जब देखा तो वो लोग रो रहे थे उनको विश्वास दिलाया और....


"अपने सहयोगियो के माध्यम से उस महिला को 25 मिनट में 43 यूनिट ब्लड उपलब्ध कराया।"


यह दिन मेरे लिए सबसे खुशी का दिन था I

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Updated : 7 Jan 2017 12:00 AM GMT
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