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पर्यटन पर्व के प्रगति पथ


राजनेताओं के धार्मिक स्थलों पर जाने, वहां पूजा अर्चना की परंपरा पुरानी है। इसे उनकी व्यक्तिगत रुचि कहा जा सकता है। लेकिन नरेंद्र मोदी आध्यात्मिक भावना के साथ पर्यटन का विचार भी साथ लेकर चलते है। ऐसी कई यात्राओं में वह इसका प्रमाण दे चुके हंै। गोवर्धन पूजा के दिन वह केदारनाथ धाम पहुंचे यहां पूजा अर्चना की। लेकिन यह उनका एकमात्र उद्देश्य नहीं था। वह जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस समय से केदारनाथ के विकास की कल्पना उनके मन में थी। लेकिन व्यावहारिक कठिनाई के कारण वह ऐसा नहीं कर सके। प्रधानमंत्री बने तब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी। उसका सहयोग नहीं मिला। प्रदेश के भाजपा की सरकार बनने के बाद मोदी ने इस दिशा में कदम उठाने की पहल की। ऐसा नहीं की वह कपाट बंद होने के पहले मंदिर पहुंच गए और इस अवसर पर कुछ योजनाओं का शिलान्यास कर दिया। बल्कि मोदी पिछले कई महीने से इस दिशा में प्रयास कर रहे थे। उन्होंने हिमालय क्षेत्र का बहुत भ्रमण किया है। यहां की स्थिति और आवश्यकताओं की उन्हें समझ है। केदारनाथ के लिए जिन पांच योजनाओं का उन्होंने शिलान्यास किया, उसमें खुद रुचि दिखाई थी। यहां के पुरोहितों का जीवन बहुत कठिन होता है। सुविधाओं ंका अभाव होता है। इनके लिए आवासीय व्यवस्था का बेहतर इंतजाम होगा। सड़क को चौड़ा करने के साथ वहां सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएगी। मंदाकनी और सरस्वती पर सुंदर घाटों का निर्माण होगा।

इधर दिवाली को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अयोध्या के विकास हेतु कई योजनाओं का शिलान्यास किया था। यह भी पर्यटन और तीर्थाटन को बढ़ावा देने की नीति के अनुकूल कदम थे। भारत जैसी प्राकृतिक विविधता और प्राचीन धरोहर विश्व के अन्यत्र दुर्लभ है। यहां वैश्विक आकर्षण के असंख्य केंद्र है। इसमें आध्यात्मिक पर्यटन भी शामिल है। दक्षिण भारत पर विदेशी आक्रांताओं का प्रकोप कम रहा। इसलिए वहां आज तक ऐसे भव्य मंदिर सुरक्षित हैं। हिमालय का पूरा क्षेत्र विलक्षण है। यहां आध्यात्म से लेकर एडवेन्चर तक सब कुछ है। प्रकृति के सभी रूप यहां विविधता से भरे हैं। ये आकर्षित करते हैं। हिन्दू तीर्थाटन के लिए तो सब कुछ यहीं है। ब्रह्मा जी की आराधना उज्जैन में होती है। उज्जैन केंद्र से इनकी दूरी भी चकित करती है। उस समय दूरी नापने की आज जैसी तकनीक नहीं रही होगी। उज्जैन से काशी विश्वनाथ, बैजनाथ धाम और मल्लिकार्जुन की दूरी समान रूप से नौ सौ निन्यानबे है। रामेश्वर एक हजार नौ सौ निन्यानबे, सोमनाथ सात सौ सतहत्तर, ओंकारेश्वर एक सौ ग्यारह, भीमाशंकर छह सौ छांछठ, केदारनाथ आठ सौ अठासी किलोमीटर की दूरी पर है। इन सबको क्रमश: उत्तर से दक्षिण लाइन से मिलाएं अपने आप संख की आकृति बन जाएगी। यह रोचक तथ्य विश्व के सामने आने चाहिए थे। इन्हें विश्व पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए जितना प्रयास होना चाहिए था, वह नहीं किया गया। यह मानना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर बहुत ध्यान दिया है। उन्होंने जो स्वच्छता अभियान चलाया है, उसका एक सूत्र पर्यटन से ही जुड़ता है। धार्मिक स्थलों के विशेष पर्व, मेला आदि में सभी सरकारें व्यवस्था करती रही है। फिर भी स्थाई ढांचागत विकास पर भी ध्यान देना चाहिए था। नरेंद्र मोदी इसी कमी को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।

Updated : 23 Oct 2017 12:00 AM GMT
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