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चार हजार साल पुराने शादी के करार में मिला सेरोगेसी और बांझपन का जिक्र

चार हजार साल पुराने शादी के करार में मिला सेरोगेसी और बांझपन का जिक्र
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अंकारा।
सेरोगेसी तकनीक के जरिए आज बेऔलादों को भी औलाद का सुख मिल रहा है। पिछले कुछ सालों में इसका चलन काफी बढ़ा है, मगर एक रिसर्च की मानें तो सेरोगेसी की शुरूआत कुछ चार हजार साल पहले हुई थी। कम से कम तुर्की में मिले चार हजार साल पहले के शादी के करार से जुड़े दस्तावेज तो इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। इस दस्तावेज में सेरोगेसी और बांझपन के सबूत मिले हैं।

मिट्टी के टेबलेट पर लिखे इस करार में ये साफ था कि अगर किसी जोड़े को शादी के दो साल के भीतर बच्चा नहीं होता है तो वो किसी महिला गुलाम की कोख किराए पर ली जा सकती है। इसमें ये भी लिखा है कि पहला 'लड़का' होने के बाद उस गुलाम औरत को आजाद कर देना चाहिए। पुरातत्वविदों को ये कॉन्ट्रैक्ट तुर्की के केसेरी प्रांत से मिला है। डेली मेल में छपी खबर के मुताबिक, मिट्टी से बना ये असीरियन मैरिज कॉन्ट्रैक्ट शुरूआती सभ्यताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली क्यूनिफॉर्म लिपि में लिखी गई है। तुर्की के हारन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस प्रोजेक्ट के लीड रिसर्चर अहमत बर्कत्ज टर्प ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार ऐसा इसलिए किया जाता था, ताकि कोई परिवार बिना किसी वंश के न रह जाए। तुर्की के जिस कुलटेपे प्रांत में ये टैबलेट मिला है, वो पुरातत्वविदों के अनुसार, 21वीं से 18वीं ईसा पूर्व सदी में यहां असीरियन सभ्यता का विकास हुआ था।

मानव के सभ्यता इतिहास में असीरियन सभ्यता सबसे पहली सभ्यताओं में से एक थी। इस टैबलेट को तुर्की के आॅर्कियोलॉजिकल म्यूजियम में रखा गया है। ये रिसर्च गाइनोकोलॉजिकल एंडोक्राइनोलॉजी जर्नल में भी छपी है। इस रिसर्च में जो सबसे रोचक तथ्य जो सामने आया है वो ये है कि 4 हजार साल पहले भी इंसानों में बांझपन की समस्या थी। यानि इससे ये साफ होता है कि आज की बदलती जीवनशैली में ही ये परेशानी नहीं है, बल्कि इंसान पहले से ही ये इससे जूझता रहा है। लेकिन साथ ही इसने इस तथ्य को भी और मजबूत कर दिया है कि समाज में हमेशा से ही लड़के की ही चाह रही थी।

Updated : 16 Nov 2017 12:00 AM GMT
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