Home > Archived > अमेरिका के जीपीएस से दस गुना बेहतर होगा हमारा 'नाविक

अमेरिका के जीपीएस से दस गुना बेहतर होगा हमारा 'नाविक

अमेरिका के जीपीएस से दस गुना बेहतर होगा हमारा नाविक
X

धनबाद। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) उपग्रह आधारित निगरानी प्रणाली विकसित कर रहा है। इसके जरिये देश के चप्पे-चप्पे पर पैनी नजर रखी जा सकेगी। इसरो के असिस्टेंट जनरल मैनेजर विश्वजीत सिंह के मुताबिक इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) के अगले साल जून तक लॉन्च होने की उम्मीद है।

सेटेलाइट आधारित स्वदेशी निगरानी प्रणाली से देश की सीमाओं सहित आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को मजबूती मिलेगी। सुदूर क्षेत्रों, पर्वतों, जंगलों आदि में भी छोटी से छोटी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी। इसरो के इस ‘रडार’ पर सब कुछ होगा। खास बात यह कि नक्सल प्रभावित इलाकों की सटीक मॉनीटरिंग में यह कारगर साबित होगा। दावा किया जा रहा है कि स्वदेशी प्रणाली अमेरिका की जीपीएस (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम) प्रणाली से दस गुना बेहतर साबित होगी।

अगले साल होगी लॉन्च

इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) यानी भारतीय क्षेत्रीय निगरानी उपग्रह प्रणाली पर सभी काम पूरा हो चुका है। सब कुछ ठीक रहा तो आईआरएनएसएस का रिकवर मॉड्यूल मई-जून 2018 तक अंतरिक्ष में स्थापित हो जाएगा। इस प्रणाली को ‘नाविक’(एनएवीआईसी यानी नेवीगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन) नाम भी दिया गया है।
अब तक इस तरह की प्रणाली केवल अमेरिका (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम, जीपीएस), रूस (ग्लोबल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम, ग्लोनास), यूरोप (गैलीलियो) और चीन (कॉमपास) के पास है। इसरो इस पर 2011 से काम कर रहा। 2103 से 2016 के बीच इस प्रोजेक्ट से जुड़े सात उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किए गए। इनमें से पहला उपग्रह, जिसे जुलाई 2013 में स्थापित किया गया था, में कुछ अड़चन आने के कारण अगस्त 2017 में इसकी जगह नया उपग्रह स्थापित करने का प्रयास किया गया। जो सफल नहीं हो सका।

जीपीएस से दस गुना बेहतर

स्वदेशी निगरानी प्रणाली अमेरिका की जीपीएस प्रणाली से दस गुना अधिक प्रभावी होगी। इसरो के सहायक प्रबंधक विश्वजीत सिंह ने एक खास बातचीत में बताया कि स्वदेशी तकनीक बेजोड़ है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि जल्द ही यह प्रोजेक्ट पूरा कर लिया जाएगा। इस वर्ष हमारा प्रक्षेपण अभियान विफल हो गया था। अब इसे पुन: लॉन्च किया जा रहा है। इस बार सफलता की पूरी उम्मीद है।

ऐसे बनेगा निगरानी तंत्र

विश्वजीत ने बताया कि नेविगेशन सेटेलाइट की मदद से भारत अपने चारों ओर 1500 किमी के इलाके पर नजर रख सकेगा। इससे हमारे देश की सीमाएं सुरक्षित होंगी। रिकवरी माड्यूल के अंतरिक्ष में स्थापित होने के बाद भारत के प्रत्येक राज्य में रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर स्थापित होंगे। इससे एकीकृत सतत आंतरिक निगरानी तंत्र विकसित किया जा सकेगा। झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में नक्सलवाद की समस्या है।

इन सेंटर्स के बनने पर हम इस समस्या से भी कारगर तौर पर निपट सकते हैं। सेटेलाइट के जरिए हम चप्पे-चप्पे पर पैनी नजर रख सकेंगे और सुरक्षा एजेंसियों को सही और सटीक जानकारी समय पर देने में सक्षम होंगे। यह प्रणाली लोकेशन बेस्ड सर्विस देगी। भारतीय नौवहन में सहयोग के अलावा इससे वायुसेना को भी मदद मिलेगा। दुश्मन को लोकेट और टारगेट कर अचूक वार किया जा सकेगा।

हमें उम्मीद है कि अगले साल जून तक हम इसे लॉन्च कर देंगे। यह प्रणाली भूस्थिति, भूभागीय निगरानी के अलावा समुद्री नौवहन, उड्डयन, वायुसेना, नौसेना, आंतरिक सुरक्षा, सीमाओं की निगरानी, आपदा प्रबंधन में मददगार साबित होगी। यह अब तक की सबसे बेहतर प्रणाली है।

Updated : 21 Dec 2017 12:00 AM GMT
Next Story
Top