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विंटर वेकेशन को रोमांच से भर देगा मध्यप्रदेश का यह टूरिज्म स्पॉट...

विंटर वेकेशन को रोमांच से भर देगा मध्यप्रदेश का यह टूरिज्म स्पॉट...
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राजधानी भोपाल से 50 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव। मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में आने वाले इस गांव को लुटेरों ने कई बार लूटा, पुरातत्ववेत्ताओं के हाथों इस गांव को कई बार विध्वंस झेलना पड़ा। लेकिन आज ये न केवल मध्यप्रदेश का ऐतिहासिक स्थल इतिहास की रोचक कहानी बनकर विश्वपटल पर छाया, बल्कि इसकी अद्भुत वास्तुकला, मूर्तिकला, मीनाकारी और रचनात्मकता भी इसे पर्यटकों के लिए बेस्ट हिस्टॉरिकल प्लेस बनाती है। यही नहीं अगर आप आध्यात्मिक प्रवृत्ति के हैं, तो अध्यात्म इस गांव के कण-कण में बसा है। मध्यप्रदेश की तीन विश्व विरासतों में शामिल इस गांव का नाम है सांची...।

आप ऐतिहासिक और आध्यात्मिक यादों के साथ संजोना चाहते हैं, तो यह एक बेस्ट पिकनिक स्पॉट हैं...तो आईए चलते हैं सांची...।

* मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित सांची गांव भोपाल से करीब 50 किमी पूर्वोत्तर में तथा बेसनगर और विदिशा से 10 किमी की दूरी पर स्थित है।
* यह मध्यप्रदेश के मध्य भाग में बसा है।
* यहां तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के बौद्ध स्मारक हैं।
* आपको बताते चलें कि सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है।
* यहीं है सांची का स्तूप। ये तोरण से घिरा है।
* ये स्तूप प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं।
* सांची का स्तूप, सम्राट अशोक महान ने तीसरी सदी, ई.पू. में बनवाया था।
* बौद्धधर्म में ईश्वरवादी सिद्धांत के जगहों पर शिक्षा का महत्व है।
* बौद्ध वास्तु शिल्प की सर्वोत्तम कृतियां सांची में हैं। इनमें 'स्तूप', 'तोरण', 'स्तंभ' शामिल हैं।
* 'स्तूप' शब्द संस्कृत व पाली से निकला माना जाता है।
* इसका अर्थ है 'ढेर'।
* शुरुआत मेंं केंद्रीय भाग में तथागत के अवशेष रख उसके ऊपर मिट्टी पत्थर डालकर इनको गोलाकार आकार दिया गया।
* इनमें बाहर से ईटों व पत्थरों की ऐसी चुनाई की गई, ताकि खुले में इन स्तूपों पर मौसम का असर न हो सके।
* इनमें स्तूप संख्या 1 सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था, जिसमें महात्मा बुद्ध के अवशेष रखे गए।
* इसके शिखर पर एक छत्र था, जो स्मारक को दिए गए सम्मान का प्रतीक था।
* यहां पर दो अन्य छोटे स्तूप भी हैं जिनमें उनके दो शुरुआती शिष्यों के अवशेष रखे गए हैं।
* पहले स्तूप की 'वेदिका' में जाने के लिए चारों दिशाओं में तोरण द्वार बने हैं।
* पूरे स्तूप के बाहर जहां पहले कठोर लकड़ी हुआ करती थी, वहां आज पत्थरों की रेलिंग है।
* स्तूप की वेदिका में प्रवेश के लिए चार दिशाओं में चार तोरण हैं।
* सांची के इन स्मारकों की भव्यता तो आकर्षण का केंद्र है ही, यहां का शांत वातावरण हर आने वाले को महात्मा बुद्ध के शांति के संदेश समझने में मदद करता है।
* एक ब्रिटिश अधिकारी, जनरल ट्रेलर ऐसे पहले इतिहासकार थे, जिन्होंने 1818 में सांची स्तूप को खोजा था।
* चोरों, लुटेरों, बेरोजगारों और खजाने के लालचियों ने कई बार इसका विध्वंस किया, जिससे यह क्षत-विक्षत अवस्था तक पहुंचा।
* 1818 में इसका जीर्णोद्धार कार्य शुरू किया गया।
* 1912-1919 के बीच जितना निर्माण किया जा सका, आज उसी रूप में सांची के स्तूप हमारे सामने हैं।
* स्तूप का निर्माण कार्य जॉन मार्शल की देखरेख में ही किया गया।
* वर्तमान में 50 स्मारक स्थल सांची के टीले पर मौजूद हैं। इनमें तीन स्तूप और कई मंदिर शामिल हैं।
* सांची के स्तूपों के पास एक बौद्ध मठ ह।
* ये अवशेष वे हैं जहां बौद्ध भिक्षुओं के आवास थे।
* यहीं पर पत्थर का वह विशाल कटोरा है, जिससे भिक्षुओं के बीच अन्न का वितरण किया जाता था।
* यहां पर मौर्य, शुंग, कुषाण, सातवाहन व गुप्तकालीन अवशेषों सहित छोटी-बडी कुल चार दर्जन संरचनाएं हैं। शुंग काल में सांची में अशोक द्वारा निर्मित स्तूप को विस्तार दिया गया जिससे इसका व्यास 70 फीट बढकर 120 फीट व ऊंचाई 54 फीट हो गई। इसके अलावा यहां पर अन्य स्तूपों का निर्माण कराया गया हैं।
* इन स्मारकों को 1989 में यूनेस्को ने विश्वधरोहर घोषित किया।
* यह स्तूप एक ऊंची पहाड़ी पर बनाए गए हैं।
* इन स्तूपों के चारों ओर सुंदर परिक्रमा पथ है।
* आपको बता दें कि पत्थरों की इन नक्काशियों में बुद्ध को कभी भी मानव आकृति में नहीं दिखाया गया। बल्कि कारीगरों ने उनके जीवन की घटनाओं को ध्यान रखते हुए इन पर नक्काशी की है।
* उदाहरण के लिए उन्होंने अपने पिता का घर त्याग किया था, तब वे घोड़े पर वहां से निकले थे। इस घटना के मद्देनजर उन्हें कहीं घोड़े के रूप में दर्शाया गया है, तो कहीं उनके पदचिह्नों का प्रयोग किया गया है।
* कहीं महात्मा बुद्ध बोधिवृक्ष के नीचे बने चबूतरे के रूप में नजर आते हैं, जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
* इतिहासकार मानते हैं कि यहां बने मंदिरों में 17 नंबर मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर है।
* इतिहासकार इस काल को ही गुप्तकाल के आरंभ का निर्माणकाल मानते हैं।
* इसमें एक चपटी छत के वर्गाकार गर्भ गृह में द्वार मंडप और चार स्तंभ बनाए गए हैं।
* इसकी खूबसूरत नक्काशी में परम्परागत छवि दिखाई देती है।
* यहां एक पुरातत्व संग्रहालय भी है।
* वर्ष 1919 में इसे स्तूपों के निकट बनाया गया था।
* जैसे-जैसे सामग्री की प्रचुरता होने लगी इसे 1986 में सांची की पहाड़ी के आधार पर नए संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया।
* इस पुरातत्व संग्रहालय में मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुषाण, गुप्त कालीन प्रस्तर कला के अवशेष, मूर्तियां, शिलालेख आदि देखने को मिलते हैं।
* 2012 में यहां सांची बौद्ध विश्वविद्यालय भी शुरू किया गया है।
* सांची से 5 मील दूर सोनारी के पास 8 बौद्ध स्तूप हैं। यहां पहले बौद्ध विहार भी थे।
* यहां एक सरोवर भी है, माना जाता है कि इसकी सीढिय़ां बौद्ध के समय की हैं।
* सांची से 12 किमी दूर हेलियोडोरस का स्तंभ है।
* पर्यटक यहां आकर इसे देखना नहीं भूलते।
* कहा जाता है कि हेलियोडोरस तक्षशिला के राजा के राजदूत थे।
* इन्होंने यहां आकर वैष्णव धर्म अपनाया।
* इसकी स्मृति में उन्होंने हेलियोडोरस स्तंभ का निर्माण करवाया था।
* इस स्तंभ को गरुड स्तंभ और बाबा खंभा भी कहा जाता है।
* मान्यता यह भी है कि सांची के स्तूप में महामोगलन और सारी पुत्र की अस्थियां रखी हुई हैं।
यह भी जानें
* यहां अशोक द्वारा निर्मित एक महान स्तूप, जिनके भव्य तोरण द्वार तथा उन पर की गई मूर्तिकारी भारत की प्राचीन वास्तुकला तथा मूर्तिकला के सर्वोत्तम उदाहरणों में हैं।
* बौद्ध की प्रसिद्ध ऐश्वर्यशालिन नगरी विदिशा (भीलसा) के निकट स्थित है।
* कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बौद्धकाल में सांची, महानगरी विदिशा की उपनगरी तथा विहार-स्थली था।
* सर जोन मार्शल के अनुसार कालिदास ने नीचगिरि नाम से जिस स्थान का वर्णन मेघदूत में विदिशा के निकट किया है, वह सांची की पहाड़ी ही है।
* कहा जाता है कि अशोक ने अपनी पत्नी देवी के कहने पर ही सांची में यह सुंदर स्तूप बनवाया था।
अभिलेखों में सांची
* सांची से मिलने वाले कई अभिलेखों में इस स्थान को काकनादबोट नाम से उल्लेखित किया गया है।
* इनमें से प्रमुख 131 गुप्त संवत (450-51) ई. का है, जो कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल से संबंधित है।
* एक अन्य गुप्तकालीन लेख भी यहां मिला है। एक स्तंभ पर उत्कीर्ण इस लेख का संबंध गोसुरसिंहबल के पुत्र विहारस्वामिन से है।
यूनानी झलक भी है इसका आकर्षण
* सांची की दीवारों की बॉर्डर पर बने चित्रों में यूनानी पहनावा भी नजर आता है।
* यूनानी वस्त्र, मुद्रा और वाद्य यंत्रों की मीनाकारी से स्तूप पर बेहतरीन मीनाकारी की गई है।
* आपको बता दें कि सांची स्मारकों की भव्यता उसकी अलौकिक सुंदरता को देखने तथा अध्यात्म को महसूस करने यहां हर रोज हजारों पर्यटक पहुंचते हैं।
* इन हजारों पर्यटकों में सबसे ज्यादा उन देशों के पर्यटक शामिल हैं, जो बौद्ध धर्म से प्रभावित हैं।
* सांची के इस पर्यटन स्थल के प्रबंधन व संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है।
कब जाएं
यहां घूमने के लिए अक्टूबर से मार्च का सीजन बेस्ट है। यही कारण है कि विंटर वेकेशन हों, क्रिसमस सेलेब्रेशन हो या फिर न्यू ईयर पार्टी अध्यात्म और इतिहास के दीवाने यहां जश्न मनाने पहुंच ही जाते हैं।
कैसे पहुंचें
सांची के लिए हवाई जहाज, रेल, बस आदि के माध्यम से आराम से यहां पहुंच सकते हैं। खुद का वाहन हो तो क्या कहने सफर आसान तो होता ही है मजेदार भी बन जाता है।
हवाई मार्ग : निटकतम हवाई अड्डा है राजा भोज। इसकी फ्लाइट दिल्ली, मुम्बई जैसे शहरों से रोज होती है।
रेल मार्ग : निटकतम रेलवे स्टेशन भोपाल जंक्शन, हबीबगंज में हैं, जो देश के सभी बड़े शहरों से जुड़े हुए हैं।
बस मार्ग : बस के माध्यम से भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। सांची, भोपाल से करीब 50 किमी दूर है, विदिशा से 10 किमी और इंदौर से 232 किमी की दूरी पर है।
कहां ठहरें
यहां आधुनिक सुविधाओं से संपन्न होटल हैं, जिनमें ठहरने और खाने-पीने की पर्याप्त सुविधाएं हैं। इसके अलावा सरकारी स्तर पर भी ठहरने के लिए माकूल व्यवस्थाएं की गई हैं। यही नहीं यहां आने से पहले आप इंटरनेट के माध्यम से होटल की बुकिंग भी एडवांस में करवा सकते हैं। कुछ होटल आपको 50-75 परसेंट तक का डिस्काउंट ऑफर तक देते हैं।
क्या खाएं
यहां आप कई तरह के इंडियन फूड के साथ फास्ट फूड, चाइनीज फूड का मजा ले सकते हैं।

Updated : 23 Dec 2017 12:00 AM GMT
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