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‘कुछ ऐसा करो जो दूसरों के लिए प्रेरणादायी बन जाए’

‘कुछ ऐसा करो जो दूसरों के लिए प्रेरणादायी बन जाए’
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-हरीश उपाध्याय

शख्सियत कॉलम में हम उस शख्स या प्रतिभा का साक्षात्कार आपसे कराते हैं जिसका जीवन,कृतित्व, प्रेरणा एवं त्याग दूसरों के लिए प्रेरणादायी बने। इस कॉलम में हम आज रामकृष्ण आश्रम मिशन के कोषाध्यक्ष स्वामी सुप्रदीप्तानंद जी के अनुभव व जीवन के यात्रा वृत्तांत से परिचय करवा रहे हैं जो उन्हें आज इस मुकाम तक ले आया है । -संपादक



एक पुरानी कहावत है कि पूत के पैर पालने में ही दिख जाते हैं, इस कहावत को पूर्ण रुप से चरितार्थ किया है रामकृष्ण आश्रम के कोषाध्यक्ष एवं रामकृष्ण विद्या मंदिर ,सीबीएसई के प्राचार्य स्वामी सुप्रदीप्तानंदजी ने, उनसे लिए गए एक साक्षात्कार में आपने कहा कि जब मैं कक्षा तीन या चार में पढ़ता था उसी दौरान मन उद्वेलित होने लगा कि समाज के लिए कुछ करना है और उस मार्ग को तलाशने के लिए घर से निकलने की योजना भी बना ली थी लेकिन फिर संयम से काम लिया और सोचा कि यह मार्ग काफी गंभीर है और यहीं रहकर अपने लक्ष्य को अंजाम दूंगा और स्वयं को समाज में डालने का प्रयास शुरू कर दिया। इस तरह जनहितार्थ के भाव का बीजारोपण बाल्यकाल में ही हो गया था ।

नागपुर विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में स्नातकोत्तर करने वाले स्वामी सुप्रदीप्तानंद पहले नागपुर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने, आपने बताया कि प्राध्यापक बनने पर यह सवाल मुझे काफी कचोटता रहा कि ऐसी क्या चीज है जिसे पाने से मन सब पा लेगा , यही मैं सोचता रहता था, मन को शांति नहीं मिल पा रही थी। प्राध्यापक बन गया, पैसा कमा लूंगा , साठ वर्ष तक रोजगार निश्चित है, लेकिन यह सब मुझे अधूरा सा लगता रहा। सोचा कि खुद के लिए जिए तो क्या जिए, जिंदगी ऐसी हो जो दूसरों के लिए हितकारी हो ,हम समाज को क्या दे पायेंगे । इन्हीं सब अंतरद्वंद्व के चलते मैं रामकृष्ण मठ नागपुर गया । वहां की संयमित दिनचर्या और वहां के तपस्वी लोगों के जीवन के उद्देश्य को देखकर काफी प्रभावित हुआ । इसी आश्रम में स्वामी राघवेंद्रानंदजी मिले उन्हें अपनी हृदयात्मक पीढ़ा बताई। उन्होंने मुझे कुछ पुस्तकों को अध्ययन करने के लिए दिया ,उन्हें पढ़ा तो लगा कि अपने जीवन के लक्ष्य का रास्ता अब मिल गया है। स्वामी राघवेंद्रानंद जी के कहने पर मैने सन् 1998 में दीक्षा ले ली, फिर मन भटकाव से शांत हो गया । उस समय मेरी उम्र 29 वर्ष की थी । दीक्षा के समय तक मैं घर में निवास करता था एवं दीक्षा के 1 वर्ष बाद घर छोड़कर कोलकाता के रामकृष्ण आश्रम में चला गया। वहां नियमित व संयमित दिनचर्या की शुरूआत हो गई । अध्ययन करना, योग ,ध्यान आदि वहां की दिनचर्या में शामिल था । बेलूर मठ में 2 वर्ष रहा ।

स्वामी सुप्रदीप्तानंद ने कहा कि 2 वर्ष के प्रशिक्षण व अध्ययन के बाद बेलूर मठ से मुझे देश के कई आश्रमों में भेजा गया जहां वेद वेदांत, उपनिषद, हिंदी व अंग्रेजी का ज्ञान कराया गया, साथ ही मन की शंकाओं का समाधान भी स्वामियों से करवाया गया। इस दौरान मुझे परिपक्व समझ अरुणाचल प्रदेश भेजा । यहां शियांग में रामकृष्ण आश्रम द्वारा संचालित विद्यालय में लगभग 5 वर्ष तक अपनी सफलतापूर्वक सेवाएं दीं। स्वामी सुप्रदीप्तानंद ने कहा कि मेरी लगन व ऊर्जा को देखते मिशन ने मुझे अरुणाचल प्रदेश के बाद म्यांमार भेजा, यहां भी म्यांमार बॉर्डर पर रामकृष्ण मिशन का विद्यालय संचालित हो रहा है, का काम देखा उसके बाद बेलूर मठ के आदेश के तहत ग्वालियर आ गया हूं और जहां भी उसी उद्देश्य को लेकर काम कर रहा हूं जो दूसरों के लिए प्रेरणादायी बने।

बुराइयों से झगड़ो मत,स्वयं अच्छा बनो

स्वामी सुप्रदीप्तानंद महाराज का कहना है कि कभी भी बुराइयों से झगड़ना नहीं चाहिए ,स्वयं अच्छा करते रहो तो बुराई स्वत: ही पीछे हट जाएगी। स्वयं इतना अच्छा बनो की बुराई हमें छू ना सके । बुराई से झगड़ने में स्वयं की शक्ति का हृास होता है। हमारा दृष्टिकोण अच्छाई वाला होना चाहिए।

विद्यार्थी ऐसे तैयार हों जिनमें देश प्रेम की भावना भी हो

स्वामी सुप्रदीप्तानंद ने बताया कि ग्वालियर का आश्रम 1 नवंबर 2016 को बेलूर मठ से जुड़ गया है। यहां बेलूर मठ से मेरे साथ ही स्वामी राघवेंद्रानंदजी महाराज, स्वामी तेजोम्यानंदजी महाराजजी आए हैं। और हम तीनों स्वामी ग्वालियर रामकृष्ण आश्रम के उत्थान के लिए प्रयासरत हैं। अभी आश्रम द्वारा रामकृष्ण विद्या मंदिर ‘सीबीएसई’, रामकृष्ण विद्या मंदिर ‘स्टेट बोर्ड’, रोशनी संस्था ,शारदा नाद संगीत विद्यालय,वाचनालय संचालित हैं। साथ ही आॅनलाइन स्टडी, स्कूल मैनेजमेंट आनलाइन, नियमित योगा ,आॅडियो विजुअल कक्ष शुरू हो गए हैं । इसके अलावा आयुष एवं प्राकृतिक चिकित्सा हेतु क्लीनिक शुरू की जा रही है , जिसका लाभ शहर की जनता को भी मिल सकेगा। इसके अलावा इन विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को इस तरह तैयार किया जा रहा है कि वे राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत रहते हुए वे शिक्षा जगत में इन विद्यालयों का नाम रोशन करें और भविष्य में किसी भी क्षेत्र में शिखर पर पहुंचकर अपनी एक अलग पहचान बनाएं।

भगवा वस्त्र धारण करना आसान नहीं

भगवा वस्त्र के संदर्भ में पूछने पर स्वामी सुप्रदीप्तानंद महाराज ने कहा कि भगवा वस्त्र पहनना आसान नहीं है उसकी गरिमा का अनुसरण करना पड़ता है। काफी त्याग, तपस्या, अध्ययन के बाद ही भगवा वस्त्र अपनी गरिमा को गौरवान्वित कर सकता है।

Updated : 8 Dec 2017 12:00 AM GMT
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