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मानस ताल के चतुर रखवारे हैं पूज्य मोरारी बापू

मानस ताल के चतुर रखवारे हैं पूज्य मोरारी बापू
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जे गावहिं यह चरित संभारे। तेई एहि ताल चतुर रखवारे।।

कथावाचकों के लिए रखी गई इस कसौटी पर खरे उतरते हैं, पूज्य मोरारी बापू। अपने जीवन का प्रत्येक क्षण राम कथा को समर्पित करने वाले इस महात्मा का दर्शन मात्र ही हृदय में रामभक्ति उत्पन्न करने वाला है। इस कराल कलि काल में रामचरित मानस जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दिशा देने वाला सद्ग्रन्थ है। गोस्वामी जी ने उसे ‘पुध विश्राम सकल जन रंजनि’ कहकर विद्वान और साधारण व्यक्ति के लिए समान रूप से आनंददायक बताया है। इन दोनों वर्गों के अपने-अपने प्रश्न हंै, जिनका उत्तर मानस से देने की सामर्थ्य विरले महापुरुषों में ही है और उन्हीं में से एक नाम है पूज्य मोरारी बापू।

प्रत्येक अवसर पर देश काल वातावरण के अनुसार मानस के किसी प्रसंग का चयन करना और फिर उसी को आधार बनाकर मानस मंथन करते हुए, अन्य सद्ग्रंथों का उल्लेख करते हुए समस्त प्रश्नों के युगानुकूल उत्तर देना आपकी विशिष्टता है। उनके शब्दें में कहें तो ‘‘रामकथा गंगा की तरह गोमुख से निकलकर गंगासागर तक विस्तीर्ण होती चली गई।’’ आपकी सादगी, सहजता, सरलता, मानस के प्रति प्रेम अद्भुत है। रामकथा का गायन आप एक चतुर रखवारे की तरह कर रहे हैं। ताकि इस मानस रूपी ताल में कोई विकृति उत्पन्न न कर सके। गोस्वामी जी के दृष्टिकोण को जैसा का तैसा जनमानस के समक्ष रखने का काम बापू अत्यन्त प्रभावी ढंग से कर रहे हैं। अपनी कथाओं के माध्यम से वे समाज की ज्वलन्त समस्याओं पर मानसकार के विचारों से हमें न केवल अवगत कराते हैं बल्कि मानस में छिपे अनमोल मोती भी खोज कर श्रोताओं को बांटते हैं, जिनसे मानस दरिद्रता को सहज ही दूर किया जा सकता है। मानस के पात्रों को आधार बनाकर बापू सामाजिक समस्याओं के हल खोजने में मदद करते हैं। राष्ट्र, परिवार, युवा पीढ़ी, समाज सेवा, विज्ञान, धर्म, अध्यात्म जगत के कर्णधार कौन हो सकते हैं इसका निरुपण वे अत्यन्त पटुता से करते हैं और घोषणा करते हंै कि ‘‘मेरे लिए तो धर्म जगत का ‘मानस’ ही कर्णधार है’’ साथ ही इस पक्ति का उल्लेख करना भी नहीं भूलते कि -


प्रीति प्रतीति जहां जाकी। तहं ताको काज सरौ।।
अपनो काम राम नामहि सों। तुलसिहि समुझि परौ।।


भारतीय संस्कृति की इन विशेषताओं को वे रेखांकित करते हैं कि -निन्दा करना पाप है, निदान करना धर्म है। परमतत्व अपना हित नहीं करता है, परमहित करता है। एक दरवाजा बन्द हो तो गुरु सौ दरवाजे खोल देता है। मुस्कराहट परमात्मा का वरदान है। जहां प्रयोजन है वहां दीवारें है। व जहां प्रेम है वहां द्वार है। संदेह अलग करते है। विश्वास से जुड़ना होता है। अखण्ड सुमिरन का नाम है भजन। सत्य लिया जाए, प्रेम दिया जाए, करुणा में जिया जाए। व्यक्ति और राष्ट्र बाहर से स्वच्छ हो भीतर से पवित्र हो। धर्म का कभी विवाद नहीं होना चाहिए, धर्म संवाद होना चाहिए। गुणाभिमान आदमी का पतन करता है।

आपकी दृढ़ मान्यता है कि धार्मिक जीवन बिलग है, आध्यात्मिक जीवन बिलग है। धार्मिक जीवन अपने पूर्वजों अथवा पूर्वाचार्यों के दृष्टिकोण पर एक ही दिशा में चलता है। अध्यात्म जीवन सर्व को छूता है। राम पूर्णत: अध्यात्म हैं, अध्यात्म सबको छूता है। उसमें ध्यान का भी स्वीकार, पूजा का भी स्वीकार, अर्चा का भी स्वीकार, आरती का भी स्वीकार, धूप का भी स्वीकार, साकार का भी स्वीकार, निराकार का भी स्वीकार। भारत का प्राणतत्व है अध्यात्म। पूज्य बापू अपने कथा दर्शन के माध्यम से इसी अध्यात्म को जन सामान्य के मध्य स्थापित कर रहे हैं। वे कहते हैं ‘‘जब तक आपके मन में शिकायत है, आप धार्मिक हो सकते हो आध्यात्मिक नहीं’’ आज के तनाव भरे वातावरण में बापू की यह पक्ति कितनी अचूक औषधि है कि ‘‘स्वाभाविक मुस्कराहट अस्तित्व रूपी परमात्मा को फूल चढ़ाने की विधि है।’’ वे स्पष्ट कहते हैं कि रामकथा क्या है? इक्कीसवीं सदी में नया मनुष्य पैदा करने की शिविर। रामचरित मानस का पहला शब्द है ‘वर्ण’ (वर्णानामर्थसंघानाम्) और अंतिम शब्द है ‘‘मानवा:’’ अर्थात् रामकथा का वर्ण समग्र विश्व का मानव है। रामचरित मानस मानव को केन्द्र में रखकर गाया गया तुलसी का शास्त्र है जिसे जन-जन तक ज्यों का त्यों पहुंचाने का बीड़ा उठाया है पूज्य मोरारीबापू ने। ऐसी दिव्य मूर्ति का सान्निध्य पाकर गालव ऋषि की यह तपोभूमि गद्गद है।


(लेखक - डॉ. उमाशंकर पचौरी, भारतीय शिक्षा मंडल के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री एवं मानस मर्मज्ञ हैं।)

Updated : 21 Feb 2017 12:00 AM GMT
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