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फीस के अलावा दो रकम, नहीं तो नकल बन्द

जिला परिषद भेल ने बदला नकल कराने का तरीका

झांसी। नकल विहीन परीक्षा कराने के प्रशासन के दावे यहां खोखले होते नजर आ रहे हैं, बस हल्ला नहीं हो पा रहा है, लेकिन नकल जबरदस्त और नये तरीकों से करायी जा रही है। यह हाल जिला परिषद भेल के इण्टर कालेज का है, जहां कई प्रकार से छात्रों से वसूली सुचारू है। सूत्रों की मानें तो यहां कक्षाओं में मौखिक रुप से नकल करायी जा रही है। ताकि कार्यवाही से बचा जा सके।भेल का जिला परिषद इण्टर कालेज समूचे क्षेत्र के लिये नकल को लेकर चर्चा में है यहां कष्ट उन छात्रों को है जिन्होंने सुविधा शुल्क नहीं दिया तो उन पर जबरदस्त कड़ाई का डण्डा चलाकर नकल विहीन परीक्षा कराने का दावा किया जा रहा है जबकि नकलची छात्र चुप इसलिये हैं क्योंकि उन्हें पास होना है।

सूत्र तो बहुत कुछ बता रहे हंै लेकिन नकल विहीन परीक्षा कराने के दावों को खोखला करने के लिये इतना ही काफी है कि यहां की प्रिंसीपल खुद विद्यालय परिसर में टयूशन पढ़ातीं हैं और जो छात्र-छात्रायें टयूशन पढऩे आते हंै उन्हें नकल की सभी सुविधायें मुहैया कराने का उनका वादा होता है। बताया गया है कि पहले तो विद्यालय में प्रवेश के नाम पर सुविधा शुल्क तदुपरान्त मासिक शुल्क, उक्त दोनों शुल्क बढ़ाकर लिये जाते हंै। कुछ छात्राओं और उनके अभिभावकों ने दबी जुबान में ही सही, लेकिन स्पष्ट तौर पर कहना है कि यहां राजनैतिक असर पिछली सत्ता से ही रहा है। पिछली समाजवादी पार्टी की सरकार के पूरे कार्यकाल में मलाई खाने वाली यहां तैनात एक महिला अध्यापक भाजपा शासन में भी अपने मंसूबे कम नहीं कर पा रही हंै। लोग बता रहे हैं कि इनके रसूख को देखते हुये इनके बारे में कोई कुछ भी बोल नहीं सकता। सूत्रों की मानें तो इनका विद्यालय में इतना खौफ है कि कई छात्र छात्रायें विद्यालय जाने से भी कतराते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन बढ़ी हुयी फीस जो दे देता है उसकी परीक्षाओं में चांदी ही चांदी रहती है। विद्यालय में आलम यह है कि जिन अभिभावकों की हैसियत बढ़ी हुयी फीस देने की नहीं होती उनके बच्चों को हीन भावना से भी देखा जाता है। लोग इस अव्यवस्था और भ्रष्ट तंत्र को बन्द कराने की मांग इसलिये नहीं कर पा रहे है क्योंकि यहां असरदार लोगों का हस्तक्षेप बहुत पहले से पनपा हुआ है। जो भी इनके खिलाफ आबाज अठाने की कोशिस कारता है उसकी वोलती बन्द चंद गुण्ड़े ही कर देते है। यहां के वारे में बताया जाता है कि कुछ लोगों ने इस व्यवस्था से तंग आकर तथा बच्चों के भविष्य को देखते हुये अफसरों से शिकायत की थी लेकिन सत्ता पक्ष के दबाव के चलते शिकायतों को कचड़े में ड़ाल दिया गया। इसलिये इनके हौंसले आजतक बुलन्द है। नतीजन अभिभावकों ने परेशानियां झेलीं।

उक्त अध्यापिका के बारे में बताया जाता है कि पिछली सरकार में इनकी तूती सत्ता की गलियारों में चहलकदमी कर बोलती थी जिसकी धमक आम अभिभावकों पर पूरे सपा शासन में देखने को मिली। सूत्रों की मानें तो इनकी कुछ क्षेत्रीय मठाधीशों से नजदीकियां ही इनका बजूद बनाये रखे है।

Updated : 26 March 2017 12:00 AM GMT
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