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निगम अधिकारी नहीं देते भवन निर्माण अनुमति की जानकारी

निगम अधिकारी नहीं देते भवन निर्माण अनुमति की जानकारी
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मिलीभगत कर बिल्डर धड़ल्ले से कर रहे हैं अवैध निर्माण

शासन को लग रहा है राजस्व का चूना

ग्वालियर, न.सं.। नगर निगम, ग्वालियर की लचर व्यवस्थाएं सुधरने का नाम नहीं ले रही हैं। आलम यह है कि अधिकारी छोटी-मोटी जानकारी तक लोगों को मुहैया कराने को तैयार नहीं हैं। अब भवन निर्माण की अनुमति को ही लीजिए, यदि कोई व्यक्ति शहर में निर्मित किसी भवन अथवा इमारत को प्रदाय की गई निर्माण अनुमति की जानकारी लेने निगम अधिकारियों के समक्ष पहुंचता है, तो वह उसे जानकारी नहीं देते हुए जहां से वहां टहलाते रहते हैं। निगम अमले के इस रवैए का फायदा उठाकर बिल्डर्स बिना अनुमति के विपरीत निर्माण करके भवनों व फ्लैटों को बेचने में लगे हुए हैं, जिससे खरीददार सहित प्रशासन को भी राजस्व का चूना लग रहा है।

उल्लेखनीय है कि नगर निगम में भवन निर्माण की अनुमति देने वाले विभाग से जुड़े अधिकारी सदैव चर्चा में रहे हैं, दरअसल निगम से किसी भी भवन निर्माण की अनुमति लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल है, जिसमें उलझने के बजाय अधिकांश व्यक्ति अधिकारियों से साठगांठ कर बिना अनुमति लिए ही निर्माण करा लेते हैं, वहीं बिल्डर्स भी जो अनुमति लेते हैं, उसके विपरीत निर्माण करके खुलेआम उसे बेच कर मोटा मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं, जिसके एवज में भवन निर्माण की अनुमति देने वाले एवं बिना अनुमति प्राप्त निर्मित होने वाले भवनों पर कार्रवाई करने वाले मदाखलत विभाग के अधिकारियों से साठगांठ कर उनकी जेबें भी बखूबी भरी जाती हैं, यही कारण है कि शहर में तमाम बिल्डर्स बेखौफ होकर निगम से प्राप्त अनुमति के विपरीत निर्माण कर रहे हैं, लेकिन आपसी मिलीभगत के चलते उन पर कार्रवाई करने के बजाय जिम्मेदार अधिकारी आंखों पर पट्टी बांधे बैठे हैं।

एक-दूसरे पर टालते रहते हैं अधिकारी

इसी तरह अनुमति के खिलाफ अभी हाल में निर्मित हुई एक बहुमंजिला इमारत की अनुमति संबंधी जानकारी लेने जब स्वदेश संवाददाता ने नगर निगम के भवन अधिकारी सुरेश अहिरवार से जानकारी मांगी, तो उनका कहना था, कि मैं तो इस सीट पर अभी आया हूं, और मैंने कोई अनुमति नहीं दी है, और न ही मेरे पास कोई रिकॉर्ड है, अत: मैं कोई जानकारी नहीं दे पाऊंगा। वहीं जब तत्कालीन भवन अधिकारी महेन्द्र अग्रवाल जिनके द्वारा उक्त इमारत की अनुमति जारी की गई है, उनसे सम्पर्क साधा, तो उन्होंने कहा कि मैंने इतनी सारी अनुमति दी हैं, सारी याद थोड़े ही रहती हैं, वैसे भी अब मैं वहां सीट पर नहीं हूं, आप तो क्षेत्रीय अधिकारी (जेडओ) से जानकारी लो। जबकि क्षेत्रीय कार्यालय क्रमांक-17 के अधिकारी राजू गोयल से जानकारी मांगी, तो उन्होंने बताया कि प्रकरण क्रमांक के बिना कैसे जानकारी दें, वैसे भी सारा रिकॉर्ड मुख्यालय में रहता है, अत: आप वहीं सम्पर्क करो। इस तरह अधिकारियों द्वारा एक-दूसरे पर टालकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया गया। जबकि जिस क्षेत्र में उक्त बहुमंजिला इमारत का निर्माण हुआ है, वहां उस तरह की भव्य इमारत एकाध ही होगी, जिससे अधिकारियों द्वारा अनुमति देने के बाद उसे भूलने का सवाल ही पैदा नहीं होता है, लेकिन टालमटोली का रवैया उक्त गोरखधन्धे में उनकी संलिप्तता अवश्य उजागर करता है।

बड़ी इमारतों की भी जानकारी नहीं देते

सामान्य भवनों की अनुमति देकर जिम्मेदार अधिकरी द्वारा भूल जाना स्वाभाविक नजर आता है, लेकिन ताज्जुब तब होता है, जबकि अधिकारी उन बड़ी इमारतों को प्रदाय की गई अनुमति भी भूलने का ढोंग करते हैं, जो कि क्षेत्र में एकाध ही होती है। दरअसल इन बड़ी इमारतों को बनाने वाले बिल्डरों द्वारा इनके निर्माण में तमाम खामियां बरतते हुए निगम से प्राप्त अनुमति का खासा मखौल उड़ाया जाता है, जिसके एवज में निगम की भवन निर्माण शाखा से लेकर मदाखलत व क्षेत्रिय कार्यालय में पदस्थ अधिकारियों की जेबें गर्म की जाती हैं। चांदी के जूते की चमक के आगे ही यह अधिकारी इन बड़ी इमारतों से संबंधित कोई भी जानकारी मुहैया नहीं कराते हुए चुप्पी साधे रहते हैं, क्योंकि इन्हें डर रहता है कि यदि बिल्डर के काले कारनामे उजागर हुए, तो मिलीभगत के चलते उसके छींटे उन पर भी पड़ सकते हैं।

Updated : 29 Jun 2017 12:00 AM GMT
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