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कश्मीर न बन जाए केरल

कश्मीर न बन जाए केरल
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केरल के कन्नूर जिले में पिछले सप्ताह बछड़े को काटने की नृशंस घटना ने देश के लिए यह संदेश दिया है कि 'गॉड्स ओन कंट्री' यानी 'ईश्वर का अपना देश' केरल अब कश्मीर बनने की राह पर बढ़ा चला जा रहा है। यह कोई मामूली घटना नहीं है, इसलिए इस पर ओछी राजनीति न हो तो बेहतर ही रहेगा। कन्नूर में कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने भाजपा कार्यालय के सामने गोमांस समारोह आयोजित किया था। इसमें इन्होंने खुले वाहन में सरेआम बछड़ा काट डाला। फिर वहीं पर सरेआम उसका मांस पकाया, खाया और खानेवाले लोगों के बीच बांटा भी। इसी कन्नूर जिले में भाजपा और संघ के राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं की लगातार हत्याएं हो रही हैं।

सिमी का गढ़
दरअसल कांग्रेस के ये कार्यकर्ता केंद्र सरकार द्वारा हत्या के लिए गोवंश की बिक्री पर प्रतिबंध के फैसले का विरोध कर रहे थे। केरल में जो हुआ वह विचारहीन और नृशंसता की हद है। यहां पर सवाल यह नहीं है कि बछड़े को सरेआम काटने वाले कांग्रेस से थे या नहीं। बड़ा प्रश्न यह है कि क्या गऊ के नाम पर भारत को बांटने का कुचक्र नहीं रचा जा रहा है? केरल देश के लिए दूसरा कश्मीर साबित न हो इस बात के पुख्ता इंतजाम करने होंगे। याद रखिए कि घोर देश विरोधी 'सिमी' यानी या 'स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया' का जन्म भले ही उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ हो, पर इसके कैडर केरल में ही पैदा होकर देश भर में जाते रहा हैं। यह कहने को तो प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन है, पर इसका असली और घोषित ध्येय भारत को 'इस्लामिक राष्ट्' में बदलना है। भारत सरकार जब कांग्रेसियों के हाथ में थी, तब भी मानती थी कि सिमी आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ा हुआ एक राष्ट्रवादी संगठन है। सिमी भारत में आतंकवादी गतिविधियों में अपनी भागीदारी के लिए 2002 में ही भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालांकि, अगस्त 2008 में, भारत सरकार की उदासीनता की बजह से एक विशेष न्यायाधिकरण में सिमी पर से प्रतिबंध हटा लिया गया था। ये प्रतिबंध बाद में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 6 अगस्त 2008 को पुनः बहाल किया गया। सिमी को अनलॉफुल ऐक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट 1967 (यूएपीए) के तहत प्रतिबंधित किया गया था। सिमी फ़िलहाल 2019 तक के लिए प्रतिबंधित है। सिमी की केरल में पकड़ को नजरअंदाज करना खतरे से खाली नहीं होगा। केरल में पेट्रो डॉलर तो आ ही रहे हैं, बेशक केरल एक बहुत विकट राज्य के रूप में उभर रहा है। केरल तेजी से इस्लामी आतंकवाद की प्रजनन भूमि में बदल रहा है। केरल के हिंदुओं में असुरक्षा की भावना व्याप्त है और वे इन ताकतों के खिलाफ एक सेतु के रूप में मात्र संघ को ही देखते हैं।

केरल की परम्पराएं नष्ट
कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने हिन्दू विरोधी रुख के कारण ही केरल की मूल परम्पराओं और जीवन मूल्यों को नष्ट करने की लगातार कोशिश की है। युवा पीढ़ी अब एक बार फिर अपनी जड़ों से जुड़ना चाहती है, और वह संघ और उसके विभिन्न प्रकल्पों में अपने सांस्कृतिक पुनरुत्थान को देख रही है, और जरा दुर्भाग्य देखिए कि केरल में बछड़े को जिस तरह से सरेआम कत्ल किया गया उसके विरोध में देश के महानगरों में एक्टिव कैंडिल ब्रिग्रेड ने जंतर-मंतर पर कोई कैंडिल मार्च नहीं निकाला। किसी लेखक ने केरल सरकार को कोसते हुए अपने पुरस्कार को भी वापस नहीं किया। दुर्भाग्यवश इनकी केरल में राजनीतिक विरोधियों के मारे जाने पर जुबानें सिल जाती हैं। तो इनके चुप रहने को यह क्यों नहीं माना जाए कि ये केरल में एक खास राजनीतिक दल से जुड़े लोगों के मारे जाने से विचलित नहीं होते हैं? यही है इनकी सहिष्णुता और छद्म धर्म निरपेक्षता।

दरअसल भारतवर्ष में गोहत्या जैसे सवालों पर राजनीति के लिए कोई जगह ही नहीं होनी चाहिए। जिन लोगों ने सरेआम बछड़ा काटा वे क़त्लख़ानों से ताल्लुक रखने वाले लोग हैं। पार्टी का झंडा लेकर गाय काटने की यह देश में शायद पहली कैमरे में दर्ज वारदात होगी। खाने का अधिकार अगर संवैधानिक है, तो एक-दूसरे का सम्मान करना भी संविधान की ही भावना है। पब्लिक में आप किसी के सामने मुर्गा या बकरा तक नहीं काट सकते, क्योंकि बात भावनाओं की नहीं है, इसका विपरीत दिमाग़ी असर भी होता है। केरल के कन्नूर में यूथ कांग्रेस के नेताओं ने जो कांड किया है, उसका एक ही मकसद लगता है विरोध के नाम पर दूसरे समुदायों में चिढ़ पैदा की जाए। केंद्र सरकार ने पशु बाजार में बूचड़खानों के लिए जानवरों को खरीदने और बेचने पर रोक लगा दी है। इसी के विरोध में यह गोकशी की गई। यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जायेगा कि जिस कांग्रेस ने 1952 से लेकर 1972 तक दो बैलों की जोड़ी और गाय बछड़े के चिह्न पर देशभर में चुनाव लड़ें अब वह बछड़े की सरेआम हत्या कर अपना स्वयं का सर्वनाश करने पर उतारू है।
अब यह स्वीकार कर लेना होगा कि गॉड्स ओन कंट्री यानी ईश्वर के अपने देश केरल में हालात बद से बदत्तर होते जा रहे हैं। वहां पर रोज ही कोई न कोई राजनीतिक कार्यकर्ता मारा जा रहा है। बर्बरतापूर्वक उनके हाथ-पैर काट दिए जाते हैं। केरल अपनी संस्कृति और प्राकृतिक संपदा के लिए पहचाना जाता है। समुद्र के किनारे स्थित केरल के तट अपने शांतिपूर्ण माहौल के लिए लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। इस शांतिपूर्ण माहौल के पीछे राजनीतिक कार्यकर्ताओं का कत्लेआम हो रहा है। आज के दिन भाजपा या संघ से जुड़ा होना खतरे से खाली नहीं है। अब बछड़े को जिस तरह से सरेआम मारा गया, उससे सारा देश सन्न है।

लचर लेफ्ट
केरल में भाजपा की बढ़ती ताकत के कारण लेफ्ट फ्रंट के नेताओं की पेशानी से भी पसीना छूट रहा है। भाजपा केरल में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी के तौर पर उभर रही है। वैसे केरल में भाजपा ने एक राजनीतिक पार्टी के रूप में 1987 के विधानसभा चुनाव से अपनी मौजूदगी करा दी थी। केरल में भाजपा को खड़ा करने में जनसंघ के दौर में पार्टी से जुड़े ओ. राजगोपाल का खास रोल रहा है। ओ. राजगोपाल ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की नीतियों से प्रभावित होकर 1960 में ही भारतीय जनसंघ से जुड़कर केरल की राजनीति में कदम रखा। कार्यकर्ताओं के सतत प्रयास से पिछले कुछ साल में केरल की धरती पर भाजपा की नींव यक़ीनन मजबूत हुई है। इसके चलते वहां पर माकपा और मुस्लिम लीग के लोगों में खासी बौखलाहट है। कन्नूर की घटना को दबा देने से बात नहीं बनेगी। वहां पर देश विरोधी ताकतों को कुचलना ही होगा। दरअसल पिछले साल मई में जब केरल में लेफ्ट फ्रंट सरकार सत्तासीन हुई तो लग रहा था कि अब केरल में अमन कायम होगा, राजनीतिक विरोधियों की हत्याएं रुकेंगी और प्रदेश सरकार राज्य के समावेशी विकास पर जोर देगी, पर हुआ इसके ठीक विपरीत। लेफ्ट फ्रंट की मुख्य घटक माकपा तो संघ और भाजपा की जान की दुश्मन होकर उभरी। इसने एक ठोस रणनीति के तहत संघ-भाजपा के कार्यकर्ताओं पर सुनियोजित हमले चालू करवा दिए।

केरल में पिछले 50 वर्षों में आरएसएस के 267 सक्रिय कार्यकर्ताओं की हत्या हुई हैं ! इनमें से 232 लोग, यानी अधिकांश माकपा के गुंडों द्वारा ही मारे गए। वर्ष 2010 के बाद, संघ के 16 कार्यकर्ताओं की सीपीएम द्वारा बेरहमी से बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी गई। किसी के पैर काट दिए गए, किसी की आंखें फोड़ दी गईं, अनेकों को पीट -पीट कर जीवन भर के लिए अपाहिज बना दिया गया। इन घायलों की संख्या मारे गए लोगों से लगभग छह गुना है। इन झड़पों के बाद शान्ति व्यवस्था के नाम पर पुलिस द्वारा क्रूरता का नंगा नाच किया गया। माकपा के गढ़ केरल के कन्नूर जिले में ही संघ स्वयंसेवकों पर सर्वाधिक अत्याचार हुए हैं। कन्नूर में पुलिस बल लेफ्ट फ्रंट के हाथ का खिलौना भर है। जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मारा गया, उन्हें सरकार से कभी कोई मदद भी नहीं मिली। अब कन्नूर में कांग्रेसी बछड़े को मार रहे थे और पुलिस वहां से नदारद थी।

केरल के हालात चौतरफा स्तर पर खराब हो रहे हैं। वहां पर बेरोजगारी बढ़ रही है। अब सरकार को देश के सबसे साक्षर राज्य के लिए सुनिश्चित करना होगा कि वो दूसरा कश्मीर न बने। केरल देश का बेजोड़ राज्य है। सारे देश और दुनिया को यहां से सेवा भावना से ओत-प्रोत नर्से और मेहनतकश मलयाली मिलते हैं। इस पर किसी की नजर तो लगी ही है। केरल की सुंदर छवि को बहाल करने की जिम्मेदारी सारे देश के ऊपर है।

लेखक - आर. के. सिन्हा, राज्यसभा सदस्य

Updated : 4 Jun 2017 12:00 AM GMT
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