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निजता के दायरे को भी तय करना जरूरी

-सियाराम पांडे

सर्वोच्च न्यायालय के नौ न्यायमूर्तियों की पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया है। उन्होंने माना है कि संविधान के अनुच्छेद 21 में निजता का अधिकार आता है। उक्त अनुच्छेद जीवन जीने का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबद्ध है। इस निर्णय की जितनी भी सराहना की जाए, कम है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से विपक्ष बहुत उत्साहित है और इसे केंद्र सरकार के अहंकारी प्रयास पर चोट बता रहा है जबकि भाजपा उसे कोर्ट के आदेश पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया देने की सलाह दे रही है। संविधान ने हालांकि इस देश में रहने वाले हर नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दे रखे हैं। निजता का भी अधिकार भी उसका हिस्सा है। देश का अदना आदमी भी इस बात को जानता है कि संविधान ने मौलिक अधिकार सभी को दे रखे हैं लेकिन व्यवहार में कितने लोगों को पता है कि मौलिक अधिकार क्या है? कितने मौलिक अधिकार हैं और वह उन अधिकारों का उपयोग कैसे कर सकता है? देश के कितने घरों में संविधान की किताब है ? कितने लोगों को संविधान की पूर्वपीठिका याद है। कितने लोग संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का उपभोग कर पा रहे हैं ? जिस संविधान को आत्मार्पित करने की बात की जाती है, जब वह संविधान ही अपने पास नहीं है तो उसमें वर्णित तथ्यों की बात क्या करें? संविधान की शपथ लेने वाले किस तरह संविधान का गला घोंट रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। क्या ऐसे लोगों का विरोध, उनकी कारगुजारियों का सार्वजनिक होना निजता का हनन है। देश की सबसे बड़ी समस्या भी यही है कि इस देश का हर आदमी संविधान नहीं जानता। जिस दिन हर आदमी रोज संविधान की किताब पढ़ने लगेगा, देश से उसी दिन बेईमानी, मक्कारी, अराजकता का जनाजा निकलने लगेगा? सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या का सबसे बड़ा मंच है। अच्छा तो यह होता कि वह निजता और उसके दायरे को भी सुनिश्चित करता। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में सभी सांसदों को संविधान की पूर्वपीठिका का पाठ करवाया था। इसका इतना तो असर हुआ ही कि सांसदों को यह पता चल गया कि यह संविधान केवल मानने के लिए ही नहीं, अपने दिलो-दिमाग में बैठाने के लिए हैं, उसे अपनी आत्मा में प्रतिष्ठित करने के लिए हैं। कोई भी विधान केवल पढ़ने के लिए नहीं होता, वह अमल करने के लिए होता है और अगर वाकई संविधान में वर्णित व्यवस्था के अनुरूप काम हो रहा होता,उसकी धाराओं, उपधाराओं और अनुच्छेदों का सम्मान किया जा रहा होता तो देश और राज्यों में निजता के अधिकार पर बात ही क्यों हो रही होती? इस देश में असमानता क्यों होती। जाति और धर्म के नाम पर विवाद क्यों हो रहे होते? कुछ लोगों को लगता है कि आधार कार्ड से उनकी व्यक्तिगत जानकारी लीक हो सकती है। यह उनके निजता के अधिकारों का हनन है लेकिन जब लोग ह्वाट्सअप पर, फेसबुक पर, ट्विटर पर या अन्य सोशल साइट्स पर अपनी निजी जानकारियां डालते हैं तो क्या यह निजता के अधिकार का हनन नहीं है? उन्हें पता है कि इन सोशल साइट्स पर डाली गई जानकारी किस-किस देश तक पहुंच रही है। दरअसल अंतर्जाल के इस दौर में निजता की बात करना भी बेमानी है। इस बात को सभी जानते हैं। जब सारे बैंक इंटरनेट से जुड़ चुके हैं तो किसी की आर्थिक जानकारी निजी कैसे रह सकती है। यह तो बैंक और उपभोक्ता के बीच की म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग है कि वे एक दूसरे की जानकारी को

सार्वजनिक नहीं करते। इसी विश्वास पर बैंक का कारोबार फल-फूल रहा है। हुंडी और व्याज का धंधा भी इसी निजता और गोपनीयता के सिद्धांत पर काम करता है। इस देश के साक्षर और निरक्षर लोग भी जानते हैं कि निजता क्या है और गोपनीयता क्या है? वे भी एक दूसरे को अपने बारे में उतनी ही जानकारी देते हैं जितना कि देना चाहते हैं। निजता की रक्षा जरूरी है लेकिन निजता क्या है ? उसे कितना गोपनीय रखना है और कितना सार्वजनिक करना है, यह भी तो तय होना चाहिए। निजता का दायरा तय होना चाहिए। निजता देश, प्रदेश और समाज से बड़ी नहीं हो सकती। निजता व्यक्ति को कुछ सीमित अधिकार जरूर देती है लेकिन वह उसे उच्छृंखल होने का लाइसेंस कतई नहीं देती। यह भी निर्धारित होना चाहिए कि निजता के दायरे में व्यक्ति को कितनी रियायत मिल सकती है। निजता के अंतर्गत क्या करापवंचन और बेईमानी भी आती है। देश को लूटना, सरकारी योजनाओं में घपले-घोटाले करना भी क्या निजता का विषय है। हर व्यक्ति को धन रखने का अधिकार है। धन के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। वह व्यर्थ है लेकिन एक व्यक्ति कितना धन रख सकता है। देश की एक महिला के बारे में खबर छपी कि उसके पास एक मोबाइल ही 365 करोड़ का है। सवाल इस बात का है कि यह उस महिला की निजता का मामला है। खबर तो नहीं छपनी चाहिए थी। इस गरीब देश में जहां कुछ लोग प्रतिदिन 20 रुपये भी नहीं कमा पाते, वहीं कुछ लोग लग्जरी लाइफ जीते हैं। इसे क्या कहेंगे? है तो यह भी निजता ही। जब बलात्कार कर कुछ लोग फोटो और वीडियो सोशल साइट्स पर अपलोड कर देते हैं तो निजता का हवाला देकर इस देश के कितने लोग इसकी आलोचना करते हैं?निजता की दुहाई देने वालों को तब सांप क्यों सूघ जाता है? हाल ही में सिविल लिबर्टी को लेकर देश में बड़ी बहस चली। कुछ अभिनेत्रियों ने भी दलील दी कि मेरा शरीर मेरी मर्जी। क्या यही निजता है और इसी निजता के बल पर क्या यह देश विश्वगुरु रहा है? त्याग, तपस्या, मूल्यों और सिद्धांतों वाले देश को आखिर हो क्या गया है, बहस तो इस पर होनी चाहिए। निजता तो सबकी होती है। चोर की, बेईमान की, सेठ-साहूकार की। निजता का ख्याल रखते हुए तो सारे पुलिस-थाने बंद कर देने चाहिए? देह व्यापार से जुड़े लोगों, मादक द्रव्यों की तस्करी करने वालों की भी अपनी निजता है। उन पर कार्रवाई करने का मतलब है उनकी निजता का हनन? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत दिनों बड़ी बात कही थी कि जिनकी दलाली बंद हो गई है, रोजगार के नाम पर चिल्ला वे रहे हैं। सरकार का विरोध वे लोग कर रहे हैं जिनके काले कारनामों पर अंकुश लग गया है। निजता की बात करने वालों को कुछ यूरोपीय देशों की कार्यपद्धति भी देखनी चाहिए। जहां व्यक्ति को वेतन उतना ही मिलता है जितने में वह आराम से रह सके। बाकी वेतन सरकार के पास जमा हो जाता है। जिसमें वह बच्चों की शिक्षा, संबंधित व्यक्ति के इलाज, सड़क, सफाई और बिजली-पानी का सम्यक ध्यान रखती है और अपने देश में हर आदमी चाहता है कि वह कर अदायगी से कैसे बच सकता है? कर अदा किया है तो उसका रिफंड कैसे ले सकता है?
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कार्ड को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। संभव है उसकी दूसरी बेंच उस पर अपनी राय दे और देना भी चाहिए। केंद्र सरकार तर्क दे रही है कि आधार कार्ड पूरी तरह सुरक्षित है। उससे किसी की कोई जानकारी लीक नहीं हो सकती। सरकार को यह जानने का हक तो है ही कि इस देश में विकास योजनाओं का लाभ कितने लोगों को मिल रहा है? मिल भी रहा है या नहीं। अब सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों को सीधे उनके खाते में मिल रहा है। बिचैलिया राग खत्म हो गया है तो इसमें निजता का हनन कहां है। नागरिक सहूलियतों के विस्तार को निजता का हनन तो नहीं कहा जा सकता। हालांकि विधि विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद आधार कार्ड के इस्तेमाल को सभी योजनाओं में अनिवार्य करना केंद्र सरकार के लिए अब बहुत आसान नहीं रह गया है। सरकार अब आसानी से आधार का दायरा नहीं बढ़ा पाएगी। निजता के अधिकार का मुद्दा तब उठा, जब समाज कल्याण योजनाओं का फायदा उठाने के लिए आधार को केंद्र ने जरूरी कर दिया और इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की गईं। इन याचिकाओं में आधार योजनाओं की संवैधानिक वैधता को यह कहकर चुनौती दी गई कि यह निजता के बुनियादी हक के खिलाफ है। इसके बाद 3 न्यायमूर्तियों की पीठ ने 7 जुलाई को कहा कि आधार से जुड़े सभी मुद्दों का फैसला बड़ी पीठ करेगी और मुख्य न्यायाधीश इस बेंच के गठन का फैसला लेंगे। तब मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर के पास मामला पहुंचा। उन्होंने 5 जजों की संविधान पीठ का गठन किया। इस पीठ ने 18 जुलाई को 9 जजों की बेंच के गठन का फैसला लिया। अभी केंद्र के 19 मंत्रालयों की 92 योजनाओं में आधार का इस्तेमाल हो रहा है। एलपीजी सब्सिडी, फूड सब्सिडी और मनरेगा के तहत मिलने वाले फायदे आधार के जरिए मिल रहे हैं। देश भर में करीब 67 करोड़ बैंक अकाउंट आधार कार्ड से जुड़ चुकेे हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर वॉट्स ऐप से जुड़े मामले पर भी हो सकता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने सितंबर 2016 में वॉट्स ऐप को नई प्राइवेसी पॉलिसी लाने की मंजूरी दी थी। लेकिन उसे फेसबुक या किसी अन्य कंपनी के साथ यूजर्स का डाटा शेयर करने से रोक दिया था। हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 और 1962 में निजता के अधिकार मामले में फैसला सुनाया था। इन मामलों में 6 और 8 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। इन फैसलों में कहा गया था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। 1962 में खड़क सिंह और 1954 में एमपी शर्मा के केस में बेंच ने ये फैसला सुनाया था।

2 अगस्त,2017 को 9 न्यायमूर्तियों की पीठ ने निजता के अधिकार मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने निजी जानकारी के गलत इस्तेमाल पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि टेक्नोलॉजी के मौजूदा दौर में निजता की सुरक्षा करने की अवधारणा एक हारी हुई लड़ाई लड़ने जैसा है। कुल मिलाकर इस निर्णय के बाद आधार की प्रासंगिकता पर सवाल उठेंगे लेकिन अगर आधार सबका अधिकार बनता है, उससे नागरिकों को सुविधा मिलती है तो सरकार को उस पर विचार करना चाहिए। हर व्यवस्था में गुण-दोष हो सकते हैं। विपक्ष को लगता है कि आधार में गड़बड़ी है तो उसे दूर करने की दिशा में काम होना चाहिए। निजता पर बहस करने से अच्छा तो यह होगा कि देश के समग्र विकास पर, हर व्यक्ति की तरक्की पर बहस हो। मथने से नवनीत निकलता है। ऐसा मथना भी क्या जिससे विष ही निकले।

Updated : 29 Aug 2017 12:00 AM GMT
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