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अंग प्रत्यारोपण में जानवर कितने कारगर

अंग प्रत्यारोपण में जानवर कितने कारगर

आज से 100 वर्षों के बाद, यदि वैज्ञानिकों की चली तो कई मानव आंशिक रूप से सुअर तथा बैबून होंगे। मेरा मतलब है वास्तव में, लाक्षणिक रूप में नहीं। वैज्ञानिक पशुओं से मानवों में समूचे दिल, यकृत, गुर्दों, पैन्क्रियास तथा फेफड़ों को प्रत्यारोपित करने पर कार्य कर रहे हैं। अंगों, टिशुओं, तथा कोशिकाओं की बढ़ती हुई मांग और उपलब्ध मानव अंगों की कमी ने वैज्ञानिक रूचि पशुओं से अंगों को लेने में केन्द्रित कर दी है। एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में अंगों के प्रत्यारोपण हेतु प्रयुक्त शब्द जेनोट्रांसप्लान्टेशन है और अभी तक यह सफल नहीं हुआ है। तथापि, कई कारपोरेशन पशुओं को काटने-पीटने में लगे हुए हैं ताकि एक दिन मानव आंशिक रूप से सुअर तथा आंशिक रूप से बैबून बन सके।

पशुओं से मानव में अंग प्रत्यारोपण के पक्ष में दिए जाने वाले तर्क यह है कि ये अंग जब कभी आवश्यकता हो उपलब्ध होंगे बजाय इसके कि रोगियों को महीनों तक प्रतीक्षा करनी पड़े। तत्काल प्रत्यारोपण संभवत: जीवन बचने की बेहतर संभावना में परिणत होगा। किसी मृत मानव की प्रतीक्षा करने के बजाय, जिसके अंग थोड़े से क्षतिग्रस्त होते है, एनीसथीसिया देकर स्वस्थ पशुओं के अंग निकाले जा सकते हैं।

सुअर अधिकांश कंपनियों हेतु विकल्प वाला पशु बन गया है। मानव के शरीरों में उपयोग हेतु हजारों सुअरों को मारा जा रहा है। परंतु मानव पर पहुंचने से पहले वैज्ञानिक उनके अंगों को बैबून के शरीरों में यह देखने के लिए प्रत्यारोपित करते है कि वे भिन्न प्रजाति में कैसे कार्य करते हंै।
बैबून ही क्यों? मानव तथा बैबून के 90 प्रतिशत डीएनएन समान होते हंै इसलिए बंदी पशु को मानव के स्थान पर रखा जाता है। सुअर ही क्यों? उनके अंग मानव के आकार के ही होते हैं। अंग प्रत्यारोपण हेतु आदर्श पशु प्रजातियां कौन सी हैं। पशु की समान प्रकार की शारीरिक संरचना होनी चाहिए ताकि अंग मानवों में अच्छी तरह से कार्य कर सके। उसमें ऐसा कोई रोग नहीं होना चाहिए जो मानवों में संक्रमित हो सके। उसमें मानव रोगों के लिए प्रतिरक्षा होनी चाहिए। उसमें ऐसे कोई जीन्स नहीं होने चाहिए जो मानव की प्रतिरक्षा प्रणालियों को प्रभावित करें। उसका प्रजनन महंगा नहीं होना चाहिए और उसके प्रत्येक वर्ष कई सारे बच्चे होने चाहिए। और वह एक ऐसा पशु होना चाहिए जिसे मारने में मानव को कोई झिजक न हो।

प्राइमेट शरीर संरचना में थोड़े बहुत समान हो सकते है परंतु उन्हें मानव संक्रमण आसानी से हो जाते हंै। वे पर्याप्त मात्रा में प्रजनन नहीं करते और मानव उन्हें (सिवाय वैज्ञानिकों के) मारना पसंद नहीं करते। सुअर के वर्ष में कई बार बड़े झुंड होते है और उनका पोषण सस्ता है। समस्या यह है कि उनका रक्त और उसके सभी जेनेटिक्स काफी भिन्न होते है। सुअर एक पूर्णत: भिन्न प्रजाति है। उत्पत्ति के पैमाने पर सुअर तथा मानवों को भिन्न हुए 80 मिलियन वर्ष हो चुके है। क्या उत्पत्ति को मात देना संभव है। अभी तक तो नहीं। लाखों पशुओं को मारे जाने के पश्चात वैज्ञानिकों को कुछ हासिल नहीं हुआ। बैबून के दिल को सुअर के दिल से बदलने के मूलभूत उद्देश्य को अभी प्राप्त नहीं किया जा सका है।

अंगों का प्रत्यारोपण विफल हो जाता है क्योंकि प्रत्येक स्तनधारी प्रजातियों में अपनी एक अनूठी प्रणाली तथा रक्त होता है और इसकी प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी अंगों को अस्वीकार करने के लिए बनी होती है। जैसे ही मानव के रक्त को सुअर के अंगों के माध्यम से भेजा जाता है, मानव रक्त कोशिकाओं में एंटीबॉडीज को सुअर की कोशिकाओं के प्रति सक्रिय किया जाता है। कंपनियां सुअर कोशिकाओं में मानव थ्रोमबोमोडयूलीन प्रोटीन डालने का प्रयास कर रही है ताकि मानव कोशिकाओं को उनके अस्वीकार करने की संभावना कम हो। माइक्रोइंजेक्शन तकनीक और इन विट्रो फर्टीलाइजेशन के माध्यम से सुअरों के यकृत, गुर्दों तथा दिल में पांच मानव जीन डाले गए थे।

सुअर में गैलाक्टोस ओलीगोसैचराइड एन्जाइम, गैल होता है जो मानवों में नहीं होता। जब किसी सुअर के अंग या कोशिकाओं को मानव में प्रत्यारोपित किया जाता है, तो यह एन्जाइम तत्काल अस्वीकरण कर देता है। वैज्ञानिकों ने अनुवांशिक रूप से एक ऐसे सुअर का निर्माण किया है जिसमें लगभग बिल्कुल भी गैल नहीं होता। लेकिन अभी क्लीनिकल परीक्षण समाप्त नहीं हुए है। अनुवांशिक रूप से बनाए गए सुअरों को गैल सुरक्षित सुअर कहा जाता है।
वैज्ञानिक कहते हंै कि बड़ी बाधा अभी बनी हुई है। यदि इन जीन-बदलाव किए गए सुअरों से प्राप्त अंगों का उपयोग वाइरस के आने से निपटने के लिए सुरक्षित ढंग से किया जा सकता हो तब भी मानवों में सुअर के अंगों को प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा अस्वीकार किए जाने तथा शरीर विज्ञान रूप से प्रतिकूल होने की बड़ी समस्याएं बनी रहेंगी।

इन क्षेत्रों के विशेषज्ञ चिंता करते हैं कि ट्रांसजेनिक सुअर, जिनके अंग अनुवांशिक रूप से अब पूर्णत: सुअर के नहीं है, वाइरस संक्रमणों के प्रति और संवेदनशील हो सकते हंै। अनुवांशिक रूप से बदलाव वाले ये अंग लगाए गए मानवों को अपने शेष जीवनकाल हेतु इम्यूनोसप्रेसेंट का उपयोग करना होगा। जहां जेनोप्रत्यारोपण से सैद्धांतिक रूप से जीवन काल बढ़ सकता है, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या मानव जीवन की गुणवत्ता पर होने वाला नकारात्मक प्रभाव इसके योग्य होगा। अंग प्राप्त करने वाले तथा समाज को रोग लगने तथा इसके संक्रमण के जोखिम को सटीक ढंग से मापा नहीं जा सकता। इसका मानव प्रजाति पर क्या प्रभाव होगा, क्या ऐसा कोई जूनोटिक संक्रमण आएगा जिसका हमारे पास कोई उपचार नहीं होगा? इबोला तथा एड्स के वाइरस से लाखों की मृत्यु हुई है।

कोई रोगी अपनी स्वतंत्रता के संबंध में भविष्य के प्रतिबंधों हेतु सूचित सहमति कैसे दे सकता है। क्या वह बाद में ऐसे समझौतों की वैधता को चुनौती नहीं देगा। वे तार्किक रूप से यह तर्क दे सकते हैं कि उन्होंने जेनोप्रत्यारोपण के व्यवहार्य विकल्पों के अभाव में इन प्रतिबंधों हेतु दबाव में सहमति दी थी। यदि वे उपलब्ध भी हो तो उपचार अत्यधिक महंगा होगा। किसी पैथोजेन मुक्त डोनर अंग को उत्पन्न करने के लिए पशुओं को अत्यधिक नियंत्रित परिवेश में पालना शामिल होगा। इसका अर्थ होगा रोगी को प्रत्यारोपण तथा प्रत्यारोपण-पश्चात निगरानी के लिए एक बनाई रखी जा सकने वाली जनशक्ति मुहैया करवाने के लिए भारी राशि खर्च करनी होगी। इस्लाम तथा यहूदी जैसे धर्मों में सुअरों को अनुष्ठानिक रूप से गंदा माना जाता है। अत: वे सुअर के अंगों वाले लोगों को स्वीकार नहीं करेंगे। क्या ये अंग प्राप्त करने वाले सामाजिक रूप से स्वीकार्य होंगे?

नैतिकतापूर्ण मत यह है कि पशुओं के भी मानवों के समान अधिकार है। क्या किसी पशु के साथ लगातार शारीरिक छेड़छाड़, अलग करके रखा जाना तथा मौत के रूप में लगातार पीड़ा देना नैतिकतापूर्ण है? अधिक ऊन उगाने के लिए अनुवांशिक रूप से परिवर्तित भेड़ पैदाइशी अंधी तथा उसके पैर इतने कमजोर होते है कि वह चल भी नहीं सकती। किसी अनुवांशिक रूप से परिवर्तित सुअर में क्या शारीरिक कमियां हो सकती है? क्या पशुओं की हत्या करने या उन्हें अधिक मानव बनाने के लिए संशोधित करने के बजाय मानव के अंगों को ही उत्पन्न करने का कोई तरीका ढूंढना आसान नहीं होगा? हमारे इस अद्भुत संसार में, मानव गलत चीजों को खाता और पीता है, कसरत नहीं करता, अपने शरीर का दुरूपयोग करता है तथा हर ओर कीटनाशकों का छिड़काव करता है। जब उसके अंग खराब होने लगते है, तो वह अंगों के लिए महिलाओं, गरीब लोगों तथा अब पशुओं को ढूंढने लगता है ताकि वह थोड़ी और रंगरेलिया मना सके। मैं वैज्ञानिकों को रोजगार मिलने और मानव जाति के लाभ हेतु कार्य करने के दिखावे के नाम पर होने वाले इस व्यापक वध के पूरी तरह खिलाफ हूं। बिना किसी नैतिक अवरोधकों के एक नए साहसी संसार में चले और मानवों को उनके अंगों के उपयोग के प्रयोजन हेतु पाला जाए।

Updated : 11 Jan 2018 12:00 AM GMT
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