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मुखौटा और बिखराववादियों को तिनके का सहारा न दो



तीन तलाक के मुद्दे पर लोकसभा में समर्थन करने के बाद राज्यसभा में उसका विरोध कर कांग्रेस ने यह साबित कर दिया है कि विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर उसकी दुविधापूर्ण स्थिति बनी हुई है, गुजरात चुनाव और उसके बाद उसने जो रूख अख्तियार किया है, उससे भी यह स्पष्ट है कि 2019 में सत्ता से बाहर होने के कारण को समझने में वह असमर्थ है। माना कि पृथकतावादी या बिखराववादी तात्कालिक प्रभाव वाली उठने वाले असंतोष को हवा देने से उसे कुछ चुनावी सफलता अवश्य मिली है, लेकिन इस बिखराववाद को हवा देकर वह देश की संवैधानिक निर्देश लोकतांत्रिक व्यवस्था और देश की एकता को तोड़ने के लिए इतिहास के पन्नों में जिम्मेदार दर्ज की जायेगी। जो संस्था महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश की सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप वैमनस्यता के बजाय सर्वधर्म संभाव के आचरण को आधार बनाकर चल रही थी, वह राहुल गांधी के नेतृत्व संभालने तक बिखराववादी हो गई है, इसलिए जो जो व्यक्ति, संस्था अथवा घटना बिखराववाद को प्रोत्साहन में सहमति है या दे रही है, कांग्रेस उनको हवा देने में जरा भी संकोच नही कर रही है। 2014 की चुनावी पराजय की समीक्षा करते हुए ए.के. अंटोनी ने यह निष्कर्ष निकाला था, बिखराववादियों को प्रश्रय देने के कारण आम देशवासी कांग्रेस से विमुख हो गया, फिर भी जिस बिखराव तत्वों को कंधे पर उठाने और प्रत्येक राष्ट्रीय स्वाभिमान ही घटनाओं के बारे में-चाहे वह पाकिस्तानी एजेंटों से मुठभेड़ हो या सैन्य कार्यवाही की सफलता-अवाम में उसकी प्रमाणिकता को संशययुक्त बनाने के लिए उपायों-यहां तक कि आर्थिक सुधार के कदमों की भर्त्सना करने के चुनावी परिणाम भुगतने के बावजूद कांग्रेस ने सामाजिक सुधार के मामले में मुस्लिम महिलाओं के शाहबानो से लेकर सायराबानो तक के संघर्ष को नजरंदाज कर जिन कठमुल्लों का ही साथ देते रहने का रूख अख्तियार किया है उसे गांव की कहावत के अनुसार ऊंट की चोरी निहुरे निहुरे की संज्ञा ही प्रदान की जा सकती है। जैसे ऊंट चुराने वाला झुककर चले वह समझकर कि उसे कोई देख नहीं पायेगा, और विकरालकाय ऊंट की स्थिति का संज्ञान भुलाये, वैसे कांग्रेस ने तीन तलाक विधेयक का विरोध और बिखराववादियों का प्रोत्साहन देने के छिपाने का असफल प्रयास किया है। वह ऊंट की चोरी वाली कहावत को ही चरितार्थ करता है।

महात्मा गांधी की हत्या से लेकर सेक्युलरिज्म के मुखौटा में अपने असली स्वरूप को छिपाकर विदेशी धन और मन के सहारे जिन लोगों ने राष्ट्रीय स्वाभिमान और अस्मिता के लिए सतत प्रयत्नशील राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाकर कुछ वर्षों तक समाज को भ्रमित करने में कांग्रेस की सत्ता का भरपूर दोहन किया, 2014 के चुनावी परिणाम के बाद उनकी हताशा और भी बढ़ गई है, कांग्रेस इसी हताशयुक्त व्याकुल उग्रता को सहारा बनाकर जहां जहां भाजपा सत्ता में है वही नहीं बल्कि जहां वह सत्ता में है वहां भी, बिखराववाद को बढ़ावा दे रही है। गुजरात का तीन बिखराववादी अभियान और महाराष्ट्र में कोरेगांव की घटना को मराठा महार संघर्ष तथा कर्नाटक में लिंगायतों को पृथक धार्मिक समूह जैसे अभियान को हवा देना ही इसके उदाहरण नहीं है। हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश के साथ-साथ पूर्वी देश के पूर्वी राज्यों में अवैध तरीके से रहने वाले बांगलादेशियों की पहचान करने के सर्वोच्च न्यायालय के अनुदेश के पालन को सांप्रदायिक बताकर उसने साफ कर दिया है, जिस प्रकार सेना की सर्जिकल स्ट्राइक को सर्जिकल कहकर उसने अकल्पनीय देशहित विरोधी स्वरूप प्रगट किया था, उसका सहारा छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस इस कारण अपने ही बोझ से डूबती जा रही है, वह डूबकर ही रहेगी यदि उसे तिनके का सहारा न मिले। यह तिनका कौन है। वे लोग नहीं जो सेक्युलरिज्म का मुखौटा लगाकर समाज को भ्रमित करते रहे, या वे जो बिखराववादी हैं, बल्कि वे लोग हैं जो राष्ट्रवादी हैं और यह नहीं समझते की राष्ट्रवाद है क्या, जो हिन्दू हैं लेकिन हिन्दुत्व अर्थ नहीं समझते। वे जिनके लोग हैं जो आस्था के थोड़े प्रदर्शन पर उतारू हो जाते हैं। यह माना कि गऊ हत्या पर प्रतिबंध के बावजूद गऊ हत्या करने वाले उत्तेजना पैदा करते हैं लेकिन जो इस उत्तेजना का जवाब और अधिक उत्तेजना से देने पर उतारू हो जाते हैं वे ही वे तिनके हैं जिनका सहारा मुखौटावादियों और बिखराववादियों के हाथ में आ जाते हैं, यद्यपि तिनके का सहारा डूबने से बचाने में सक्षम नहीं होता लेकिन डूबने वाले को तिनके का सहारा कुछ समय के लिए विभ्रम जरूर पैदा कर देता है, खासकर चुनावों के समय।
राष्ट्रवादी, हिन्दुत्ववादी जो सर्वधर्म सम्भाव वाली मानवतावादी आस्था का प्रतीक है के लिए समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने, जब अपने प्रति आजादी के पूर्व से उत्पन्न की जा रही घृणात्मक भावना को महात्मा गांधी की हत्या का लाभ उठाकर ये झूठे प्रचार से बनाए गए घेरे को तोड़ डाला, तो आज तो उसको घेरने का प्रयास किसी प्रकार के झूठे प्रचार को परवान नहीं चढ़ा सकता क्योंकि उसके क्रियाकलाप और समाजिक समरसता के प्रयास बहुविधि प्रकार से समाज के प्रत्येक वर्ग और क्षेत्र में ही नहीं तो विश्व के दर्जनों देश में प्रकट हो चुका है। बिखराव और मुखौटावादियों के प्रलाप का प्रतिवाद जिस प्रकार अपने काम और विस्तार से संघ ने 1948 के बाद जो विश्वसनीयता प्राप्त की, उस मार्ग से विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। राजनीतिक क्षेत्र में सफलता इसी आचरण का परिणाम है लेकिन राजनीतिक सफलता लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक कदम मात्र है, उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में बढ़े हुए उस एक कदम से न तो प्रगल्भित होने की आवश्यकता है, और न लक्ष्य प्राप्त कर लेने का संतोष। अभी भारतीयता की सार्वभौमिकता जिससे संपूर्ण मानवता सुखी हो, का लक्ष्य अभी बहुत दूर है। जहां तक पहुंचने के मार्ग भी बहुत है, इसके लिए प्रयास भी हो रहा है। लेकिन उत्तेजना पैदा कर एक प्रकार से भारतीयता और अभारतीयता के बीच संघर्ष चरम पर पहुंच रहा है। अभारतीयता अंतिम युद्ध के दौर में हैं। युद्ध में विजय उसी की होती है, जहां धैर्य एवं शौर्य हो। इसलिए मुखौटा और बिखराव वादियों को तिनके का सहारा मिले ऐसा कोई कदम उठाना, उद्देश्य से भटकाने का काम कर सकता है। तात्कालिक रूप से कर भी रहा है। बस तिनके का सहारा लेने से बचना चाहिए। यह बचाव का नहीं आक्रमण का सर्वोत्तम तरीका है।

Updated : 11 Jan 2018 12:00 AM GMT
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