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मोेदी की काशी को अस्थिर करने का एक और षड़यंत्र

मोेदी की काशी को अस्थिर करने का एक और षड़यंत्र
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सदियों की गुलामी का दंश झेलने के बाद भी इस देश ने कुछ सीखा नहीं है। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने एक बड़ी बात कही थी कि मुल्क के दुश्मन मुल्क के बाहर ही नहीं हैं। मुल्क के अंदर भी हैं। देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी जिसे लघु भारत कहलाने का गौरव हासिल है, में गोपनीय ढंग से विश्वनाथ मंदिर के नजदीक तक सुरंग खोद लिया जाना, वहां अवैध निर्माण कर मिनी शहर बसा लिया जाना इस बात का संकेत है कि जिस शहर में इस तरह के शैतान पड़ोसी हों, वहां बाहरी आतंकवादियों की जरूरत ही क्या है? आस्तीन में ही सांप पल रहे हैं। वे साथ रहकर भी विश्वासघात कर रहे हैं। अपने क्षणिक लाभ के लिए वे अपने शहर का बड़े से बड़ा नुकसान करने को भी आमादा हैं। इस सबको देखते हुए दो कविताएं बरबस ही मेरे जहन में आ रही हैं। पहली कविता है-‘एक सांप, धीरे से जा बैठा दिल में। बोला, जगह नहीं है आस्तीन के बिल में। कहने लगा, मैं अब संत हो चुका हूं। सारा जहर अपना, कबका खो चुका हूं। मैंने कहा- सांप हो कहां सुधरोगे। जब भी उगलोगे, जहर ही उगलोगे। वो बोला, सांप हूं तभी तो जी रहा हूं।’ और दूसरी कविता है- ‘अपने तो हौसले निराले हैं। आस्तीनों में सांप पाले हैं। बन न पाए वो हमखयाल कभी हम निवाले हैं, हम पियाले हैं। कुछ अजब सा है रखरखाव उनका तन के उजले हैं, मन के काले हैं।’ जिन लोगों ने काशी को कब्र बनाने का बंदोबस्त कर रखा है, उनके बारे में इसे बेहतर भला और क्या कहा जा सकता है?

काशी विश्वनाथ मंदिर से महज कुछ दूरी पर धरती के नीचे गुपचुप मिनी शहर का बस जाना सामान्य घटना नहीं है। दालमंडी इलाके में धरती के नीचे मिनी शहर बसाने का यह खेल वर्षों से चल रहा था। गनीमत है कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की उस पर नजर पड़ गई। वर्ना अधिकारी तो ऐसे भी है जो देखकर भी नहीं देखता। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता वाली उनकी सोच ही इस तरह के वाकयों की वजह बनती है। नजर पड़ी तो एसएसपी भारद्वाज आगे भी बढ़े और दालमंडी की लंगड़ा हाफिज मस्जिद के सामने एक कटरे के बेसमेंट में घुसने के बाद बेनिया पार्क की ओर जाने वाले मार्ग पर निकले। इतने बड़े क्षेत्र में जमीन की खुदाई और वहां कटरों के निर्माण का काम एक दिन में तो हुआ नहीं होगा। निर्माण हो और स्थानीय पुलिस को खबर न लगे, ऐसा मुमकिन ही नहीं है। विकास प्राधिकरण, नगर निगम,जिला प्रशासन व पुलिस महकमा सभी इस घटना के लिए बराबर के हिस्सेदार हैं। इस अवैध खनन और निर्माण के दौरान कुछ इमारतें गिर भी सकती थीं। गिर भी सकती हैं। ऐसे में जान-माल का कितना बड़ा नुकसान होता या हो सकता है, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। इस मामले में बनारस विकास प्राधिकरण के दो अधिकारियों पर कार्रवाई करने भर से बात नहीं बनने वाली। इन विभागों के अधिकारियों को थोक में बर्खास्त किए जाने की जरूरत है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सराहना के पात्र हैं कि उन्होंने इस मामले का खुलासा किया लेकिन यह काम बहुत पहले से चल रहा था। उस पर उनकी पुलिस की नजर क्यों नहीं पड़ी? एक रात की गश्त में वे इतनी बड़ी गड़बड़ी पकड़ सकते हैं लेकिन चौक थाना पुलिस की नाक के नीचे इतना बड़ा खेल होता है और उसे पता भी नहीं चलता जबकि वह दिन रात इस इलाके में भ्रमण करती है। ऐसे नाकारा पुलिसकर्मियों के साथ क्या सलूक किया जाए, यह कौन तय करेगा? खुफिया तंत्र की विफलता का इससे बेहतर नमूना और क्या हो सकता है? पुलिस अपने स्तर से इस मामले में कार्रवाई कर रही है। यह अपना स्तर क्या होगा, यह भी तो तय हो। पुलिस अगर कार्रवाई ही कर रही होती तो इतना बड़ा गड़बड़झाला होता ही क्यों?

बेसमेंट में एक के बाद एक कई कटरे बन जाना, वहां वाहनों से सामान पहुंचना और पुलिस को पता न चलना यह कैसे हो सकता है ,इसमें शक नहीं कि अपने निहित स्वार्थ के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में आम आदमी की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया गया। भूमिगत निर्माण के खेल का पता तो चल गया लेकिन यह खेल किसने किया, किसकी शह पर किया, इसका खुलासा कौन करेगा? एसएसपी आरके भारद्वाज पूरे मामले को बेहद खतरनाक मान रहे हैं लेकिन काशी के वाशिंदों की जिंदगी से खेलने वाले अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं जा सके, यह भी तो सुस्पष्ट होना चाहिए। यह भी तो पता चलना चाहिए कि शहर में भूमिगत निर्माण का यह खेल और कहां-कहां हुआ है? वाराणसी में बजरडीहा, मदनपुरा, जैतपुरा, बड़ी बाजार, हड़हासराय,लल्लापुरा, देवनाथपुरा, रामापुरा, रेवड़ी तालाब और नवाबगंज क्षेत्र में घनी मुस्लिम आबादी है। इस शहर में 1989, 1990 और और 1992 में बड़े सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं। इन दंगों में कई जानें भी गई हैं। क्या इस मामले में आतंकवादियों की भी कोई भूमिका थी, जांच तो इसकी भी होनी चाहिए।

विश्वनाथ मंदिर की सुरक्षा का खतरा वाराणसी ही नहीं, पूरे देश में अशांति का माहौल पैदा हो सकता है। मस्जिद गिर जाए तो भी अशांति का वातावरण बन सकता है। वाराणसी बेहद पुराना शहर है। कुछ मकान तो सौ साल से भी अधिक पुराने हैं। इस भूमिगत निर्माण से अगर एक भी मकान गिर जाए तो भीड़-भाड़ वाले इस इलाके में जान-माल का बड़ा नुकसान हो सकता है। एक ओर काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में भवनों के ध्वस्तीकरण का काम चल रहा है और इसका स्थानीय दुकानदार विरोध कर रहे हैं। दुकानदारों ने इस बात की चेतावनी दे रखी है कि 20 जनवरी को बनारस आ रहे मुख्यमंत्री की उपस्थिति में वे आत्मदाह करेंगे। भवनों के ध्वस्तीकरण के नाम पर उन्हें उजाड़ा जा रहा है। रास्ता बंद कर दिए जाने से वे अपनी दुकान नहीं खोल पा रहे हैं। करीब 30 दुकानदार मंदिर परिक्षेत्र के प्रभावित हैं। इनमें रेड जोन 19 और शेष यलो जोन के दुकानदार हैं। गौरतलब है कि कल्याण सिंह की सरकार में जब देवनाथपुरा क्षेत्र में बंगालियों का जुलूस निकल रहा था तब कुछ युवतियों और महिलाओं को सुरंगनुमा बंकरों में खींच लिया गया था। बाद में कुछ के शव मिलने की भी अफवाह फैली थी। मतलब इतना तो साफ है कि वाराणसी में कुछ लोग अवैध सुरंग बनाने का काम लंबे अरसे से कर रहे हैं। इन सुरंगों का इस्तेमाल आतंकियों की शरणगाह बनाने और हथियारों का जखीरा रखने में भी हो सकता है। भूमिगत सुरंगों के जरिए पुरानी इमारतों को विस्फोट कर भारी नुकसान भी किया जा सकता है। यह सब सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। इसमें राजनीतिक और आतंकी साजिश भी हो सकती है।

विकास प्राधिकरण के दो इंजीनियरों को निलंबित करना एक अच्छी पहल है लेकिन इस घातक खेल के लिए पूरे चैक थाना पुलिस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। मौजूदा समय बेहद सजग रहने का है। आतंकवादियों पर नजर रखना तो जरूरी है ही, पड़ोस में रह रहे संदिग्ध व्यक्तियों की गतिविधियों पर भी नजर रखी जानी चाहिए। जब तक अधिकारी अपने हितों की चिंता करते रहेंगे, तब तक समाज को परेशान करने वाली इस तरह की अवांछनीय हरकतें रुकेंगी नहीं। नाग और मनुष्य एक साथ नहीं रह सकते। दुष्टों के साथ उन्हीं के अंदाज में, उन्हीं की भाषा में निपटे जाने की जरूरत है। यही मौजूदा समय की मांग भी है।

-सियाराम पांडेय ‘शांत’

Updated : 18 Jan 2018 12:00 AM GMT
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