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घाटीगांव में सोनचिरैया और कूनो में नहीं आ पाए बब्बर शेर

घाटीगांव में सोनचिरैया और कूनो में नहीं आ पाए बब्बर शेर
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दिनेश शर्मा/ग्वालियर। वन विभाग के लाख प्रयासों के बाद भी न तो घाटीगांव अभयारण्य में सोनचिरैया के दर्शन संभव हो पाए और न ही गुजरात से श्योपुर जिले के कूनो अभयारण्य में बब्बर शेर आ पाए। अब घाटीगांव अभयारण्य से जहां 25 राजस्व गांवों को अलग करने की कवायद शुरू हो गई है तो वहीं कूनो अभयारण्य में बब्बर शेरों की जगह बाघों को बसाने की तैयारी शुरू कर दी गई है।यहां बता दें कि घाटीगांव अभयारण्य में पिछले करीब एक दशक से सोनचिरैया नजर नहीं आई है। यहां सोनचिरैया को आकर्षित करने के लिए वर्ष 2017 में करोड़ों की राशि खर्च कर भटपुरा सहित अन्य स्थानों पर चारागाह विकास के कार्य कराए गए। बावजूद इसके अभयारण्य से सोनचिरैया नदारद है। इस कारण घाटीगांव क्षेत्र के ग्रामीणजन अभयारण्य को समाप्त करने की मांग करने लगे हैं। इसके चलते वन विभाग ने हाल ही में अभयारण्य की सीमा में आने वाले करीब 25 राजस्व गांवों को डी-नोटिफिकेशन के लिए प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा था, जिस पर अभी निर्णय नहीं हो पाया है। हालांकि राज्य शासन ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति देने पर सहमति जता दी है, लेकिन इस पर अंतिम निर्णय के लिए नई दिल्ली में केन्द्रीय वन्यप्राणी बोर्ड की बैठक होना है।

इसी प्रकार 1996 से बब्बर शेरों का इंतजार कर रहे कूनो अभयारण्य में बब्बर शेरों को बसाने के लिए भी वर्ष 2017 में लगातार प्रयास किए गए, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। खास बात यह रही कि कूनो में बब्बर शरों की बसाहल पर हाल ही में म.प्र. सरकार द्वारा लिए गए फैसले की वजह से पानी फिरने की आशंका भी बढ़ गई है। दरअसल 22 साल पुरानी सिंह परियोजना को दरकिनार कर राज्य वन्यप्राणी बोर्ड ने कूनो में बाघों को बसाने का निर्णय लिया है। इस आशय का एक प्रस्ताव मंजूरी के लिए नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के पास भेजने पर विचार किया जा रहा है। वहां से यदि इसकी मंजूरी मिलती है तो प्रदेश के ही किसी टाइगर रिजर्व से बाघों को चिन्हित कर उन्हें कूनो में भेजा जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान से बब्बर शेरों को कूनो में बसाने की कानूनी लड़ाई हारने का खतरा है।

एक तरह से बाघों को कूनो में बसाने के बाद वहां बब्बर शेर नहीं लाए जा सकेंगे क्योंकि गुजरात सरकार पहले ही सर्वोच्च न्यायालय में यह पक्ष रख चुकी है कि कूनो अभयारण्य में राजस्थान के रणथम्बौर से बाघों का आना-जाना लगा रहता है, इसलिए वहां बब्बर शेर नहीं बसाए जा सकते हैं। देश के एक भी राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य में बब्बर शेर और बाघ एक साथ नहीं रहते हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों का भी यही मानना है कि कूनो में बाघों की बसाहट होने के बाद गुजरात सरकार इसी बिंदु पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दे सकती है। यहां बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने 15 अप्रैल 2013 को छह माह के भीतर कूनो अभयारण्य में बब्बर शेरों को भेजने के आदेश गुजरात व केन्द्र सरकार को दिए थे।

कूनो को नहीं मिला राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा

वन्यजीव विशेषज्ञों की समिति के आदेश पर वन विभाग ने कूनो अभयारण्य को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देने और 350.577 वर्ग कि.मी. एरिया बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा था। इसके लिए भारत सरकार के एडीजी वाइल्ड लाइफ की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की समिति भी बनाई गई थी, जिसने पिछली दो बैठकों में कहा था कि बब्बर शेरों की बसाहट से पहले म.प्र. सरकार कूनो को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देकर उसका कोर एरिया दोगुना करे। इसके साथ ही वन विभाग के खाली पदों को भरेने की बात भी कही गई थी, लेकिन दो साल में न सरकार ने खाली पद भरे और न ही कूनो अभयारण्य का एरिया बढ़ाकर उसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया। ऐसा न होने से विशेषज्ञों की समिति बब्बर शेरों की बसाहट के काम को आगे नहीं बढ़ा पाई। इसके अलावा कूनो अभयारण्य प्रबंधन ने बब्बर शेरों को बसाने की तैयारियों के लिए करीब 68 करोड़ का बजट भी मांगा था, जो अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है।

इनका कहना है

‘‘हमने अभी कूनो अभयारण्य में बब्बर शेरों को बसाने की उम्मीद नहीं छोड़ी है। कूनो में बाघों को बसाने के लिए अभी कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया है। यदि बब्बर शेर नहीं मिलते हैं, उस स्थिति में राज्य शासन ने बाघों को बसाने की बात कही है। घाटीगांव सोनचिरैया अभयारण्य से 25 गांवों के डीनोटिफिकेशन का प्रस्ताव शासन को भेजा है, जिस पर शासन ने सहमति जताई है। इससे उम्मीद है कि जल्दी ही अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।’’

जितेन्द्र अग्रवाल
प्राधान मुख्य वन संरक्षक
(वन्यजीव) भोपाल

Updated : 2 Jan 2018 12:00 AM GMT
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