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जजों की जंग के संकेत ?

जजों की जंग के संकेत ?
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जिस दिन जुडिशियल एकाउंटबिल्टी एनजीओ के कर्ताधर्ता प्रशांत भूषण ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र को पदमुक्त करने के लिए वाद दायर किया, उसी दिन सर्वोच्च न्यायालय बार कौंसिल के अध्यक्ष विकास सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस कर अपने असंतोष को प्रगट करने वाले चार न्यायाधीशों को बर्खास्त किए जाने का मुद्दा भी सार्वजनिक किया है। यह पहली घटना है मुख्य न्यायाधीश की निष्ठा को संदिग्ध आंकने की। प्रशांत भूषण और विकास सिंह ने जो मुद्दे सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में सबसे निम्नस्तरीय विवाद पर चल रही बहुविधि बहस के दौरान उठाये हैं, वह नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दो विपरीत दिशाओं में बंट गयी व्यवस्था सम्बन्धी अभिव्यक्ति निर्णायक दौर में पहुंच जाने का संकेत दे रही है जिस प्रकार राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में मतभिन्नता या हित-अहित के प्रश्न पर औचित्यहीन होती गई घटना या चर्चाओं में बाढ़ आ गई है, वैसा ही कुछ न्यायालय में भी होगा, इसकी किसी ने कल्पना नहीं किया था। किया था। न्यायाधीशों के बीच किसी मुद्दे पर असहमति नई नहीं है। इस असहमति का प्रगटीकरण निर्णयों में टिप्पणी अथवा सुनवाई से पृथक हो जाने के रूप में प्रगट होता रहा है। अधिक गहरा मतभेद होने पर न्यायाधीशों ने त्यागपत्र भी दिए हैं, व्यक्तिगत या सामूहिक। लेकिन नए वर्ष की शुरूआत में चार वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा प्रेसवार्ता कर अपने क्षोभ को सार्वजनिक करने की घटना पहली है जो न तो वांछनीय है और न सहनीय। यदि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश अपने क्षोभ को प्रगट करने के लिए लक्ष्मण रेखा पार करने दिया जायेगा तो देश में अराजकता फैल सकती हैं। आज तक मतभेद होने पर त्यागपत्र देने वाले किसी भी न्यायाधीश ने अपना क्षोभ सार्वजनिक नहीं किया था, वो क्या कार्यरत न्यायाधीशों के ऐसे आचरण को आंतरिक विवाद मानकर उसके समाधान की आंतरिक तरीके से संविधान सम्मत प्रावधानों के अनुपालन की अपेक्षा क्षीण नहीं होगी। यह विवाद जिस-जिस पृष्ठभूमि में उभरा है उसका यदि सम्यक संज्ञान नहीं लिया गया और संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन में कठोरता नहीं बरती गई तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में दो अन्य केंद्र विधायिका और कार्यपालिका के और भी क्षरण होने से रोका नहीं जा सकेगा। जहां तक प्रशांतभूषण के पत्र का सवाल है जिन्होंने आधी रात को न्यायाधीशों को जगाकर संसद पर हमलावर को दी गई फांसी की सजा के खिलाफ वाद सुनने की गुहार की भी, पर न्यायालय के अवमानना करने के लिए दोषी माना जाना चाहिए।

चार न्यायाधीशों के लक्ष्मण रेखा पार कर मुखरित होने के बाद जिस प्रकार का अभियान चल पड़ा है, वह उन ताकतों की हताशाजनक स्थिति का परिचायक है, जो 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की संसद में पूर्ण बहुमत और सरकार बनने के बाद से उनके कीचड़ उछालने के बीच निरंतर कमल के खिलते जाने की गुजरात के विधानसभा के निर्वाचन में उसको रोकने के लिए देश विदेश विघटनकारी और आतंकी प्रयासों से भाजपा को सत्ताच्युत करने में असफल होने के बाद रवीकांत के रूप में प्रगट हो रहा है। अन्यथा कोई ऐसा कारण नहीं था कि एक पत्रिका द्वारा कहानी के रूप में प्रकाशित एक न्यायाधीश लोया के स्वाभाविक निधन को तिल का ताड़ बनाकर-मुम्बई उच्च न्यायालय में वाद दायर किया जाता, कुछ राजनीतिक दलों तथा विदेशी सहायता से चल रहे कतिपय मानवाधिकारवादियों भोथर हो गए सेक्युलरिज्म के हथियारधारकों द्वारा निधन को हत्या का संदिग्ध मामला बनाकर उसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घसीटने का दु:प्रयास किया जाता। यह उन लोगों की हताशा की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है जो हर मुद्दे चाहे वह आर्थिक संरचना को मजबूती देने का हो, सामाजिक समरसता बढ़ाने का हो, अन्याय से मुक्त कराने का हो विश्व में मान बढ़ाने का हो, विरोध में खड़े होकर जनसमर्थन के क्षीण होते जाने के बावजूद अपनी नाटक कराकर शगुन बिगड़ने की दिशा में न बढ़ते जाते। जिन नरेंद्र मोदी को ये ताकतें राक्षस साबित करने पर उतारू हैं, वह न केवल भारत बल्कि विश्व का सर्वशक्तिशाली लोकप्रियता के ग्राफ पर निरंतर ऊपर बढ़ता जा रहा है। जितना कीचड़ उछाला जा रहा है उतना ही कमल और खिलता जा रहा है, ऐसा क्या है? क्यों चाहे नोटबंदी हो, या जीएसटी के लागू कर प्रारम्भिक कठिनाईयों में तिल को ताड़ बनाने के अभियान को जनसमर्थन नहीं मिल रहा है? क्योंकि नरेंद्र मोदी की नीयत और नीति दोनों पर जो भरोसा देशवासियों में स्वाभिमान जागृत कर रहा है, उसको मोदी विरोधी अनदेखी कर अपनी साख, नीतियों और नीयत के प्रति उस भावना संज्ञान नहीं लेना चाहते जिसके कारण से 2014 के लोकसभा चुनाव में परिवर्तन के लिए अवाम खड़ा हुआ है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विवाद के पृष्ठभूमि में जो उनके द्वारा प्रेस वार्ता के कुछ ही दिन के बाद, मुख्य प्रवक्ता से मिलने गए एक राजनीतिक दल के नेता के पहुंच जाने से ही स्पष्ट हो जाती है। कुछ सामाजिक संगठनों और राजनीतिक मतधारकों ने संदेह व्यक्त किया है कि 12 फरवरी से रामजन्मभूमि विवाद की सुनवाई करने वाली पीठ जो मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता में गठित है, विवादास्पद बनाकर भयभीत करने के लिए किया जा रहा है, ताकि वे सुनवाई से अलग हो जाय, लेकिन न्यायाधीश लोया की मृत्य सम्बन्धी विवाद की सुनवाई के लिए अपनी बेंच में स्थानान्तरित कर अरूण मिश्र की सुनवाई से अलग होने का अभिव्यक्ति का संज्ञान लेकर किया गया फैसला कर दीपक मिश्र ने अपनी दृढ़ता का परिचय दे दिया है। किसी विवाद का सुनवाई से उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। नरेंद्र मोदी की दुनिया का तीसरा सबसे लोकप्रिय जननेता होने के अंतरराष्ट्रीय आंकलन और विश्व की आर्थिक संस्थाओं द्वारा आर्थिक सुधारों के कारण निरंतर सृदृढ़ होती अर्थव्यवस्था की स्वीकारिता से निहित स्वार्थों तत्वों जिनकी पहचान विभिन्न नामों से बनी है और जिनके स्वार्थ पूर्ति पर भ्रष्टाचार विरोधी उपायों से विराम लग गया है, विक्षिप्त होकर नंगा नाच तो किया ही जा रहा है, वे भी परेशान है जो भारतीय समाज को जातीय विद्वेष, सांप्रदायिक उन्माद से बांटकर अपना निजी पारिवारिक या गिरोह का स्वार्थ साध रहे थे। ऐसे माहौल में किसी भी राजनेता का साहसपूर्णक निर्धारित पथ पर बढ़ते जाने का जो उदाहरण मोदी ने पेश किया है, वह उनकी परिपक्वता और स्वार्थरहित-चाहे वह सत्ता में रहने का ही हो-आचरण से ही भारत का मान सम्मान बढ़ा है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था रखने वालों को संसदीय आचरण में घोर क्षरण के मोड़ों दृष्यों से विचलित करने के प्रयास की असफलता से यह अवधारणा बलवती होती है कि भारत की सुदृढ़ता को जाने अनजाने या निहित स्वार्थ के कारण क्षतिग्रस्त करती जा रही शक्तियां अब अंतिम सांस ले रही है। न्यायाधीशों के विवाद खड़ा करने के बाद जो तथ्य प्रकाश में आये, वे इस विवाद को खड़ा करने की पृष्ठभूमि भी स्पष्ट करते हैं।

Updated : 24 Jan 2018 12:00 AM GMT
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