पद्मावत पर संशय बरकरार
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निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म का पूर्व नाम पद्मावती भले ही अब नाम बदलकर पद्मावत के रुप में दर्शकों के सामने आ रही है, लेकिन जिस प्रकार के सवाल उठे थे, वे अब भी बरकरार हैं। इन सवालों के जवाब अभी तक सामने नहीं आए हैं। ऐसी स्थिति में पद्मावत के प्रदर्शन पर संशय के बादल अभी छंटे नहीं हैं। अभी भी विवादों के बीच फिल्म पद्मावत का लगातार विरोध जारी है, हिंदू समाज, खासकर राजपूत समाज का आरोप है कि फिल्म का निर्माण इतिहास से छेड़छाड़ करके किया गया है। जिसमें रानी पद्मावती के चरित्र-चित्रण को गलत तरीके से दिखाया गया है। जिसके चलते राजपूत समाज लगातार फिल्म का विरोध कर रहा है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने देश के चार राज्यों द्वारा फिल्म पर लगाए गए प्रतिबंध को पूरी तरह से हटाकर फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति भी प्रदान कर दी है, लेकिन इसके बाद भी देश का राजपूत समाज अभी भी फिल्म का प्रदर्शन नहीं होने देने के लिए अपना पूरा जोर लगा रहा है। फिल्म के विवाद को समाप्त करने के लिए अभी हाल ही में संजय लीला भंसाली ने राजपूत करणी सेना को फिल्म दिखाने के लिए पत्र भी लिखा है, लेकिन करणी सेना के अध्यक्ष लोकेन्द्र सिंह ने इस पत्र पर ही अपनी आपत्ति जाहिर कर दी। उन्होंने सवाल यह उठाया है कि संजय लीला भंसाली का पत्र एक बहुत बड़ा मजाक है, क्योंकि पत्र में फिल्म पद्मावत को दिखाने के लिए कोई दिनांक संजय लीला भंसाली ने नहीं लिखी है, ऐसे में इस पत्र का क्या औचित्य है, यह समझ से परे है। पद्मावत फिल्म का विरोध करने वाले राजपूत करणी सेना के नेतृत्व में देश के कई शहरों में रैली निकालकर प्रदर्शन कर रहे हैं, कहीं कहीं तो तोड़फोड़ करने के दृश्य भी सामने आ रहे हैं। करणी सेना के इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सवाल यह भी है कि यह तोड़फोड़ वाला प्रदर्शन किस सीमा तक सही माना जा सकता है, क्या वास्तव में विरोध का यह तरीका उचित माना जा सकता है। वास्तव में होना यह चाहिए कि दोनों पक्षों को एक दूसरे की बात का सम्मान करते हुए वार्ता करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे फिल्म का प्रदर्शन हो या न हो, इसका रास्ता निकाला जा सके। लेकिन न तो राजपूत करणी सेना इस प्रकार का समन्वय बिठाने वाला कदम उठा रही है और न ही संजय लीला भंसाली की तरफ से ही कोई गंभीर प्रयास किया जा रहा है। अभी हाल ही में राजपूत करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने देश के पांच राज्यों मध्यप्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र के कई शहरों में जमकर उत्पात मचाकर विरोध का जो तरीका अपनाया है, उसे न तो जनता ठीक कह रही है, और न ही वह किसी दृष्टिकोण से ठीक कहा जा सकता है। विरोध करने का तरीका संवैधानिक भी हो सकता है, लेकिन हिंसात्मक विरोध किसी भी समस्या का सर्वशुद्ध हल नहीं हो सकता। अब 25 जनवरी को फिल्म का प्रदर्शन होने जा रहा है, सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने आदेश में राज्यों की सरकार को आदेशित किया है कि फिल्म के प्रदर्शन के दौरान सुचारु रुप से कानून व्यवस्था का पालन किया जाए। अब देखना यह है कि फिल्म रिलीज होने के बाद देश में राजपूत करणी सेना का विरोध किस स्तर तक हो सकता है। यह भी हो सकता है कि संजय लीला भंसाली और राजपूत करणी सेना कोई बीच का रास्ता निकाल लें, जिसकी संभावना भी है, लेकिन फिर भी सवाल यही है कि करणी सेना को फिल्म के प्रदर्शन के दौरान रचनात्मक विरोध का तरीका ही अपनाना चाहिए, जो सर्वथा ठीक ही होगा।