गणतंत्र दिवस का बच्चों को समर्पित होना
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-डॉ. निवेदिता शर्मा
भारत अपने गण का 69 वां दिवस मना रहा है। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट 1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था। वस्तुत: यह सर्वविदित है कि एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और इसे 26 जनवरी 1950 को एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। इसके पीछे के समुचे इतिहास पर दृष्टिपात करें तो वह भी बहुत उज्जवल है एवं हर भारतीय को त्याग और उत्साह से भर देता है यह जानकर कि कैसे हमारे पूर्वजों ने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया है। किंतु इसके उपरांत भी आज जो बात सबसे अधिक खटकती है, वह है अपने समय में पूर्णता को प्राप्त कर चुकी आजादी और गण का तंत्र अपने संविधान से चलने के बाद भी देश से बच्चों के प्रति नकारात्मक व्यवहार समाप्त नहीं कर पाया है।
वस्तुत: जो बच्चे परिवार तथा समाज की महत्वपूर्ण धुरी होते हैं तथा जो देश का भविष्य हैं। उन्हें लेकर भारतीय समाज कितना संवेदनशील है, वह इस 69 वें गणतंत्र के जश्न के बीच सड़क पर भीख मांगते बच्चों, श्रमिक बच्चों और कई अपराधों में लिप्त तथा जेलों में सजायाफ्ता बच्चों को देखकर सहज ही समझा जा सकता है। स्थिति इतनी भयानक है कि जिन्हें पढ़ लिखकर देश संवारने के कार्य में लगना चाहिए, वह खेल-कूद, मौज-मस्ती तथा पढ़ाई-लिखाई की उम्र में बाल मजदूरी कर पारिवारिक खर्च का बोझ उठाने के लिए विवश नजर आ रहे हैं । इस तरह भारतीय समाज की अपने ही बच्चों के प्रति पनपती संवेदनहीनता व गैर जिम्मेदारी उन्हें कुंठित, असहाय व नशे की आदी तक बना रही है।
गणतंत्र दिवस पर एक तरफ राजपथ पर बहुरंगी छटाएँ बिखरती हुए स्थितियां हैं। देश के राष्ट्रपति का भाषण है। टेलीविजन पर चकाचौंध पैदा कर देनेवाली देशभर से नेताओं और राजनीतिक पार्टीओं के कार्यक्रमों की धूम है । हर वर्ष हमें बताया जा रहा है कि भारत ने टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कितनी अधिक उन्नति की है और आर्थिक-मोर्चे पर भी हमारा दमखम दुनिया के देशों के बीच कितना अधिक बढ़ा है । जैसा कि इन दिनों भारतीय शेयर बाजार अपनी ऊंचाईयों की सर्वोच्चता पर है और देश तकनीकि स्तर पर आज सुपर कम्प्यूटर के बाद से हर वह कुछ बना रहा है तथा दूसरे देशों को भी प्रदान कर रहा है जिसकी कि कल तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, किंतु इस सब के बीच हमारे देश का भविष्य जिसके हाथों में देश गढ़ने की ताकत है, उनकी क्या दशा है , यह बहुत विचारणीय है । प्रश्न स्वभाविक है, क्या वास्तव में जिस उद्देश्य को लेकर हमने अपना सफ़र शुरू किया था, उसे हम हासिल कर पाए हैं ? जब तक देश में नौनिहाल बेबस नजर आएंगे, निश्चित ही यह गणतंत्र का उत्साह दिवस अधूरा ही माना जाएगा।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के आधार पर यदि भारतीय बच्चों की स्थिति देखी जाये तो यहां बाल मजदूरी हो अथवा बच्चों को चौराहे-चौराहे भीख मांगने की स्थिति इससे जुड़े तमाम प्रतिबंध कोरी कागजी कार्यवाही ही साबित हुए हैं। हालांकि इसमें निहित कानूनों द्वारा ऐसे उद्योगों में जहां कम उम्र के बच्चे खतरनाक कार्य कर रहे हैं, दबाव पड़ने पर निकाल अवश्य दिये गये, किंतु उनकी आर्थिक मजबूरी इन्हें पहले से भी ज्यादा खतरनाक उद्योगों में खींच ले गयी। यूनिसेफ कहता है कि खतरनाक उद्योग धंधों में लगे होने से बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन होता है जो कि मानवीय सभ्यता के विरूद्ध अपराध है। इसके बाद भी भारत में आज अनुमानित आंकड़ों में 15 करोड़ बच्चे बालश्रम करने को विवश हैं।
इस संदर्भ में वैश्विक आंकड़ा कहता है कि विश्व में 25 करोड़ बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं जिनमें 47 प्रतिशत अफ्रीका में, 16 प्रतिशत मध्यपूर्व में एवं उत्तरी अफ्रीका में, 34 प्रतिशत दक्षिण एशिया में तो 12 प्रतिशत लेटिन अमरीका में, 6 प्रतिशत एशिया (पूर्व) व प्रशांत क्षेत्रों में तथा 13 प्रतिशत अन्य राष्ट्रकुल देशों में इसकी संख्या है। किंतु इस सब के बीच भारत में बाल मजदूरी में भी 3 करोड़ बच्चे सिर्फ खतरनाक उद्योगों में कार्यरत हैं। यहां 2 करोड़ बच्चे खेतों में और लघु उद्योगों में बंधुआ मजदूर के तौर पर अपना जीवन बिता रहे हैं। वस्तुत: यह बताने के लिए पर्याप्त है कि हमारे गण का तंत्र आज भी कितना कमजोर है ।
वास्तव में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ दुनिया में निवेशकों की पहली पसंद जापान को छोड़कर भारत बनता जा रहा है, देश में तेजी से पूंजी का प्रवाह बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ गरीब परिवारों की आमदनी का 23 प्रतिशत भाग उनके बच्चे ही कमाकर दे रहे हैं। जिन बच्चों का स्व जीवन में स्कूली शिक्षा और मनोरंजन के साथ उनके अपने स्वास्थ्य पर ध्यान होना था, उसके स्थान पर उनका अपने परिवार का भरण-पोषण का भार सहना कितना उचित ठहराया जा सकता है ? वस्तुत: यह बहुत ही सोचनीय है, इस पर कि देश गढ़ने के लिए हमारे कर्णधारों को लोकतंत्र में स्वतंत्रता के बाद से अब तक 72 वर्ष मिल चुके हैं।
आज केंद्र में भाजपा की सरकार है। मोदी के बारे में कहा जाता है और गुजरात के लोगों ने देखा भी है कि किस तरह से उन्होंने समुचे भारत के राज्यों के समक्ष ही नहीं दुनिया के सामने मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात का विकास मॉडल प्रस्तुत किया था। उनके मुख्यमंत्री काल में गुजराती बालश्रम में भी बहुत अधिक गिरावट देखी जागर भीख मांगते बच्चों की संख्या में भी बहुत अधिक कमी आई थी । जबकि आज देश के प्रधानमंत्री तथा उनकी भाषा में वे देश के प्रधानसेवक हैं तब उनसे इस दिशा में देश को बहुत उम्मीदे हैं। कहना यही है कि देश की बाल शक्ति की अनदेखी व उपहास की प्रवृत्ति पर अकुंश लगाना वर्तमान की आवश्यकता है , तभी हम एक समृद्ध राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं । जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त देश के हर मंत्रालय और विकास से जुड़े मुद्दे पर सीधा ध्यान दे रहे हैं वैसे ही जरा इस विषय पर भी वे अपना ध्यान केंद्रित करें, जिससे कि भारत अपने यहां बच्चों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार से मुक्त हो सके और हम सभी भारतवासी सही अर्थों में अपना गणतंत्र दिवस मना सकें।
लेखिका, समाजसेवा से जुड़ी होने साथ पत्रकारिता और शिक्षण कार्य से जुड़ी हैं।
Updated : 25 Jan 2018 12:00 AM GMT
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