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अब विभूतियों को मिला पुरस्कार



कोई भी पुरस्कार जब सही हाथों में जाता है, तब उसका सम्मान और बढ़ जाता है। पहले के दौर में पुरस्कार प्राप्त करने के लिए किस प्रकार से जुगाड़ की जाती थी, यह सबको पता है। अपने संबंधों के आधार पर पुरस्कार प्राप्त करना वास्तव में उस पुरस्कार का अपमान ही कहा जाएगा। ऐसा पहले की सरकारों के समय कई बार देखने में आया था कि पुरस्कार वितरण की प्रक्रिया पर स्वयं ही सवाल उठने लग गए थे, लेकिन वर्तमान में केन्द्र सरकार ने जिस प्रकार से पुरस्कारों की घोषणा की है, वह प्रथम दृष्टया ऐसा ही लगा है कि अबकी बार पुरस्कारों के साथ वास्तविक न्याय हुआ है। जो पुरस्कारों के वास्तविक हकदार थे, उन्हीं को पुरस्कार दिया गया है। इन पुरस्कारों में तीन पद्म विभूषण, नौ पद्म भूषण और 73 पद्मश्री पुरस्कार दिए गए हैं। इसी के साथ वीरता पुरस्कार भी दिए गए हैं। हम जानते हैं कि पहले मंत्रियों की संस्तुति पर पुरस्कार के नामों को अंतिम रुप दिया जाता रहा है, लेकिन अब केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस प्रणाली को इतना महत्व नहीं दिया।

इस बार आॅनलाइन आवेदन देने की प्रक्रिया भी अपनाई गई, जिसके कारण अपने-अपने क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम करने वाले महानुभावों को इस सूची में स्थान मिल सका। इन पुरस्कारों की घोषणा पर कुछ लोगों का मानना है कि इनमें से कई लोगों को बहुत पहले ही ये पुरस्कार मिल जाने चाहिए थे, क्योंकि ये लोग पद्म पुरस्कारों के वास्तविक हकदार थे। तथ्यात्मक बात यह है कि इन लोगों ने पुरस्कार प्राप्त करने के लिए किसी प्रकार की जुगाड़ नहीं की और न ही पहले के पुरस्कारों के मिलने पर किसी भी प्रकार के सवाल ही उठाए थे। वास्तव में ऐसे लोग किसी पुरस्कार की चाह में काम नहीं करते, इनके लिए तो इनका काम ही पुरस्कार है। इसीलिए कर्नाटक स्थित विजयपुर के आध्यात्मिक गुरु स्वामी सिद्धेश्वर जी ने यह कहकर पुरस्कार वापस करने की मांग की है कि उन्हें किसी पुरस्कार की चाह नहीं है, वे संत हैं और संत होने के नाते वे किसी भी सम्मान को लेने की स्थिति में नहीं हैं।

यहां यह सवाल जरूर आता है कि पहले भी ऐसे नाम आते रहे हैं, जिन्होंने सम्मान लेने से मना किया है, लेकिन उस समय सम्मान नहीं लेने वालों की प्रतिक्रिया यही होती थी कि जिस प्रकार से यह सम्मान बांटे जा रहे हैं, वह तरीका सही नहीं है। यानी पहले की सरकारों में पुरस्कार बांटे जाते थे, और अब सम्मान दिया जा रहा है। यही मूलभूत अंतर है पहले के और अभी के पुरस्कारों के नामों की घोषणा में। पहले पुरस्कार पाने के हकदार लोग सम्मान वापस करते थे, अब अपने काम को महत्व देने वाले लोग सम्मान नहीं लेने की मांग कर रहे हैं। वर्तमान में जिनको भी सम्मान दिया जा रहा है, वह सभी अपन-अपने क्षेत्र की सम्मानित विभूतियां हैं और पद्म सम्मानों के वास्तविक हकदार भी हैं। इसलिए यह अब आसानी से कहा जा सकता है कि अबकी बार सम्मान के साथ न्याय हुआ है। विभूतियों के हाथों में सम्मान दिए जाने से पुरस्कार का महत्व भी कई गुना बढ़ गया है।

Updated : 29 Jan 2018 12:00 AM GMT
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