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टीवी पर हम क्या देखें?

टीवी पर हम क्या देखें?
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आज टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में क्या दिखाया जा रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। जिसका सीधा प्रभाव आज हम समाज में कहीं न कहीं देख भी रहे हैं। फिर चाहे वह हमारे तीज त्यौहार पर हो या हमारे रिश्तों पर। असल में टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों ने व्यक्ति के मानस को इस प्रकार से नियंत्रित कर लिया है कि वह नाटकीय जीवन और असल जीवन के मध्य के अंतर को भूल गया है। आज व्यक्ति इन नाटकीय जीवन से इस प्रकार प्रभावित है कि स्वयं नाटकीय जीवन जीने को ही हितकर समझने लगा है।

आधुनिकता के दौर में यदि बात मनोरंजन के साधन की, की जाए तो सबसे पहले एक ही नाम याद आता है वह है हमारे घर का टीवी। विशेष तौर पर महिलाओं के लिए। यदि महिलाएं कामकाजी नहीं है तो घर के अन्य कामों से निपटने के बाद टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों से ही अपना मनोरंजन करती हैं। यह उनके जीवन में परिवार के सदस्य की भांति ही महत्व रखता है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि वे अपने बच्चों के साथ टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को देखती है। स्थिति और भी गंभीर तब प्रतीत होती है जब इनके बारे में अपने मित्रों या परिवार जनों से टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों में होने वाली घटनाओं पर चर्चा करने लगते हैं।

सभी इस बात से भलीभांति अवगत हैं कि टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में संयुक्त परिवार तो दिखाए जाते हैं लेकि न उसमें कोई न कोई विलेन जरूर होता है। यह विलेन कोई और नहीं परिवार का ही कोई एक सदस्य होता है जो अपने ही परिवार के विरुद्ध षड्यंत्र रचता है। अब आप सोचिए क्या यह हमारी संस्कृति के विरूद्ध नहीं है। क्या परिवार को तोड़ना हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है, क्या अपनों के विरुद्ध षड़यत्र रचना हमारी संस्कृति है.... नहीं तो आप स्वयं विचार करें कि हमारा चयन कैसा है। हम क्यूं उस बहाव में बहे जा रहे हैं जो हमारी संस्कृति के विपरीत दिशा में ले जा रहा है।

ऐसा नहीं है कि टीवी पर प्रसारित होने वाले सभी कार्यक्रम हमारी संस्कृति के विरूद्ध हों। यहां कुछ ऐसे कार्यक्रम भी हैं जो अनेकता में एकता के भाव को प्रदर्शित करते हैं। कई धारावाहिक जो हमें आदिकाल की घटनाओं से परिचित कराते हैं तो कई घर्मग्रंथों की कथाओं से परिचित कराते हैं तो अब यहां चयन हमारा है कि हम क्या देखना चाहते हैं। क्या हम उन धारावाहिकों को देखना चाहते हैं जिनमें झूठी चमक-दमक अपनों के प्रति षड्यंत्र को दिखाया जाता है या फिर वह जो हमें हमारी संस्कृति का बोध कराते हुए आत्म कल्याण की ओर ले जाते हैं।

जरा सोचिए यदि आप आज नहीं सभले तो क्या अपने बच्चों या आने वाली पीढ़ी को हमारी संस्कृति से परिचित करा पाएंगे... नहीं न। तो विचार करें। नाटकीय जीवन और असल जीवन के मध्य के अंतर को समझते हुए चयन करें कि हमें क्या देखना चाहिए और क्या नहीं, साथ ही अपने से जुड़े प्रत्येक व्यक्तियों को भी इस बात का बोध कराना चाहिए कि जो हमारे और हमारी भारतीय संस्कृति को बनाएं रखें, उसी को आत्मसात करें ।

Updated : 5 Jan 2018 12:00 AM GMT
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