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जागरूकता के अभाव में 26 वर्षों में हुए सिर्फ 187 नेत्रदान

जागरूकता के अभाव में 26 वर्षों में हुए सिर्फ 187 नेत्रदान
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नेत्रदान तो दूर, फार्म भरने में भी नहीं दिखा रहे रुचि


ग्वालियर, न.सं.। शासन द्वारा नेत्रदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उसके बाद भी दूसरों को रोशनी बांटने में ग्वालियर अन्य शहरों से काफी पीछे है। नेत्रदान के प्रति जागरूकता अभियान चलाने के बाद भी आंकड़े बढ़ने के बजाय घटते जा रहे हैं। नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी गई है, सभी धर्मो में नेत्रदान को सर्वोच्च दान बताया गया है।

उसके बाद भी लोग इसके प्रति जागरूक नहीं है। जिसका उदाहरण गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय में विगत 26 वर्षों में हुए नेत्रदान की संख्या को देख कहा जा सकता है। गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय के नेत्ररोग विभाग में विगत 1992 से लेकर अब तक सिर्फ 185 ही नेत्रदान हुए हैं। इतना ही नहीं लोग नेत्रदान तो दूर की बात है, नेत्रदान के लिए फॉर्म भी भरने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इसी के चलते पिछले कुछ वर्षों में महाविद्यालय के पास करीब 500 फार्म ही पहुंच पाए हैं। जिससे यह साफ है कि नेत्रदान के प्रति लोग जागरूक ही नहीं है, जबकि एक मृत व्यक्ति के नेत्र को एक नेत्रहीन को दे दिए जाएं तो उस नेत्रहीन के जीवन में उजाला हो जाता है।

मृत्यु के बाद 6 से 8 घंटे में होता है नेत्रदान

नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के 6 से 8 घंटे के अंदर ही नेत्रदान कर देना चाहिए। जिस व्यक्ति को नेत्रदान के कॉर्निया का उपयोग करना है, उसे 24 घंटे के भीतर ही कॉर्निया प्रत्यारोपित कराना जरूरी होता है। नेत्रदान का मतलब शरीर से पूरी आंख निकालना नहीं होता। इसमें मृत व्यक्ति की आखों के कॉर्निया का उपयोग किया जाता है।

मृत्यु के बाद नहीं देते सूचना

महाविद्यालय के नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. डी.के. शाक्य का कहना है कि मृत्यु के बाद परिजन पीछे हट जाते हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष लोग नेत्रदान करें इसके लिए लोगों से इसका फार्म भरवाया जाता रहा है, लेकिन मृत्यु के बाद जब उनकी घोषणा की बात आती है तो ज्यादातर परिवार सूचना ही नहीं देते है और अगर सूचना मिलने पर चिकित्सक पहुंच भी जाते हैं तो परिजन नेत्रदान के लिए मना कर देते हैं। जिसकी वजह से नेत्रदान की घोषणा महज घोषणा ही बन कर रह जाती है।

Updated : 6 Jan 2018 12:00 AM GMT
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