कासगंज में अक्षम्य अपराध
उत्तरप्रदेश के कासगंज में राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को लेकर जो कुछ किया जा रहा है, वह अत्यंत ही चिंतनीय विषय कहा जा सकता है। चिंतनीय इसलिए भी है कि दंगे का माध्यम कुछ और होता तो समझ में आता, लेकिन यहां पर तिरंगा विवाद का कारण बना है। तिरंगा यात्रा को बाधित करने का दुस्साहस निश्चित रुप से राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने जैसा ही कहा जा सकता है। यह दंगा अगर भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर होता है तो और भी चिंता का विषय है। राष्ट्र भाव को जगाने के लिए मनाए जाने वाले गणतंत्र दिवस पर व्यक्तिगत अहम को प्रधानता देने से ही ऐसे हालात बनते हैं। यहां हम सभी ने देखा कि जिन लोगों ने तिरंगा यात्रा को रोकने का प्रयास किया, वह व्यक्तिगत अहम के कारण तिरंगा यात्रा को रोकने का दुस्साहस कर सके। यहां एक प्रश्न यह आता है कि जिसके प्रति सभी देशवासियों के मन में निष्ठा का प्रदर्शन होना चाहिए, वहां ऐसे कदमों को रोकने वाले लोग इतनी हिम्मत कैसे कर सके। उत्तरप्रदेश का कासगंज तो एक ज्वलंत उदाहरण है, इसके अलावा प्रदेश में विगत दो दशक के राजनीतिक हालातों ने जिस प्रकार से एक वर्ग विशेष को छूट दी थी, आज उसी का परिणाम है कि तिरंगा यात्रा पर हमला किया जाता है, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाए जाते हैं। कौन नहीं जानता कि उत्तरप्रदेश में भारत की आस्थाओं पर कई बार हमले किए गए और हमला करने वालों को राजनीतिक प्रश्रय भी मिलता रहा है। चाहे वह मुजफ्फर नगर का दंगा हो या फिर कैराना की घटना हो, सभी जगह उपद्रवियों को संरक्षित किया गया। वर्तमान हालात में कासगंज में लगभग ऐसा ही परिदृश्य दिखाई दे रहा है। उपद्रवियों के प्रति राजनीतिक सहानुभूति का परोक्ष रुप से समर्थन दिया जा रहा है। हालांकि इसके लिए प्रदेश की वर्तमान योगी सरकार को निशाने पर लिया जा रहा है, लेकिन क्या किसी ने इस बात का चिंतन किया है कि ऐसे हालात क्यों निर्मित हुए। इसकी तह में जाने से पता चल जाएगा कि कहीं न कहीं इसके लिए पिछली सरकारों का भी राजनीतिक स्वार्थ वाला दृष्टिकोण ही रहा है।
कासगंज में तिरंगा को लेकर दंगा भड़कता है तो यह हम सभी के लिए राष्ट्रीय शर्म की बात ही कही जाएगी। आखिर तिरंगा हमारे देश की अखण्डता और अनेकता में एकता का गौरवमय प्रतीक है, उसे ही टकराव और हिंसा की वजह बना देने का कहीं कोई औचित्य नहीं बनता। इसमें सभी वर्गों को सामूहिक रुप से भागीदारी करनी चाहिए, लेकिन भागीदारी तो दूर की बात यहां केवल अहम के टकराव के चलते राष्ट्रीय पर्व को भी फीका करने का प्रयास किया गया। ऐसे में सवाल यह भी है कि भविष्य में इस प्रकार की तिरंगा यात्रा निकाले जाने पर भय का वातावरण निर्मित हो जाए और हो सकता है कि तिरंगा यात्रा ही निकलना बंद हो जाए। क्योंकि ऐसी यात्राओं पर हमला करना वास्तव में भय की स्थिति निर्मित करना ही होगा। जो देश के भविष्य के लिए सही नहीं कहा जा सकता है। यहां सबसे बड़ी चिंता इस बात की भी है कि देश के मानस में किस प्रकार की प्रवृत्ति जन्म ले रही है, क्या देश की जनता के मन में देश भाव विलुप्त होता जा रहा है। कासगंज की घटना तो यही प्रदर्शित करती हुई दिखाई देती है। क्योंकि 26 जनवरी के अवसर पर जब पूरे देश में राष्ट्रीय भाव को प्रदर्शित करने वाले गीत बुंजायमान हो रहे थे, सारे देश में देशभक्ति की भावना उमड़ रही थी, तब कासगंज में तिरंगा यात्रा को रोकने जैसा कृत्य किया जाना कहीं न कहीं राष्ट्र भाव से दूर जाने की प्रक्रिया का हिस्सा ही कहा जा सकता है। वास्तव में राष्ट्र के स्वाभिमान को जगाने वाले किसी भी कार्यक्रम पर अडंगा पैदा करना अक्षम्य अपराध ही है और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान भी होना चाहिए।