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कश्‍मीर में आतंक के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई की जरूरत

कश्‍मीर में आतंक के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई की जरूरत
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जम्मू-कश्मीर में पिछले साल 342 आतंकी घटनाएं हुईं। इन घटनाओं में सेना, सुरक्षाबलों और पुलिस के हाथों 213 आतंकी मारे गए। इनमें भी 127 विदेशी और 86 स्थानीय आतंकियों के शामिल होने की बात सामने आई है। इन समस्‍त घटनाओं में 150 निर्दोष लोगों की मौत होने के साथ ही 80 सुरक्षाकर्मी शहीद और 226 घायल हुए हैं। वस्‍तुत: यह 2017 का आंकड़ा बता रहा है कि जम्‍मू-कश्‍मीर में विदेशी ताकतें कितनी अधिक सक्रिय हैं।
तथ्‍यों से स्‍पष्‍ट है कि भारत में आतंक को फैलाने में आज विदेशी घुसपैठिए सबसे ज्‍यादा सक्रिय हैं, जो कि भारतीय नवयुवकों को भी गुमराह करने का काम कर रहे हैं। इसमें जो चौंकाने वाली बात है, वह यह कि एक जनवरी 2015 से लेकर 31 दिसंबर 2017 के बीच सिर्फ तीन आतंकियों ने आत्मसमर्पण किया। लगता है जैसे पुलिस एवं सेना से किसी आतंकी को कोई डर ही न हो। तभी तीन साल में हुए आत्‍मसमर्पण का ग्राफ इतना कमतर है। दूसरी ओर पत्‍थरबाजों और आतंकवादियों को बचाने के लिए सेना की कार्रवाई बाधित करने की मंशा से सड़कों पर उतरते वालों की संख्‍या यहां हजारों में दिखाई देती है। कई बार तो विद्यालय से घर लौटते युवक-युवतियों के भी चित्र पुलिस और सेना पर पत्‍थर फेंकते वायरल हो चुके हैं।

एक तरह से देखें तो समूचे जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य में घाटी के हालात सबसे खराब हैं, इसमें भी केवल चार प्रमुख जिले बारामूला, अनन्तनाग, श्रीनगर और शोपियां ही यहां पाकिस्‍तान प्रायोजित आतंक को प्रश्रय देते दिखाई देते हैं। दूसरी तरफ इस राज्‍य की राजनीतिक परिस्‍थ‍ितियां हैं, जिसमें कहने को दो पार्टियों की मिलीजुली सरकार है, किंतु बीजेपी की तुलना में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की ओर से मुख्‍यमंत्री बनी महबूबा मुफ्ती ही यहां सबसे अधिक प्रभावशाली हैं। उनके प्रभाव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में सेना की गोली से दो पत्थरबाजों की मौत होती है, तब यह जानते हुए भी कि पत्थरबाजों की ओर से उकसावे की कार्रवाई होने के बाद ही सेना ने आत्मरक्षा में फायरिंग की थी, वो उन पत्‍थर फेंकने वालों के समर्थन में ही खड़ी रहीं। और तो ओर वह सेना के जवानों के खिलाफ रपट दर्ज कराने से भी नहीं चूकीं।

कश्मीर में गढ़वाल राइफल के जवानों पर केस दर्ज कराना आखिर क्‍या बता रहा है? ये पत्थरबाज कश्मीर को बीते कई दशक से जलाते आ रहे हैं। इन्हें पाकिस्तान के आंतकी संगठनों की सरपरस्ती हासिल है और इन्हीं पत्थरबाजों की पैरवी में कश्मीर की मुख्‍यमंत्री खड़ी हो जाएं तो इसके सीधे मायने समझ आते हैं। इसी से अनुमान लग जाता है कि जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य की सियासत सबसे घटिया दौर से गुजर रही है। सेना पर एफआईआर और जवानों पर आरपीसी की धारा 302 और धारा 307 यानी हत्या के केस दर्ज किया जाने की घटना सीधे तौर पर यह संकेत भी दे रही है कि मुख्‍यमंत्री भी कहीं न कहीं आतंकियों के हाथ की कठपुतली ही बन गई हैं। दूसरी ओर उनका बार-बार सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी अफस्पा पर सवाल खड़ा करना बताता है कि वह स्‍वयं ही अलगाववादियों के साथ खड़ी हैं।

देखा जाए तो यहां कुपवाड़ा, शोपियां, भद्रवाह, हंदवाड़ा में वर्ष में कुछ दिन ही ऐसे जाते हैं, जब जवान शहीद न होते हों। दूसरी ओर कश्‍मीर में हमारी सेना द्वारा आम नागरिकों के हित में चलाए जा रहे समाजिक कार्य हैं। श्रीनगर में बाढ़ आई तो आगे होकर सेना के जवानों ने ही अपनी जान जोखिम में डाली और कई स्‍थानीय लोगों की जान बचाई। सेना आज यहां 40 से ज्यादा प्रथम श्रेणी के सद्भावना विद्यालय चला रही है। सेना के अस्पतालों में ग्रामीण कश्मीरियों को निःशुल्क चिकित्सा दी जा रही है। सैकड़ों गांवों में सेना स्थानीय महिलाओं के बीच आर्थिक स्वावलम्बन के प्रकल्प खड़े कर चुकी है। कस्बों में कश्मीरी युवाओं को कम्प्यूटर प्रशिक्षण देने की व्‍यवस्‍था की गई है। इतना ही नहीं, हजारों कश्मीरी युवक-युवतियों को सेना द्वारा मुफ्त में देशभ्रमण कराया जाता है, ताकि देश को जानने की उनकी अपनी सोच का विकास हो सके।

इतना सब करने के बाद भी यहां अलगाववादियों के जरा भड़काने से युवाओं का पत्‍थर लेकर सड़कों पर उतर आना बताता है कि देश से कश्‍मीरी युवाओं को भटकाने के लिए राज्‍य में ऊंचे स्‍तर पर राजनीतिक समर्थन प्राप्‍त है, जिस पर हर हाल में रोक लगाने की आज जरूरत है।वस्‍तुत: देश में यह कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि कोई भी अराजक तत्व सेना को क्षति पहुंचाने का प्रयास करे। कायदे से तो पत्थरबाजों के खिलाफ मुकदमे भी वापिस नहीं लिए जाने चाहिए थे। जिन सैकड़ों की संख्या में पत्थरबाजों के खिलाफ मुकदमे वापस लिए गए, वे फिर सेना पर पत्थर बरसा रहे हैं। आज मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को यह समझना होगा कि सेना और सुरक्षा बलों के संयम की एक सीमा है। यदि वे सेना से और संवेदनशील होने की आशा करती हैं तो वह भी ये समझें कि सेना के भी कुछ अधिकार हैं।

भारत विरोधी शक्तियां देश की अर्थव्यवस्था, राजनीतिक हैसियत और विविध पंथ, मत, दर्शन में विभक्‍त किंतु एकता के सूत्र में बंधे भारत को कमजोर बनाने में जुटी हैं। कश्‍मीर उनका सॉफ्ट टार्गेट है, जहां इस्‍लामिक समानता और कश्‍मीरियत के नाम पर युवाओं को बरगलाना आसान होता है। इसलिए कश्‍मीर में आतंक के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई की आज जरूरत है।

लबोलुआब यही है कि जो हाथ भारतीय सेना पर पत्‍थर मारने की मंशा से उठें, उन्‍हें बिना किसी दबाव के जेल में डाल दिया जाए। आतंकवादियों को बचाने के लिए अभी घाटी में सेना की कार्रवाई को बाधित करने का आए दिन प्रयास होता है। ऐसे में जो भी सेना के कार्य को रोकने का काम करे, उस पर देशद्रोह का केस चलाया जाना चाहिए। जब तक आतंकियों को मिलने वाली स्‍थानीय मदद पर गहरी चोट नहीं की जाएगी, कश्‍मीर से आतंकवाद का सफाया नहीं होगा।

Updated : 2 Feb 2018 12:00 AM GMT
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