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उपचुनाव के नतीजे- मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति फूटा आक्रोश

उपचुनाव के नतीजे- मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति फूटा आक्रोश
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- ईश्वर बैरागी

राजस्थान में अजमेर, अलवर लोकसभा और मांडलगढ़ विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव में कांग्रेस ने भारी मतों से जीत दर्ज की। नतीजे भाजपा की उम्मीद के उलट आए। भाजपा को जनता ने आइना दिखाया। यह नतीजे ऐसे समय आए हैं, जब इसी वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने है। यह भाजपा की हार नहीं, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति जनता और पार्टी के ही कार्यकर्ताओं का आक्रोश है, जो उपचुनाव में फुटा। यह भाजपा आलाकमान के लिए संकेत हैं कि राजस्थान में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। शीर्ष नेतृत्व को राजस्थान के हार के कारणों पर गहराई से मंथन कर कठोर निर्णय लेना पड़ेगा। कार्यकर्ताओं और जनता की भावनाओं का सम्मान करना होगा। समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले विधानसभा में चुनावों में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ेगा।

राजस्थान में पार्टी का हार का मुख्य कारण मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के चेहरा है। राजे ने अपने चार साल के शासन में लोगों को निराश किया है। मंत्री, विधायक, कर्मचारी, अधिकारी, पत्रकार, जनता और पार्टी के कैडर कार्यकर्ता राजे की कार्यशैली से खुश नहीं है। राजे चंद बड़े नौकरशाहों और कथित सिपेहसालारों से गिरी रहती है। राजे के इर्द गिर्द जो घेरा बना है, वह अभेद्य है। ऐसे में यदि मुख्यमंत्री से कोई मिलना भी चाहे तो असंभव है। क्योंकि ये लोग मुख्यमंत्री तक आम व्यक्ति तो दूर की बात मंत्री और विधायकों तक मिलने नहीं देते हैं। राजे के खास माने जाने वाले शीर्ष अधिकारियों आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं। इनके कृत्य का जनता में यह संदेश है कि सबकुछ राजे की सहमति से हो रहा है। मुख्यमंत्री की राजपूत, गुर्जर, ब्राह्मण, मीणा और जाट जातियों की नाराजगी का खामियाज भी इस चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ा है।
बूथ मैनेजमेंट के लिए जानी जाने वाली पार्टी का राजस्थान में सांगठनिक ढ़ांचा नीचे तक ध्वस्त हो चुका है। मूल कैडर का कार्यकर्ता अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा हैं। कार्यकर्ताओं में नाराजगी इस कदर हावी है कि भाजपा के 21- 21 लोगों की बूथ समिति वाले कई बूथों पर पार्टी को एक- एक वोट से ही संतोष करना पड़ा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भाजपा के ही कार्यकर्ताओं ने किनारा क्यों किया।

चुनावी नतीजों के बाद प्रदेश में कांग्रेस के साथ ही भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी खुशी है, यह दीगर बात है वह सार्वजनिक तौर पर खुशी जाहिर नहीं कर पा रहे हैं लेकिन व्यक्तिगत बातचीत में वे प्रसन्न है। उधर वर्ष 2013 में विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद राजस्थान कांग्रेस हाशिए पर चली गई थी। लोगों को लग रहा था अब कांग्रेस कभी खड़ी नहीं पाएगी। लेकिन इसके बाद हुए उपचुनावों के जो नतीजों ने कांग्रेस ने एक बार फिर जान फूंक दी है।

भाजपा लगातार कांग्रेस में आपसी गुटबाजी के आरोप लगाती है आई है। लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस के खेमे नहीं पूरी कांग्रेस एक साथ दिखी। उपचुनाव में प्रत्याशी चुनने में अहम किरदार पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने अदा किया तो पंजाब और गुजरात में कांग्रेस की परफॉर्मेंस सुधरवाने में अहम किरदार निभाकर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी खेमेबाजी को दरकिनार कर सचिन के कंधे से कंधा मिलाकर कांग्रेस के प्रचार प्रसार में जुट गए। इनके अलावा कांग्रेस महासचिव सी.पी. जोशी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री भंवर जीतेन्द्र सिंह के पूरी जिम्मेदारी से काम करने का ही परिणाम रहा कि कांग्रेस में एक बार फिर खड़ी हो गई।

Updated : 2 Feb 2018 12:00 AM GMT
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