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बैंकों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न

बैंकों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न
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वेब डेस्क। बैंकों की कार्य कुशलता देखें कि मोदी सरकार के प्रयास से देशवासियों के लिए 28 अगस्त 2014 को जनधन खाता योजना का शुभारंभ हुआ था। इस योजना के अंतर्गत केवल पंजाब में ही 61 लाख खाते खुले थे परंतु इनमें से आठ लाख जनधन खाते निष्क्रिय हैं और उनको बंद करने की तैयारी हो रही है। क्योंकि इन खातों में पैसा न होने के कारण बैंकों के आंकड़े बिगड़ रहे हैं और इन खातों के रखरखाव में भी अनेक कठिनाइयां आती हैं। इसप्रकार बैंकों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न यह उठता है कि जब देश के विभिन्न बैंकों द्वारा पिछले कई वर्षों में बड़े-बड़े पूंजीपतियों को दिए गए उधार के लगभग 8 लाख करोड़ फंसे (एनपीए) हुए हैं के प्रति कोई भी चिंतित नहीं हुआ, क्यों ?

अभी ताजा उदाहरण नीरव मोदी का है जिसने भ्रष्ट राजनेताओं व बैंक अधिकारियों की सांठ-गांठ से 11400 करोड़ रुपये की बड़ी राशि को धीरे-धीरे ठगा है , फिर भी उसके खाते चालू रहे। क्या यही हमारे उच्च व योग्य बैंक अधिकारियों व उनसे संबंधित अन्य अधिकारियों व नेताओं की विशेषता है? क्या जनधन योजना के निष्क्रिय खाते भ्रष्ट बैंक अधिकारियों व नेताओं के पर्स नही भरते इसलिए इन पर कार्यवाही में शीघ्रता हो रही हैं? आज जब भारत एक उभरती शक्ति के रुप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहा है तो ऐसे में देश के ही कुछ गणमान्य कहे जाने वाले सज्जन/दुर्जन अपने दुराचारी व भ्रष्टाचारी आचरणों से राष्ट्र के स्वाभिमान को तार तार करने से भी नही चूकते। अगर इसी प्रकार निर्धनों पर अंकुश और धनवानों को लूटने की छूट मिलती रही तो सफेद धन भी काला होता रहेगा ? फिर क्यों कहा जाता है कि काला धन आयेगा जबकि सफेद धन के बाहर जाने का सिलसिला रुक ही नहीं रहा। विनोद कुमार सर्वोदय

Updated : 21 Feb 2018 12:00 AM GMT
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