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ढाई करोड़ को 45 लाख बताने पर निगमायुक्त ने फैंकी फाइल!

ढाई करोड़ को 45 लाख बताने पर निगमायुक्त ने फैंकी फाइल!
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मामला होर्डिंग से किराया वसूली का

ग्वालियर, विशेष प्रतिनिधि| लगभग ढ़ाई साल पहले शहर में लगे लगभग सात सौ होर्डिंगों से टेक्स की वसूली तत्कालीन निगमायुक्त ने यह कहकर बंद करा दी थी कि सभी होर्डिंग नियमित हो जाएंगे। तब इनसे किराया वसूली की जाएगी। लेकिन निगम के होर्डिंग अमले ने इन निर्देशों को गंभीरता से नहीं लिया और इस दौरान होर्डिंग तो लगे रहे लेकिन न तो उनका नियतिकरण हुआ और न ही उनसे किराया वसूली हो सकी। ऐसे में किराए की राशि बढ़कर ढ़ाई करोड़ जा पहुंचीं। इस बीच कुछ होर्डिंग कंपनियों ने मामला निपटवाने के लिए अधिकारी से बात की। तो अधिकारी ने 45 लाख किराए की फाइल बनाकर निगमायुक्त के समक्ष पेश की लेकिन निगमायुक्त ने जब पता किया कि वसूली ढ़ाई करोड़ की है तो 45 लाख की फाइल कैसे बनकर आई। उन्होंने गुस्से में फाइल फैंक दी। अब यह मामला लटका हुआ है। वहीं हाईकोर्ट द्वारा अवैध होर्डिंग हटाने के लिए निगम को बार-बार फटकार लगाई जा रही है। लेकिन होर्डिंग अमला इसमें भी कोताही बरत रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि शहर के चुनिंदा होर्डिंग संचालकों ने ढ़ाई करोड़ को 45 लाख कराने में 25 पेटी में सौंदा किया था। ऐसे में 25 पेटी का चंदा देने वालों के होर्डिंग हटाने में होर्डिंग अमले के हाथ कांप रहे है।

जानकारी के मुताबिक अक्टूबर 2015 में श्री द्विवेदी ने यह कहकर होर्डिंग वसूली रुकवाई थी कि इनका नियमितिकरण कर विधिवत वसूली का चार्ट बनाया जाए। साथ ही शहर के अवैध होर्डिंग भी हटवा दिए थे। उनके जाने के बाद होर्डिंग नियमितिकरण की कोई कार्रवाई नहीं हुई उल्टे अवैध होर्डिंगों की बाढ़ लग गई। इस बीच यह मामला हाईकोर्ट चला गया तो दिखाने को कभी-कभी रात में होर्डिंग हटा दिए जाते है। लेकिन याचिकाकर्ता द्वारा शहर में लगे होर्डिंगों के फोटो न्यायालय में पेश कर निगम अधिकारियों को आयना दिखा दिया गया। वहीं अक्टूबर 2015 से होर्डिंग किराए का आंकलन किया गया तो वह लगभग 35 एडवर्टाइजर कंपनियों पर ढ़ाई करोड़ की बकाया राशि निकली, लेकिन इतनी बड़ी राशि देने में संचालकों ने मनाकर होर्डिंग अधिकारी को पटाया कि इस मामले को कम से कम राशि में निपटवा दो। इसके लिए इन संचालकों ने 25 लाख रुपए चंदा किया। इस पर 45 लाख रुपए की फाइल मामला निपटवाने के लिए निगमायुक्त के समक्ष आई तब अपनी सीट से ही निगमायुक्त ने एक अन्य अधिकारी को फोन लगाकर पूछा कि होर्डिंग संचालकों पर कितनी राशि बकाया है तो उस अधिकारी ने यह राशि ढ़ाई करोड़ बताई। इस पर निगमायुक्त गुस्सा खा गए और होर्डिंग अधिकारी को फाइल फेंककर चलता किया। इस तरह यह मामला पूरी तरह विवादास्पद बना हुआ है। वर्तमान में शहर में ढ़ाई सौ होर्डिंग लगे हुए है। इनमें से सवा सौ ही वैध हैं। लेकिन होर्डिंग अमला अभी तक वैध-अवैध की परिभाषा तय नहीं कर पा रहा है। चूंकि 25 पेटी का मामला है ऐसे में चंदा देने वालों के होर्डिंग हटाने में निगम अधिकारी पीेछे हट रहे हैं। इस मामले में एक खास बात यह है कि जो कंपनी बाकायदा अपने होर्डिंगों के पैसे जमा कराना चाहती है उनकी राशि निगम अमला लेने को तैयार नहीं है।
आॅनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू
नई पोलिसी नौ माह पहले आ चुकी है लेकिन होर्डिंग विभाग इसे अभी तक लागू नहीं कर पाया है। सिर्फ एमपी आउटडोर मीडिया पोलिसी के पोर्टल पर इंदौर की एक कंपनी और स्थानीय अजय एडवर्टाइजर के नाम इस पोर्टल पर पंजीकृत हुए है।
यह हैं एडवर्टाइजर कंपनियां
वैसे तो शहर में अनेक नामों से एडवर्टाइजर कंपनियां है लेकिन जिनके होर्डिंग अधिक तादाद में लगे हुए है। उनके नाम अजय एडवर्टाइजर, आर्यन, सौम्या, कल्प, दीपक, एसेन्ट, गंगा, पीआरजे, समीर, नीलकमल, पुष्पम, सागरदीप, सांवरिया।

Updated : 25 Feb 2018 12:00 AM GMT
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