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भारत की आक्रामक कूटनीति


कट्टर विरोधी भी यदि आपकी प्रशंसा करे तो वह आपके लिए प्रमुख सर्टिफिकेट होता है। यदि कूटनीति के संबंध में चीन का अध्ययन करे तो इसके लिए आपको काफी माथापच्ची करना होगी। क्योंकि माओवादी चीन जैसा दिखाई देता है, वैसा है नहीं। उसकी मुस्कराहट में भी गुस्सा रहता है और गुस्से में भी हंसी झलकती है। उसकी कूटनीति भी हंसते-हंसते रोने जैसी है। भारत के साथ नेहरू सरकार के समय चीन ने शांति के कबूतर खूब उड़ाए। नेहरूजी समझ नहीं पाए कि इन कबूतरों को ही चीन खत्म कर देगा। चीन की मुस्कराहट के पीछे की हिंसा की आग पर तो शोध किया जा सकता है। भारत के साथ चीन के संबंध अब भी मित्रता और शत्रुता के बने हुए है। जब चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग भारत आए तो हमारे प्रधानमंत्री ने गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया। अहमदाबाद में साबरमती के तट पर झूले में बैठकर दोनों ने आसपास की सुंदरता को निहारा। राजनीतिक पंडितों में यह चर्चा प्रारंभ हो गई है कि भारत-चीन की दोस्ती मजबूती की ओर है। उसके बाद चीन डोकलाम में सैनिक जमा करके युद्धघोष करने लगा। एक ओर दोस्ती और दूसरी ओर धमकी।

यह भी जाहिर है कि पाकिस्तान जो कंगाली हालत में भीख का कटोरा लेकर खड़ा है। उसको सीपेक का लालीपॉप चीन देता रहता है। भारत की कूटनीति के संबंध में चीन ने जो कहा उससे लगता है कि मोदी सरकार पर चीन की पैनी दृष्टि है। चाइना इंस्टीट्यूट आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज (सीआईआईएस) के वाइस प्रेसीडेंट रोंगचिंग ने कहा है कि पिछले तीन वर्षों में भारत की कूटनीति ने विशिष्ट एवं अद्वितीय 'मोदी डाक्ट्रिन (मोदी सिद्धांत) का निर्माण किया है। यह नए हालात में बड़ी ताकत के रूप में भारत के उभरने की रणनीति है। यह उल्लेख करना होगा कि सीआईआईएस चीन के विदेश मंत्रालय से जुड़ा है। थिंक टैंक की पत्रिका में प्रकाशित लेख में रोंगचिंग ने भारत के चीन, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंध पर नजर डाली है।

रोंगचिंग राजनयिक के तौर पर भारत में काम कर चुके है। उन्होंने कहा कि मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति तेजी से मुखर हो रही है और आपसी लाभ प्रस्तुत कर रही है। भारत-चीन संबंधों के बारे में रोंगचिंग ने कहा कि जब से मोदी ने भारत की सत्ता संभाली है तब से दोनों देशों ने संबंधों में स्थिर गति बनाए रखी है। इस प्रकार थिंक टैंक का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के तहत भारत की विदेश नीति आक्रामक और मुखर हुई है। भारत की विदेश नीति का आंकलन करे तो 1947 से ही कमोबेश एक ही ट्रेक पर चलती रही। पं. नेहरू के समय से ही गुटनिरपेक्षता के आधार पर विदेश नीति आगे बढ़ी। उस समय दुनिया दो महाशक्तियों के खेमे में बटी दिखाई देती थी। एक ओर सुपर पॉवर अमेरिका था और दूसरी ओर सुपर पॉवर सोवियत संघ। दोनों के साथ दुनिया के देश लेफ्ट-राइट करते दिखाई देते थे। भारत का झुकाव कभी सोवियत संघ के साथ दिखाई देता। इसी दृष्टि से सरकारीकरण करने की पहल हुई। सहकारी खेती की चर्चा भी प्रारंभ हुई।

अनूप वर्मा, भिण्ड

Updated : 3 Feb 2018 12:00 AM GMT
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