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कांग्रेस राजनीति के दोराहे पर

कांग्रेस राजनीति के दोराहे पर
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पिछले लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद निश्चित ही अंतिम पायदान पर खड़ी देश की सबसे पुरानी कांगे्रस पार्टी दूध की जली हुई सी स्थिति में दिखाई दे रही है। इसलिए वह अब फूंक फूंककर कदम बढ़ाने को उतावली होती दिख रही है। अभी हाल ही में कांगे्रस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तो अभी से कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर घोषित ही कर दिया है, जबकि अभी लोकसभा के चुनाव बहुत दूर हैं। अभी हाल ही में कांगे्रस प्रवक्ता द्वारा दिए गए बयान से तो यही लगता है कि उन्होंने अपने नंबर बढ़ाने के लिए ही ऐसा बयान दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक मात्र विकल्प राहुल गांधी हैं और देश की जनता राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री देखना चाहती है।

कांग्रेस प्रवक्ता का यह बयान फिलहाल तो ख्याली पुलाव पकाने जैसा ही लग रहा है, क्योंकि जो राजनीतिक पार्टी भाजपा विरोध के नाम पर एक मंच पर आने का प्रयास कर रहीं थीं, वे राहुल गांधी के नाम पर नकारात्मक रुख अपना रहे हैं। ऐसे में कांगे्रस का यह अभियान किस परिणति को प्राप्त होगा, यह अभी से दिखाई देने लगा है। हम जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने भी पिछले लोकसभा चुनाव से लगभग एक वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर नरेन्द्र मोदी का नाम आगे किया था, इससे ऐसा ही लगता है कि कांगे्रस बिलकुल भाजपा की तर्ज पर ही आगे बढ़ रही है। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो कांगे्रस आज भाजपा की राह का अनुसरण करती हुई दिखाई दे रही है। कांगे्रस की वर्तमान रणनीति के बारे में अध्ययन किया जाए तो यही कहना तर्कसंगत होगा कि वह गुजरात के विधानसभा चुनाव और राजस्थान में हुए उपचुनावों में मिली सफलता के बाद बेहद उल्लासित है। इसी कारण कांगे्रस को भविष्य में ऐसा लग रहा है कि अन्य राजनीतिक दल भी उसका साथ देना पसंद कर सकते हैं। यही कारण है कि आज कांग्रेस महागठबंधन की रणनीति अपना कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाना चाहती है। कांगे्रस प्रवक्ता द्वारा ऐसी घोषणा करने के बाद देश में राजनीतिक प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही था। जहां राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी ने राहुल के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को समर्थन देने वाले बयान दिए हैं, वहीं समाजवादी पार्टी पूरी तरह विरोध में आ गई है।

सपा अखिलेश यादव को मोदी के विकल्प के रुप में देख रही है, वहीं राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं ने अपने आपको कभी हां तो कभी ना की स्थिति में रखा है। इस सबसे एक बात स्पष्ट रुप से सामने आ रही है, भाजपा के विरोध में सभी एक मत हैं। लेकिन अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने के लिए अभी से खीचतान की स्थिति बनती हुई दिखाई दे रही है। वैसे अन्य राजनीतिक दल इस बात से सशंकित भी हैं कि कांगे्रस के साथ उनका उत्थान नहीं हो सकता। पिछले चुनावों के दौरान कांगे्रस के साथ जिसने भी समझौता किया, वह आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। बिहार, तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश इसका उदाहरण है। वैसे राजनीतिक स्थिति की बात यह है कि गत लोकसभा चुनाव के बाद कांगे्रस ने कोई भी उपलब्धि प्राप्त नहीं की है। राहुल की राजनीतिक उपलब्धियों में केवल एक पंजाब की ही जीत है, लेकिन उसके साथ लगभग दो दर्जन हार भी हैं। इसके बाद भी कांगे्रस राहुल को राजनीतिक योद्धा के रुप में प्रस्तुत करने की भूल कर रही है। इससे यह भी पता चलता है कि कांगे्रस जहां भी खड़ी है, वह स्थान जनता को तो दिखाई दे रहा है, लेकिन कांगे्रस केवल आंख बंद कर उसे ही अपनी उपलब्धि बता रही है। जो विनाश काले विपरीत बुद्धि का ही उदाहरण कहा जा सकता है।

Updated : 6 Feb 2018 12:00 AM GMT
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