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मालदीव में आपातकाल का संकट

एशिया महाद्वीप में आने वाले मालदीव में राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय के बीच पैदा हुए संकट के बाद अंतत: राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने आपातकाल की घोषणा कर दी। इसके साथ ही मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम, मोहम्मद नसीद और मुख्य न्यायाधीश अली हमीद को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व राष्ट्रपति श्री गयूम 2008 में देश का पहला लोकतांत्रिक चुनाव होने से पहले 30 साल तक मालदीव के राष्ट्रपति रहे। इसके बाद गयूम विपक्ष के साथ थे और अपने सौतेले भाई वर्तमान राष्ट्रपति को अपदस्थ करने के लिए अभियान चला रहे थे। उनके साथ ही न्यायिक प्रशासन विभाग के प्रशासक को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। मालदीव में आपातकाल लगाना वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की तानाशाही को ही उजागर करने वाला दिखाई दे रहा है। मालदीव में आपातकाल लगाए जाने के पीछे का कारण केवल इतना ही है कि पूर्व राष्ट्रपति कुछ लोगों के साथ मिलकर अब्दुल्ला यामीन के विरोध में अभियान चला रहे थे।

इनके विरोध में सर्वोच्च न्यायालय में प्रकरण भी चल रहा था। प्रकरण के निर्णय में न्यायालय ने सभी विपक्षियों को रिहा करने का आदेश दिया था। इस रिहाई के आदेश के बाद ही राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और इस कारण रिहा होने के आदेश के बाद भी वह रिहा नहीं हो सके। राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन ने सरकारी टेलीविजन पर आपातकाल लगाए जाने की घोषणा किए जाने के बाद एक वक्तव्य में कहा कि इस कठिन घड़ी में नागरिकों के कुछ अधिकार सीमित रहेंगे। सामान्य आवाजाही, सेवाएं और व्यापार प्रभावित नहीं होंगे। हालांकि देश में लगाए गए आपातकाल के आदेश की अवधि अभी स्पष्ट नहीं है। मालदीव में आपातकाल लगाना भले ही वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को सही लग रहा हो, लेकिन विदेशों में इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हो रही है। प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि आपातकाल के माध्यम से सत्ता द्वारा मानवीय अधिकारों का हनन किया जाता है। इसी के साथ सत्ता के विरोधियों के मंसूबे ध्वस्त करने का रास्ता तैयार किया जाता है। वास्तव में आपातकाल निरंकुशता को बढ़ावा देता है। वर्तमान राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल लगाना भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा कहा जा सकता है। मालदीव में लम्बे समय से सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रपति के बीच रस्सा कसी जैसा खेल चल रहा था, जिसमें कई बार राष्ट्रपति ने न्यायालय की आलोचना भी की थी। वर्तमान स्थिति में विपक्ष राजधानी माले की सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा है और सैनिकों को संसद भवन के पास तैनात किया गया ताकि सांसदों को रोका जा सके। आपात काल लगाने से पहले राष्ट्रपति यामीन ने पूर्व में अदालत को भेजे गए पत्र में कहा था कि न्यायालय के आदेश ने राज्य की शक्तियों में अतिक्रमण किया है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा और जनहित का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने कई भेजे गए पत्रों का उचित जवाब नहीं दिया।

आपातकाल के बाद यामीन ने विपक्षियों को छोड़ने से मना कर दिया है। इस गंभीर स्थिति की वजह से मालदीव के नागरिकों के अलावा देश में मौजूद सैलानियों से लेकर दूसरे मुल्कों की सरकारें तनाव में हैं। अमेरिका ने आपातकाल लगाने के मालदीव सरकार के फैसले पर निराशा और चिंता जताते हुए राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन से कानून का पालन करने और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की अपील की है। अमेरिका ने कहा कि राष्ट्रपति, सेना और पुलिस सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में विफल रही, जो संविधान और कानून के शासन के खिलाफ है। मालदीव में आपातकाल लगने के बाद संभावना व्यक्त की जा रही है कि अमेरिका मालदीव पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई कर सकता है, ऐसा होता है तो मालदीव में और भी संकट की स्थिति पैदा हो सकती है।

Updated : 7 Feb 2018 12:00 AM GMT
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