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स्वामी स्वरूपानंद जी के सच्चे बोल

स्वामी स्वरूपानंद जी के सच्चे बोल
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जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा है कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के बजाय राष्ट्र पुत्र कहा जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। शंकराचार्य जी का कथन एक दम सही ही है, क्योंकि पुरातन काल से दिव्य भूमि भारत को यहां की संतति ने मां का दर्जा दिया है और स्वयं महात्मा गांधी ने भी परतंत्रता के काल में भारत माता की जय बोला था, इसलिए यह स्वयं प्रमाणित हो जाता है कि महात्मा गांधी भी भारत को माता का दर्जा देते थे। कोई भी व्यक्ति अपनी मां का पिता नहीं हो सकता। यह बात भी सही है कि भारत का निर्माण महात्मा गांधी ने नहीं किया था। महात्मा गांधी के पहले भी भारत देश था। इसलिए महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहना पूरी तरह से अनुचित ही है। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपधि किसने और कब दी थी, इसका कोई वैधानिक प्रमाण भी न तो सरकार के पास है और न ही संविधान में हैं। हालांकि देश के कुछ नागरिकों द्वारा सूचना के अधिकार के अंतर्गत इस बात की जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया तब भी केवल व्यक्तिगत तौर पर किए गए संबोधन में ही राष्ट्रपिता कहने की बात दिखाई देती है। गांधी जी को प्रथम बार महात्मा की उपाधि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ने 12 अप्रैल 1919 को दी थी। इसके लम्बे समय बाद 4 जून 1944 को सिंगापुर रेडियो से सुभाषचंद्र बोस ने देश का पिता कहकर संबोधित किया था। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या होने के बाद देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर भारत राष्ट्र को संबोधित किया और कहा कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे। राष्ट्रपिता शब्द के बारे में केवल इतनी ही जानकारी मिलती है।

उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी को यह शब्द भारतीय संविधान बनने से पूर्व ही दिया गया था, इसलिए इसे आज भी संवैधानिक प्रामाणिकता नहीं है। हम यह जानते हैं कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपिता अहमद शाह अब्दाली और संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपिता जार्ज वाशिंगटन और पाकिस्तान के राष्ट्रपिता की तर्ज पर ही महात्मा गांधी को इस शब्द से पुकारा गया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के बारे में सभी जानते हैं कि वे विश्व के दर्शन से ज्यादा प्रभावित थे, भारतीय संस्कृति विश्व के दर्शन से ज्यादा प्रभावी होने के बाद भी राष्ट्रपिता की मान्यता देने में विश्व के देशों का अनुकरण करना सही नहीं कहा जा सकता। भारतीय संस्कृति में कहा भी गया है कि 'माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या' अर्थात यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं। यह पूरी तरह से प्रामाणिक है कि जो भूमि हमारा पालन करती है, वह मां के समान होती है और भारत भूमि ने ही हमारे जीवन को पुष्पित और पल्लवित किया है, इसलिए सनातन काल से मान्यता प्राप्त भारत माता की हम सभी संतानें हैं, फिर क्यों महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा गया। जब हम गांधी जी को महात्मा कहते हैं तो हमारे मन में स्वाभाविक रुप से एक श्रेष्ठ संत की छवि का दर्शन दिखाई देता है। नि:संदेह महात्मा गांधी श्रेष्ठ संत हैं, इसलिए उनके मन में भारतीयता का विचार प्रमुख रुप से विद्यमान होगा ही। संत जीवन भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण भी होता है, ऐसे में किसी भी संत में यह बात कभी नहीं आ सकती कि वे किसी के पिता भी हो सकते हैं। इसलिए जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने जो कहा है वह एक दम सही ही कहा जाएगा। महात्मा गांधी भारत के पुत्र ही हो सकते हैं, पिता नहीं।

Updated : 9 Feb 2018 12:00 AM GMT
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