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गंभीर बीमार को इच्छा मृत्यु का हक



सर्वोच्च न्यायालय ने इच्छा मृत्यु की मांग को स्वीकार करते हुए व्यक्ति को सम्मान से मरने का अधिकार दिया है। हालांकि इसमें एक बात और भी निहित है कि यह केवल उस स्थिति में ही लागू होगी, जब व्यक्ति की गंभीर बीमारी के चलते जीने की इच्छा समाप्त हो जाए या व्यक्ति लम्बे समय तक कोमा जैसी बीमारी झेल रहा हो। जिस बीमारी का किसी भी उपचार से ठीक होना असंभव है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति अगर जीवन के मूल्य को समझकर सावधान हो जाए तो स्वाभाविक तौर पर ऐसे मरने की इच्छा नहीं होगी। यह सच है कि जीवन और मरण केवल भगवान के हाथ में है। किसी व्यक्ति में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह किसी को पैदा कर सके या किसी को मार सके। यहां तक कि एक स्वस्थ व्यक्ति को स्वयं का जीवन समाप्त करने का भी अधिकार नहीं है और यह भी एक अपराध की श्रेणी में ही आता है। जीवन भगवान की वह अनमोल देन है, जिसकी लगाम केवल भगवान के ही हाथ में होती है।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि मरणासन्न व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह कब अपनी आखिरी सांस ले, लोगों को सम्मान से मरने का पूरा अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय उस याचिका पर आया है, जिसमें कहा गया था कि जिस प्रकार से व्यक्ति को अपना जीवन स्वयं की इच्छानुसार व्यतीत करने का अधिकार है, उसी प्रकार व्यक्ति को मरने की भी इच्छा मिलना चाहिए। इस अधिकार के अंतर्गत व्यक्ति लिविंग विल लिखित दस्तावेज लिख सकता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए। जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है, ऐसी स्थिति में उसके साथ क्या किया जाए, यह मरीज पहले से ही लिखित में दे सकता है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 11 अक्टूबर को इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। पांच न्यायाधीशों की बेंच ने इसी बारे में फैसला सुनाया। जिसमें यह भी कहा गया है कि अब कोई मरणासन्न व्यक्ति लिविंग विल के माध्यम से अग्रिम रूप से बयान जारी कर यह निर्देश दे सकता है कि उसके जीवन को जीवन रक्षक प्रणाली का प्रयोग का उपयोग करके लम्बा नहीं किया जाए। एनजीओ कॉमन कॉज ने 2005 में इस मसले पर याचिका दाखिल की थी। कॉमन कॉज के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को लिविंग विल बनाने का अधिकार होना चाहिए। प्रशांत ने स्पष्ट किया कि वह इस बात की वकालत नहीं कर रहे, जिसमें लाइलाज मरीज को इंजेक्शन दे कर मारा जाता है, वह इसकी बात कर रहे हैं, जिसमें कोमा में पड़े लाइलाज मरीज को जीवन रक्षक प्रणाली से निकाल कर मरने दिया जाता है।

Updated : 10 March 2018 12:00 AM GMT
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