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सपा-बसपा का मजबूर मिलन

सपा-बसपा का मजबूर मिलन
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भारत की राजनीति में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए कभी कभी ऐसे दृश्य भी देखने को मिल जाते हैं, जो असंभव माने जाते हैं। इस राजनीतिक अस्तित्व के खेल में यह भी ध्यान नहीं रहता कि सामने वाली संस्था ने उसको समाप्त करने के लिए क्या नहीं किया? अब उत्तरप्रदेश के लोकसभा उपचुनाव को ही लीजिए। वहां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में जो समझौता हुआ है, वह महज राजनीतिक मजबूरी ही कही जाएगी। यह बात सही है कि एक समय बसपा प्रमुख मायावती का राजनीतिक अस्तित्व समाप्त करने के लिए सपा ने पूरी योजना बना ली थी, लेकिन एन समय पर भाजपा की सक्रियता के चलते आज मायावती जीवित हैं।

आज मायावती ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के वशीभूत होकर उसी समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर असैद्धांतिक राजनीति का परिचय दिया है, जो केवल मायावती की स्वार्थ सिद्धि का परिचायक ही कहा जा सकता है। यह सब कवायद भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए ही की जा रही है। मायावती ने भी साफ शब्दों में इस बात के संकेत दिए हैं कि भाजपा को रोकने के लिए ही वह सपा को समर्थन दे रही हैं। यहां यह सवाल अवश्य उठ रहा है कि भाजपा को यह राजनीतिक दल क्यों रोकना चाह रहे हैं। पहली बात तो यह हो सकती है कि जिस प्रकार से भाजपा ने राजनीतिक भ्रष्टाचार रोकने की पहल की है, उससे सपा और बसपा को बहुत हानि उठानी पड़ी है। भले ही यह दल इस बात को खुलकर स्वीकार नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह सत्य है कि बहुजन समाज पार्टी के अनेक नेता आज सरकारी सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए जोर लगा रहे हैं।

मायावती का यह कदम भी ऐसा ही लग रहा है। इससे ऐसा भी लगता है कि मायावती सत्ता की सुविधा के बिना राजनीति नहीं कर सकतीं। इसी प्रकार सपा की भी अपनी मजबूरियां हैं, वह भी अपने क्रियाकलापों को तब तक अंजाम नहीं दे सकते, जब तक भाजपा सत्ता में है। सवाल यह भी है कि सपा और बसपा भले ही एक दो सीट पर भाजपा को पराजित कर दें, लेकिन पूरे देश में जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव फैलता जा रहा है, वह इस बात का संकेत तो अवश्य कर ही रहा है कि आज देश भाजपा जैसे दल को ही सत्ता सौंपना चाह रहा है। हालांकि उत्तरप्रदेश के इस राजनीतिक मिलन को भाजपा कोई चुनौती नहीं मानती है। क्योंकि यह पूरी तरह से बेमेल गठबंधन है। गोरखपुर की सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व फूलपुर की सीट उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की प्रतिष्ठा से जुड़ी है। यह बात जरुर है कि अगर सपा-बसपा ने भाजपा को पटखनी दे दी तो फिर उनके बीच आगे गठबंधन की संभावना बनेगी और दूसरे राज्यों में कई दल अगले विधानसभा चुनावों व फिर लोकसभा चुनावों में गठबंधन की तरफ आगे बढ़ेंगे।

Updated : 12 March 2018 12:00 AM GMT
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