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संस्कृति से जुड़ा साहित्य लेखन आवश्यक : पराड़कर जी

संस्कृति से जुड़ा साहित्य लेखन आवश्यक : पराड़कर जी
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चर्चा के दौरान बताए कंबोडिया यात्रा के जीवंत अनुभव
अगर हम नहीं चेते तो मिट सकती है हमारी हस्ती

ग्वालियर|
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर ने कंबोडिया यात्रा के अनुभव बताते हुए कहा कि भारत में मंदिर बहुत हैं, लेकिन कंबोडिया की धरती पर विशाल मंदिर हैं। ऐसे मंदिर भारत में भी नहीं हैं। आजकल जो साहित्य लिखा जा रहा है, उसमें संस्कृति नहीं है, साहित्य मन से लिखा जाता है और मन की तैयारी तभी होती है, जब पूरी सांस्कृतिक जानकारी प्राप्त की जाए। आज संस्कृति से जुड़े लेखन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हम भाषणों में कहते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, लेकिन आज का सच यह है कि हमारी हस्ती मिट सकती है। उन्होंने यह बात स्वदेश परिवार के बीच एक चर्चा के दौरान व्यक्त की।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के नियमित कार्यक्रम के अंतर्गत की गई कंबोडिया यात्रा के बारे में श्री पराड़कर जी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि हमारे देश में यात्रा वृत्त के नाम पर केवल विदेशियों की चर्चा की जाती है, भारतीय मनीषियों की जानकारी न के बराबर है। उन्होंने कहा कि कंबोडिया ने संस्कृति को सुरक्षित रखा है। जैसे भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिन्ह है, वैसे ही कंबोडिया में राष्ट्रीय प्रतीक समुद्र मंथन है। इसका साक्षात्कार विमान से उतरते ही हो जाता है।

श्री पराड़कर जी कहते हैं कि कंबोडिया में आज कोई भी हिन्दू नहीं है, बौद्ध और मुस्लिम ही हैं। इसके बाद भी कंबोडिया में भारतीय दर्शन को प्रतिपादित करने वाली संस्कृति दिखाई देती है। भारत की सच्चाई और अच्छाई को हमारे पूर्वजों ने दूर-दूर तक पहुंचाया, इसके कारण कुछ देशों में भारतीयकरण दिखता है, लेकिन हम 80 प्रतिशत भारतीय नहीं रहे। हमारा पहनावा, खान-पान, बोलचाल सहित बहुत कुछ बदल गया है। वे कहते हैं कि हम पर यह थोपा गया कि अंग्रेजी के बिना काम नहीं चलेगा, यह हमारी भूल है। अंगे्रजी के बारे में सबसे बड़ा सच यही है कि ब्रिटेन, अमेरिका और राष्ट्रमंडल देशों के अलावा कहीं भी अंगे्रजी नहीं है। हम जो अंग्रेजी बोलते हैं, उसे वह नहीं समझ सकते। क्योंकि हमारी अंगे्रजी शुद्ध है, उनकी हमारी बोलियों जैसी है। सबकी अपनी भाषाएं हैं, हमारी भी है। साहित्यकार अपने देश की संस्कृति से जुड़कर अपना लेखन करें, जानकारी नहीं है तो सत्य जानकारी एकत्रित करें, गांव की बात करें।

श्री पराड़कर जी कहते हैं कि हमारे देश का चित्र कैसा है, हमारे देश में मंदिर हैं, राम के भी हैं तो रावण के भी हैं, लेकिन श्रीलंका में रावण का न तो कोई मंदिर ही है और न ही कोई पहचान। श्रीलंका में विभीषण को लोकदेवता माना गया है। इतना ही नहीं माता सीता जिस स्थान पर रहीं, उस स्थान को सत्य का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है। यहां तक कि वहां कसम खाने वाले को न्यायालय भी सही मान लेता है। हमारे देश में क्या हो रहा है, यह हमें सोचना होगा। हमारी संस्कृति क्या कहती है, इसका अध्ययन करना होगा, क्योंकि आज हम अपने आपको भूलते जा रहे हैं। चर्चा कार्यक्रम में श्री पराड़कर जी का स्वागत समूह संपादक अतुल तारे ने किया। अतिथियों का परिचय समूह प्रबंधक कल्याण सिंह कौरव ने दिया।

Updated : 17 March 2018 12:00 AM GMT
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