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अवसरवादी राजनीति का एक और प्रयास



देश में एक बार फिर से तीसरे राजनीतिक मोर्चे की कवायद तेज होती दिखाई देने लगी है। पहले देश में कांग्रेस को हराने के लिए तीसरा मोर्चा बनता रहा है, जिसकी परिणति कोई खास परिणामकारी नहीं रही। वास्तव में तीसरा मोर्चा केवल स्वार्थी राजनीति का एक ऐसा खेल है, जो अपने आपको अस्तित्व में रखने के लिए ही खेला जाता है। प्राय: भानुमती के पिटारे की तर्ज पर बनाए जाने वाले इन मोर्चों में यही दिखाई देता है कि इन राजनीतिक दलों का सिद्धांतों के प्रति समर्पण नहीं होता, इसी कारण से यह मोर्चे बार-बार असफल होते रहे हैं। अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल की राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाली ममता बनर्जी ने नई दिल्ली में तीसरा मोर्चा बनाने के जो प्रयास किए हैं, वे महज राजनीतिक ही कहे जा सकते हैं। इसके अलावा कुछ नहीं। विपक्षी राजनीतिक दल वर्तमान में इस बात को भली भांति जान चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी का जिस प्रकार से विस्तार होता जा रहा है, उससे अकेले लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि देश में विपक्षी दल कहीं न कहीं बहुत ही कमजोर हैं, जो संगठन शक्ति के माध्यम से एकता का प्रदर्शन करना चाह रहे हैं। हालांकि यह बात सच है कि अपने आपको राजनीतिक अस्तित्व की धारा में बनाए रखने के लिए देश के विपक्षी दल समाज में फूट डालने का काम भी लम्बे समय से करते रहे हैं, जिसके कारण उन्हें त्वरित राजनीतिक लाभ भी मिलता रहा है, लेकिन वर्तमान के राजनीतिक हालात ऐसे नहीं हैं।

लोकसभा चुनावों के लिए तीसरे मोर्चे की कवायद एक चुनावी रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है। इस राजनीतिक मोर्चे की कवायद भी उन्हीं नेताओं के द्वारा ही की जा रही है, जो प्रभावी भूमिका में नहीं है। इससे एक सवाल यह आ रहा है कि यह तीसरा मोर्चा वास्तव में भाजपा को रोकने के लिए किया जा रहा है या फिर कांगे्रस के अस्तित्व को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए किया जा रहा है। क्योंकि अभी के राजनीतिक हालातों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि भले ही तीसरा मोर्चा बन जाए, लेकिन इसमें क्षेत्रीय दल ही प्रभावी भूमिका में रहेंगे। ऐसे में कांगे्रस को इन सभी क्षेत्रीय दलों के सहारे ही अपने उत्थान का मार्ग तलाशना होगा। कुल मिलाकर यह क्षेत्रीय दल कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरियों का भी लाभ उठाने का भरपूर प्रयास करेंगे। हम यह भी जानते हैं कि देश को बेमेल राजनीतिक गठबंधनों के कारण बहुत नुकसान हुआ है। अगर यह तीसरा मोर्चा बनता है तो कितना सफल रहेगा, यह अभी से नहीं कहा जा सकता, लेकिन पहले जो कुछ हुआ है, इससे यही कहा जा सकता है कि देश अब खिचड़ी सरकार को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है।

Updated : 29 March 2018 12:00 AM GMT
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