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पलायन की राह पर धन्नासेठ

पलायन की राह पर धन्नासेठ
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केंद्र सरकार के लिए एक बड़े झटके वाली खबर है कि देश के धन्नासेठ बड़ी संख्या में देश छोड़ रहे हैं। पिछले चौदह सालों में देश के करीब साठ हजार धनी लोगों ने दूसरे देशों की नागरिकता ले ली है। चिंता की बात ये है कि सिर्फ 2014 से 2017 के बीच ही 23,000 लोगों ने देश छोड़ा है। नीरव मोदी, विजय माल्या, ललित मोदी, मेहुल चौकसी ऐसे नाम हैं, जिनको भगोड़े के रूप में आज पूरा देश जानता है। इन धनकुबेरों पर हजारों करोड़ के घपले के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए अन्य देशों में भाग जाने का आरोप है। लेकिन अगर बात उन धनकुबेरों के बारे में की जाये, जिन्होंने पिछले कुछ सालों में कारोबारी वजहों से देश छोड़ दिया है, तो सिर्फ 2017 में ही ऐसे 7,000 लोगों ने दूसरे देश की नागरिकता ले ली है।

न्यू वर्ल्ड वेल्थ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स (एनएनडब्लूआई) द्वारा अपना देश छोड़कर दूसरे देशों को अपना ठिकाना बनाने की बात पूरी दुनिया में देखी जाती है। लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत और चीन में ये प्रवृत्ति सबसे ज्यादा देखी जा रही है। भारत जैसे देश में, जहां सरकार लंबे समय से विदेशी बैंकों में पड़े भारतीय नागरिकों के पैसे को वापस भारतीय अर्थव्यवस्था में लाने की कोशिश कर रही है, वहां देश के धन्नासेठों का पलायन एक बड़ा ही गंभीर विषय है। सरकार की कोशिश विदेश में पड़े काले धन को भी भारत वापस लाने की रही है। ये एक अहम चुनावी मुद्दा भी बनता रहा है। लेकिन, देश में पैसा कमाने वाले धनिकों का देश छोड़ना एक रिवर्स ट्रेंड की ओर इशारा करने लगा है। मोर्गन स्टेनली इनवेस्टमेंट मैनेजमेंट के इमर्जिंग मार्केट एंड ग्लोबल स्ट्रैटेजी विभाग ने भी दुनिया भर में चल रहे धन्नासेठों के पलायन पर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक संख्या के मामले में धन्नासेठों के अपना देश छोड़ने के सर्वाधिक मामले चीन के हैं, जहां से 2014 से 2017 के बीच लगभग 38,000 धनिकों ने दूसरे देशों को अपना ठिकाना बना लिया। जबकि 23,000 की संख्या के साथ भारत इस सूची में दूसरे स्थान पर है। लेकिन अगर धनिकों की कुल संख्या और पलायन करने वालों की संख्या का अनुपात देखा जाये तो भारत 2.1 फीसदी के साथ सबसे ऊपर है, जबकि फ्रांस से 1.3 फीसदी और चीन से 1.1 फीसदी धन्नासेठों ने पलायन किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के पहले भारत से विदेश की ओर काले धन का प्रवाह ज्यादा था, लेकिन 2014 में केंद्र की सरकार बदलने के बाद ये ट्रेंड बदल गया है। अब देश में कारोबार कर पैसा कमाने वाले नवधनाढ्यों का एक वर्ग विदेश को अपना ठिकाना बनाने लगा है। देश में भ्रष्टाचार विरोधी प्रावधानों को कड़ा किया जाना इसकी एक बड़ी वजह है। खासकर कालेधन पर रोक लगाने के लिए मौजूदा सरकार ने जो कदम उठाये हैं, उसकी वजह से भी देश के धनिकों का बड़ा वर्ग अपने पैसे की सुरक्षा को लेकर ज्यादा सतर्क हुआ है। नोटबंदी और दिवालिया कानून में किये गये बदलाव से भ्रष्ट तरीकों का अनुपालन कर पैसा कमाने वाले नवधनाढ्यों पर काफी असर पड़ा है और इसी वजह से वे भारत छोड़कर ऐसे देश की नागिरकता ले रहे हैं, जहां का कानून उन्हें तुलनात्मक रूप से ज्यादा संरक्षण देता है। देश की अर्थव्यवस्था के लिए ये ट्रेंड अच्छा नहीं माना जा सकता है। क्योंकि जितने भी धन्नासेठ भारत छोड़ रहे हैं, उनके साथ ही उनकी पूंजी भी भारत से अन्य देशों में चली जा रही है। ऐसे में उस पूंजी के निवेश से होने वाले लाभ से तो भारत वंचित हो ही रहा है, अर्थव्यवस्था से उतनी पूंजी भी निकल जा रही है। यह ट्रेंड अगर लंबा खिंचा तो इससे देश में नकदी की उपलब्धता पर भी असर पड़ सकता है।

हालांकि अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग इसे चिंताजनक बात नहीं मानता। इनलोगों का कहना है कि भारत से जितने धन्नासेठ पलायन कर रहे हैं, उससे कहीं अधिक संख्या में अरबपति देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ रहे हैं। एक दशक पहले तक देश से बाहर जाने वाली प्रतिभाओं (ब्रेन ड्रेन) का ट्रेंड भी हाल के वर्षों में बदला है। देश में उच्च शिक्षा पाकर विदेश में बसने वाले भारतीयों की बड़ी संख्या पिछले पांच सालों में विदेश में अर्जित आय के साथ वापस भारत लौटी है और ये संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके अलावा विकास के नये आयामों से भी देश में नवधनाढ्यों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यदि 2.1 फीसदी सुपर रिच लोग देश छोड़ भी दें, तो इससे अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर नहीं पड़ेगा। सुपर रिच श्रेणी में शामिल लोगों के लिए अपना देश छोड़कर अन्यत्र बसने की प्रक्रिया एक वैश्विक प्रक्रिया है। न्यू वर्ल्ड वेल्थ की रिपोर्ट को ही देखें तो पिछले साल जहां 7000 भारतीयों ने दूसरे देशों की नागरिकता ली, वहीं चीन के दस हजार सुपर रिच लोगों ने दूसरे देशों को अपना ठिकाना बनाया। इसी तरह तुर्की से छह हजार, ब्रिटेन और फ्रांस से चार-चार हजार तथा रूस से तीन हजार लोगों ने अपना देश छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता ली। इस प्रक्रिया में तबतक कुछ भी गलत नहीं है, जबतक कि देश छोड़ने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई आपराधिक अभियोग न हो। संयुक्त राष्ट्र संघ भी ‘लोगों के जीवनयापन करने के अधिकार’ शीर्षक वाले अपने परिपत्र में स्पष्ट कर चुका है कि किसी भी देश का नागरिक उस दूसरे देश में बसने के लिए स्वतंत्र है, जहां का कानून उसे वैधानिक रूप से वहां बसने और जीवनयापन करने की अनुमति देता हो। जहां तक बात देश छोड़ने वाले धनिकों की है, तो अमूमन हर देश दूसरे देश के सुपर रिच लोगों का अपने देश में स्वागत करता है, ताकि उस व्यक्ति की पूंजी का लाभ उस देश की अर्थव्यवस्था को मिल सके।

मोर्गन स्टेनली इनवेस्टमेंट मैनेजमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक देश छोड़ने वाले धनी भारतीयों ने सबसे ज्यादा इंग्लैंड, दुबई और सिंगापुर को अपना ठिकाना बनाया है। इसके अलावा कनाडा, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड को भी भारत के कई धन्नासेठों ने अपना ठिकाना बनाया है। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि भारतीय कामगार रोजगार के लिए जहां अमेरिका को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं, वहीं अपना ठिकाना बदलने वाले धन्नासेठ अमेरिका की तुलना में अन्य देशों को ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसा करने की एक बड़ी वजह अपने कारोबार का मनचाहा विस्तार करना ही होता है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था पहले से ही सुदृढ़ होने की वजह से वहां पर बाहर से आकर बसने वाले कारोबारियों को उतनी सुविधा और छूट नहीं मिलती, जितनी की विकासशील देशों में मिलती है। इनमें से कई कारोबारी देश छोड़ने के बाद भी अपने भारतीय कारोबार को जारी रखते हैं, लेकिन उनकी कंपनी को होने वाले फायदे पर टैक्स का फायदा भारत की जगह उस देश को मिलता है, जहां कारोबारी का मूल ठिकाना होता है। मतलब ऐसे लोग कमाई तो भारत में करते हैं, लेकिन उसका लाभ दूसरे देश को मिलता है।

किसी भी देश के फानेंशियल सेक्टर में धन्नासेठ या एचएनडब्लूआई उन लोगों को माना जाता है, जिनके पास कम से कम एक मिलियन डॉलर (6.51 करोड़ रुपये) का लिक्विड एसेट हो। लिक्विड एसेट का मतलब नकद या ऐसी परिसंपत्ति है, जिसे बिना विलंब के नकदी में तब्दील किया जा सके। भारत मे दिसंबर 2017 तक ऐसे धन्नासेठों की संख्या 3,30,400 आंकी गयी है। इस मामले में दुनियाभर में भारत नौवें स्थान पर है। वहीं मल्टी मिलेनियर्स यानी पचास मिलियन डॉलर (लगभग 325 करोड़) के लिक्विड एसेट वालों की संख्या भारत में 20,730 है, जबकि बिलेनियर्स की संख्या अपने देश में 119 आंकी गयी है। ये वे लोग हैं जिनका लिक्विड एसेट एक अरब डॉलर (लगभग 651 करोड़ रुपये) से अधिक है।



- योगिता पाठक, लेखिका आर्थिक विषय की वरिष्ठ पत्रकार हैं और द फाइनेंशियल एक्सप्रेस की पूर्व एसोसिएट एडिटर हैं)

Updated : 30 March 2018 12:00 AM GMT
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