अगर बेसन नहीं संता तो पकौड़ा कैसे बंता...
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प्रदीप चौबे ने अपनी काव्य रचनाओं से गुदगुदाया श्रोताओं को
ग्वालियर, न.सं. महाराष्ट्र समाज द्वारा रविवार को महाराष्ट्र समाज भवन जयेन्द्रगंज में होली मिलन कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य आकर्षण ख्याति प्राप्त हास्य कवि प्रदीप चौबे की काव्य रचनाओं की प्रस्तुति रही।
कार्यक्रम का शुभारंभ स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे एवं ब्रहन्महाराष्ट्र मंडल ग्वालियर क्षेत्र के कार्यवाह लक्ष्मण बुचके ने मां सरस्वती पर दीप प्रज्जवलन एवं माल्यार्पण करके किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि कमलाकर बुचके ने की। प्रारंभ में कवि मोरेश्वर डोंगरे ने अपनी ‘मन का विश्वास’ काव्य रचना प्रस्तुत की-
नदी किनारे खड़े रहो, लहर कभी ना कभी तो आएगी।
नाला सूखा हो तो लहर क्या करेगी...।
सुश्री कुंदा जोगलेकर ने नववर्ष पर अपनी काव्य रचना सुनाई-
नववर्ष आने वाला है, स्वागत में फूलों से हम प्रीत सीख लें।
भवरों से सीखें संगीत, नया वर्ष है नए सिरे से हम रचें समय के गीत...।
इसके बाद बारी थी हास्य कवि प्रदीप चौबे की। उन्होंने हास्य और व्यंग्य से ओत-प्रोत काव्य रचनाएं और चुटकुले सुनाकर उपस्थित श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। श्री चौबे ने कहा-
एक चुनाव हारे उम्मीदवार ने हमसे पूछा, बताओ, वोटों व जूतों में क्या अंतर है? हमने कहा वोट पड़ते हैं, वह गिने जाते हैं, पर जूते...?
साली ने जीजा से कहा, जीजाजी मैं पास हो गई, मिठाई खिलाओ, जीजा ने कहा, जरूर खिलाऊंगा, और पास हो जाओ...।
संता ने कहा, जो हंसा, उसका घर बसा, मैंने पूछा, जिसका बसा, वह जिंदगी में दुबारा कभी हंसा..?
संता व बंता में क्या रिश्ता है? गहरा रिश्ता है! अगर बेसन नहीं संता तो पकोड़ा कैसे बंता...?
शेर शेरनी से नहीं डरता क्योंकि वह प्यार करता है, शादी नहीं करता, परंतु आदमी पत्नी से डरता है क्योंकि वह प्यार नहीं करता, केवल शादी करता है...।
कार्यक्रम का संचालन नितिन वालम्बे ने एवं आभार प्रदर्शन संजय जोशी ने व्यक्त किया। अतिथियों का स्वागत महाराष्ट्र समाज के अध्यक्ष अभय पाटील ने किया। इस अवसर पर जयंत शितोले, संजीव पोतनीस, निखिल गंधे, पंकज नाफड़े, निशिकांत सुरंगे सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।