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‘शब्द में लोकमंगल का अधिष्ठान होना चाहिए’

‘शब्द में लोकमंगल का अधिष्ठान होना चाहिए’
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हिन्दी साहित्य सभा ने उ.प्र. विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित को दिया स्व. श्रीमती उर्मिला मिश्रा राष्ट्रीय साहित्य सर्जक सम्मान

ग्वालियर|
मध्य भारतीय हिन्दी साहित्य सभा एवं माधव महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को नई सड़क स्थित राष्ट्रोत्थान न्यास के विवेकानंद सभागार में संभागीय साहित्यकार सम्मेलन आयोजित किया गया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष डॉ. हृदय नारायण दीक्षित को ‘स्व. श्रीमती उर्मिला मिश्रा राष्ट्रीय साहित्य सर्जक सम्मान’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजकिशोर वाजपेयी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्री नारायण सिंह कुशवाह, विशिष्ट अतिथि के रूप में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर, वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश तोमर एवं माधव महाविद्यालय के प्राचार्य मनोज चतुर्वेदी उपस्थित थे।

इस अवसर पर ‘साहित्य का सामर्थ्य’ विषय पर अपने उद्बोधन में उ.प्र. विधानसभा अध्यक्ष श्री दीक्षित ने कहा कि शब्द में लोक मंगल का अधिष्ठान होना चाहिए। उन्होंने निराला जी द्वारा रचित सरस्वती वंदना का उदाहरण देते हुए कहा कि यह वंदना देश के कोने-कोने में गाई जाती है, जो हमें नव चेतना और शक्ति प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि अनेक देशों में साहित्य का सृजन होता है किन्तु उसमें केवल मनोरंजन का भाव रहता है, जबकि भारतीय साहित्य में अनुष्ठान, आत्मीयता, अनुभूति, लोक मंगल समाहित होता है। इसके लिए उन्होंने ऋषि वशिष्ठ द्वारा रचित ऋचा ‘ॐ त्र्यंवकम यजामहे’ का उदाहरण देते हुए बताया कि लोग इस महामृत्युंजय मंत्र का जाप इस विश्वास के साथ करते हैं कि इससे अकाल मृत्यु टल जाती है। यही भारतीय साहित्य का सामर्थ्य है। साहित्य का सामर्थ्य सिद्ध करने के लिए उन्होंने श्रीरामचरित मानस, श्रीमद् भगवत गीता, वेद, उपनिषद, वंदेमातरम गीत आदि का भी उल्लेख किया।

मुख्य अतिथि नारायण सिंह कुशवाह ने अपने उद्बोधन में भारतीय ज्ञान व साहित्य को सहेजने के साथ उसे निरंतर बांटने पर जोर दिया। विशिष्ट अतिथि श्रीधर पराड़कर ने बंकिमचन्द चटर्जी की रचना वंदेमातरम का उदाहरण देते हुए कहा कि उनका यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन में सभी के लिए मंत्र बन गया, जिसने पूरे देश में संजीवनी फूंक दी। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य की चुनौतियों को छोड़ें और उसकी सामर्थ्य को पहचानकर रचना करें, जिससे रचनाकार की सार्थकता सिद्ध होगी और जिनके लिए रचना लिखी गई है, उनका भी जीवन सफल होगा।

प्रारंभ में अतिथियों ने मां सरस्वती एवं स्व. श्रीमती उर्मिला मिश्रा के चित्र पर दीप प्रज्जवलित किया। अतिथियों का स्वागत जगदीश तोमर, संजय जोशी, सुधीर चतुर्वेदी, अखिलेश शर्मा, उपेन्द्र कस्तूरे ने किया, जबकि अतिथियों को स्मृति चिन्ह कुसुम भदौरिया, ज्योत्सना सिंह, अविनाश साहू ने भेंट किए। उद्घाटन सत्र के दौरान हिन्दी साहित्य सभा की पत्रिका इंगित एवं साहित्य परिक्रमा का विमोचन भी किया गया। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. सोनिया सिंह ने एवं आभार प्रदर्शन संजय जोशी ने तथा विषय प्रवर्तन मंदाकिनी शर्मा ने किया।
काव्य गोष्ठी के साथ हुआ समापन
साहित्यकार सम्मेलन का समापन काव्य गोष्ठी के साथ हुआ। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता राजकिशोर वाजपेयी ने की, जबकि मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सुरेश सम्राट थे। इस अवसर पर दतिया, गुना, शिवपुरी, मुरैना, श्योपुर, ग्वालियर आदि स्थानों से आए ओमप्रकाश श्रीवास्तव, जवाहरलाल द्विवेदी, रमासिंह, अखिलेश शर्मा, आर.एल. साहू, रामचरण चिड़ार, किंकरपाल सिंह जादौन, रामबरन ओझा, डॉ. कमला शंकर मिश्रा, उर्मिला सिंह तोमर, संजय जोशी, अमित चितवन, रमेश त्रिपाठी, अनंगपाल सिंह भदौरिया, वीरेन्द्र विद्रोही, रामप्रकाश अनुरागी, प्रकाश मिश्रा, डॉ. ज्योति उपाध्याय सहित 25 कवियों ने काव्य पाठ किया। आभार प्रदर्शन मंदाकिनी शर्मा ने किया। इससे पहले डॉ. पवनपुत्र बादल की अध्यक्षता एवं राजकिशोर वाजपेयी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित द्वितीय सत्र में अखिलेश शर्मा मुरैना, डॉ. रमासिंह गुना, ओमप्रकाश श्रीवास्तव दतिया, लोकेश तिवारी शिवपुरी सहित ग्वालियर के दिनेश पाठक, वंदना कुशवाह ने साहित्य का सामर्थ्य विषय पर अपने विचार रखे, जबकि संचालन शिवकुमार शर्मा ने किया। कार्यक्रम में साहित्यकार एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
जैसे थम गई घड़ी की सुई
एक राजनेता, जो चार बार विधायक रहे, जिन्होंने सार्वजनिक जीवन में कड़ा संघर्ष किया और उ.प्र. विधानसभा के अध्यक्ष बने। ऐसे हृदय नारायण दीक्षित जब साहित्य के मंच पर आए और तर्क संगत धारा प्रवाह उद्बोधन दिया तो सभागार में जैसे घड़ी की सुइयां थम सी गर्इं। सभागार में मौजूद लोग उनके शब्द प्रवाह में डूब से गए। श्री दीक्षित ने अपने उद्बोधन के दौरान ऋग्वेद से लेकर श्रीरामचरित मानस, श्रीमद् भगवत गीता, महा भारत से लेकर विभिन्न कवियों की रचनाओं का उल्लेख करते हुए जहां कई अनछुए पहलुओं को छुआ वहीं कई उदाहरणों के माध्यम से भारतीय साहित्य का सामर्थ्य सिद्ध किया। इस दौरान बीच-बीच में सभागार में तालियों की जो करतल ध्वनि गूंजती रही, वह यह सिद्ध करने के लिए काफी थी कि उनके द्वारा कही गई एक-एक बात आज के सार्वजनिक जीवन में कितना महत्व रखती है।

आर्यों के विदेशी होने का आम्बेडकर ने किया था खंडन
उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि सन् 1922 में जब देश में यह अभियान चला कि आर्य विदेशी हैं और उन्होंने भारत पर हमला कर यहां के मूल निवासियों को अपना गुलाम बना लिया था, जिसका डॉ. आम्बेडकर ने वैदिक साहित्य का उदाहरण देकर खंडन करते हुए कहा था कि आर्य बाहरी नहीं बल्कि इसी देश के मूल निवासी हैं। डॉ. आम्बेडकर ने अपनी राइटिंग एण्ड स्पीचेस पुस्तक में लिखा है कि आर्य यदि बाहर से आए थे तो वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों का वर्णन और उनके प्रति आत्मीय भाव क्यों है? कोई विदेशी इस तरह नदियों भारत की नदियों के प्रति आत्मस्नेह संबोधन क्यों करेगा? डॉ आम्बेडकर ने आर्यों और मूल निवासियों के बीच रंग भेद का भी यह कहते हुए खंडन किया कि राम और कृष्ण गोरे नहीं थे। डॉ. आम्बेकडर ने यह भी माना था कि भारत में छुआछूत सदियों से नहीं है। इसकी शुरुआत लगभग दो हजार साल पहले हुई थी। श्री दीक्षित ने कहा कि संविधान बन जाने के बाद डॉ. आम्बेडकर ने साफ कहा था कि अब सामाजिक व आर्थिक आंदोलन का रास्ता उचित नहीं है। श्री दीक्षित ने सवाल उठाया कि डॉ. आम्बेडकर को मानने वाले लोगों ने हाल ही में बसों, टेंपो, दुकानों में आग लगाई, सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया। क्या डॉ. अम्बेडकर ऐसा कर सकते थे? श्री दीक्षित ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर का विचार सूर्य की आभा जैसा है। उनके विचार को पूरे प्रवाह के साथ जहां तक पहुंचना चाहिए था, वहां तक पहुंचा नहीं।

Updated : 15 April 2018 12:00 AM GMT
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