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धारा 498ए पर पुनर्विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

धारा 498ए पर पुनर्विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट दहेज उत्पीड़न से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत महिला के पति और उसके रिश्तेदारों को तुरंत गिरफ्तार करने से रोकने के संबंध में जारी अपने पहले के फैसले पर पुनर्विचार करेगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षा वाली तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि 498ए को दंतविहीन करना महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ प्रतीत होता है। कोर्ट ने कहा कि पहले का उसका फैसला विधायी क्षेत्राधिकार का मामला है। कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र का पक्ष जानने के लिए 29 अक्टूबर तक का समय दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के आदेश में पाया था कि महिला के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा हिंसा या मौत की स्थिति तक लाने के मामले का दुरुपयोग बढ़ गया है। इसी दुरुपयोग से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए थे। इस दिशानिर्देश के मुताबिक हर जिले में डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा परिवार कल्याण कमेटी गठित की जाएगी। अगर पुलिस को ऐसी कोई शिकायत मिलती है तो उसे पहले इस कमेटी द्वारा पड़ताल किया जाएगा। कमेटी पक्षकारों से बात कर एक महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी। जब तक ये रिपोर्ट नहीं मिलती तब तक किसी की भी गिरफ्तारी नहीं होगी। इस रिपोर्ट पर जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट विचार करेगा और फैसला लेगा।

अगर कुछ मामलों में दोनों पक्षों के बीच सुलह की गुंजाइश बनती है तो इसकी सूचना डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज या दूसरे वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी को दी जाएगी जो इस बारे में फैसला करेंगे कि केस बंद किया जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशानिर्देश में कहा था कि अगर याचिकाकर्ता या उसके वकील को एक दिन की पूर्व सूचना देते हुए जमानत अर्जी दी जाती है तो उस पर उसी दिन फैसला किया जाना चाहिए। दहेज के कुछ सामानों की बरामदगी जमानत न देने का आधार नहीं हो सकती है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल के दौरान अभियुक्त के परिवार के हर सदस्य या बाहर रहनेवाले सदस्य की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होगी।

Updated : 13 Oct 2017 12:00 AM GMT
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