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भगवान के वचन परम औषधि के समान

भगवान के वचन परम औषधि के समान
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-आचार्य विनम्र सागर ससंघ का पिच्छी परिवर्तन समारोह आज
ग्वालियर। जिनेन्द्र भगवान के वचनों का अभ्यास करना चाहिए क्योंकि जिनेन्द्र भगवान के वचन परमात्मा के ध्यान के कारण हैं। बिना ज्ञान के परमात्मा का ध्यान संभव नहीं है, इसलिए सदैव जिनेन्द्र भगवान के वचनामृत का सेवन करते रहना चाहिए। जिनेन्द्र भगवान के वचन औषधि के समान होते हैं, जो विषय वासनाओं में अरुचि उत्पन्न करने वाले हैं और अमृत के तुल्य हैं। जन्म और मरण रूपी रोग को हरने वाले हैं तथा सर्व दु:खों का क्षय करने वाले हैं। जिनेन्द्र भगवान की वाणी रूपी औषधि जन्म जरा और मरण रूपी महारोगों को नष्ट करने के लिए रामबाण के समान है, इसलिए उन वचनों का नित अभ्यास करना चाहिए।

यह विचार आचार्य विनम्र सागर महाराज ने सोमवार को जैन स्वर्ण मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि भगवान का ध्यान करने से मन, वचन और कार्य की प्रवृत्ति निर्मल होती है। मन अशुभ प्रवृत्तियों से बचता है। आत्मबल बढ़ता है। चारित्र की वृद्धि होती है। इसी प्रकार जो मन, वचन एवं कार्य की शुद्धि पूर्वक धर्म ध्यान का अभ्यास करता है, वह भी परमात्मा के ध्यान में स्थित होता है और उसके भी कर्मों का क्षय होता है। आचार्यश्री ने कहा कि स्वर्ण को तपाने से उसका मैल नष्ट हो जाता है और वह शुद्ध हो जाता है। उसी प्रकार तप त्याग करने, चरित्र पालन करने, संयम धारण करने से कर्म रूपी मैल हमारी आत्मा से अलग हो जाता है और आत्मा शुद्ध अवस्था को प्राप्त कर लेती है।

चातुर्मास के प्रवक्ता सचिन आदर्श कलम ने बताया कि आचार्य विनम्र सागर महाराज ससंघ का चतुर्मास का समापन 24 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे जैन स्वर्ण मंदिर से गाजे-बाजे के साथ होगा। दोपहर एक बजे से पिच्छी परिवर्तन समारोह होगा।

Updated : 24 Oct 2017 12:00 AM GMT
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