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मुस्लिम देश सऊदी में योग की जय-जय



इस्लाम को जन्म देने वाली भूमि, मुसलमानों की उद्गम भूमि सऊदी अरब ने शुद्ध वैदिक, सनातनी व हिंदू अवधारणा (कंसेप्ट) योग को एक खेल के रूप में मान्यता दे दी है। प्राचीन व प्रागैतिहासिक विश्वगुरु रहे भारत व हिंदुत्व हेतु यह एक छोटी सी घटना है किंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य के भारतीय सामाजिक ताने बाने हेतु यह एक अनुकरणीय दृष्टांत है। एक आधिकारिक शासकीय घोषणा में सऊदी अरब ने न केवल योग को एक खेल के रूप में मान्यता दी है बल्कि योग को शरीर विज्ञान का अद्भुत ज्ञान पुंज बताते हुए इसकी महिमा भी वर्णित की है। सऊदी के इस आदेश के तहत अब सऊदी अरब में योग के शिक्षण प्रशिक्षण, प्रचार, योग शिविर लगाने व इसके मेडिकल व्यावसायिक स्वरूप को भी मान्यता दे दी है। जब उधर इस्लाम के तीर्थ में योग के प्रसंशा गीत और स्वीकार्यता के आदेश लिखे जा रहे थे तब इधर भारत में भारतीय मुस्लिम झारखंड में योग की लानत मलामत कर रहे थे। झारखंड की राजधानी रांची में मुस्लिम समुदाय के लोग एक मुस्लिम लड़की राफिया नाज और उसकी मासूम बेटी के खून के प्यासे हो गए थे क्योंकि वह योग सिखा रही थी। राफिया के योग करने और बच्चों को योग सिखाने से चिढ़े मुस्लिम युवाओं के एक समूह ने राफिया नाज और उसकी बेटी को बलात्कार और कत्ल की धमकी देते हुए योग बंद करने का फतवा दे दिया।

विशुद्ध इस्लामिक देश सऊदी अरब में योग को एक खेल के तौर पर आधिकारिक मान्यता दे दी है, और अब वहां लाइसेंस लेकर योग सिखाया जा सकेगा। नोफ मारवाई नामक एक महिला ने ही सऊदी अरब में अभियान चलाकर योग को मान्यता दिलाई है। नोफ मरवाई को ही सऊदी अरब की पहली योग प्रशिक्षक का दर्जा भी मिल गया है। प्रश्न यह है कि जब इस्लाम के जन्म की धरती सऊदी अरब सहित कई मुस्लिम देश योग को अपना रहें हैं तो फिर भारतीय मुल्ला, मौलवियों और फतवेबाजों को योग से क्या आपत्ति है! स्पष्ट है कि यह आपत्ति योग से नहीं बल्कि भारतीयता से है। यह भी स्पष्ट है कि भारतीय मुस्लिम समाज के तथाकथित नेता भारत के इस्लाम को तनिक सा भी प्रगतिशील, शिक्षित व सुसंस्कृत होते हुये नहीं देखना चाहता। तभी तो सऊदी अरब में योग की स्वीकार्यता के सच को झूठलाते हुए, सच से मूंह छुपाते हुए और कुतर्क करते हुए देवबंद के उलेमा का कहना है कि सऊदी हुकूमत ने स्कूलों में वर्जिश को अनिवार्य किया है। योग तो शिर्क (गलत) है, इसलिए वहां की हुकूमत उसे कभी लागू नहीं कर सकती। फतवा आॅनलाइन के चेयरमैन मौलाना मुफ्ती अरशद फारूकी भी भारत में अनावश्यक वितंडा फैला रहें है और बेसुरा जहरीला व साम्प्रदायिक राग आलाप रहे है कि सऊदी अरब के स्कूलों में किसी चीज को अनिवार्य किया गया है वो योग नहीं बल्कि वर्जिश है और शरीयत के लिहाज से योग शिर्क (वर्जित) है और सऊदी अरब अपने यहां शिर्क को कभी लागू नहीं कर सकता। और आगे बढ़ते हुए सऊदी अरब के ज्वलंत सच को झुठलाते हुए उन्होंने कहा कि वर्जिश सही है, लेकिन योग इस्लामी नुकते नजर से गलत है, दुनिया के नक्शे में वो जो तब्दीलियां कर रहे हैं जरूरी नहीं की हम भी उन्हें माने। हम सिर्फ शरीयत को मानते और उसी पर चलते हैं, और शरीयत में योग की कोई गुंजाइश नहीं है। भारत में कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा भारतीय मूल्यों से हद दर्जे की घृणा करने और समाज में धार्मिक उन्माद का जहर फैलाने का यह कोई प्रथम अवसर नहीं है। कट्टरपंथी, धर्मान्थ और घोर हिंदू विरोधी मुस्लिम तत्व ऐसा अक्सर करते रहते हैं। ऐसा हर बार होता है कि भारतीय मुस्लिमों द्वारा, भारत की प्राचीनता, संस्कृति, धर्म व परम्पराओं से उपजी किसी भी बात को, कुतर्कों के आधार पर अनावश्यक ही शरीयत विरोधी सिद्ध कर दिया जाता है। आज परम आवश्यकता इस बात की हो गई है कि भारत का पढ़ा लिखा, सभ्य, प्रगतिशील मुस्लिम वर्ग इस बात को समझें व इन कट्टरपंथी, तर्कहीन, अशिक्षित, लट्ठमार मुसलमानों से स्वयं को अलग करके भारत में एक नई इबारत लिखने हेतु आगे बढ़े। भारतीय मुस्लिमों के शिक्षित वर्ग को योग ही नहीं बल्कि हर विषय में, इन कट्टरपंथियों से यह बात पूछना चाहिए कि उन्हें योग से घृणा या भारतीय संस्कृति से? आज सऊदी अरब ने विशुद्ध वैदिक विचार, योग को स्वीकार्यता देकर भारतीय मुस्लिमों के समक्ष एक सकारात्मक पहल प्रस्तुत कर दी है। अब भारतीय मुस्लिम कट्टरपंथियों के फतवों व उन्मादित बातों में न आयें व योग को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर प्रेम, सौहाद्र व सद्भाव का एक उदाहरण प्रस्तुत करे। आज जब योग को सम्पूर्ण विश्व स्वीकार कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा धरती के सबसे लम्बे व दीर्घ दिन 21 जून को विश्व योग दिवस की मान्यता मिल चुकी है, तब भारतीय मुस्लिमों द्वारा योग का विरोध करना कुए के मेंढक बने रहने जैसा ही कहलायेगा और उनके घोर धर्मांध होने व धर्म के नाम पर अनावश्यक ही हर भारतीय विचार के विरोधी होने की एक ज्वलंत प्रतीक घटना भी बन जायेगी।
अमेरिकी नागरिक डेविड फ्राली ने सऊदी अरब द्वारा योग को स्वीकार किये जाने के संदर्भ में भारत के मुस्लिम समुदाय व ईसाई समुदाय से बड़ा ही सटीक प्रश्न किया है कि जब समूचा विश्व योग को एक आयुर्विज्ञान विषय मान रहा है तब केवल भारत के मुस्लिम ही इसका विरोध करते क्यों दिखलाई पड़ रहे हैं?

भारतीय मुस्लिम जगत में योग को लेकर तब ही विरोध के स्वर सामने आ गये थे जब पहली बार विश्व भर मे 21 जून 2015 को योग दिवस प्रतिष्ठा पूर्वक मनाया गया था। भारतीय मुस्लिम योग के धार्मिक न होने के तथ्य को नरेन्द्र मोदी के उस कथन से भी समझ सकते हैं जो उन्होंने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में कहा था कि - योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह योग केवल व्यायाम के बारे में नहीं है, अपितु अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। मोदी के इस कथन के बाद 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी। भारत के इस योग के प्रस्ताव को विश्व समुदाय ने मात्र 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया, जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। आज विश्व के 177 देशों में योग को वैधानिक मान्यता मिली हुई है।

आशा है योग की अन्तराष्ट्रीय मान्यता, योग के आयुर्वैज्ञानिक महत्त्व, इसकी सहज, नि:शुल्क उपब्धता व महात्म्य को देखते हुए भारतीय मुस्लिमों में से ही शिक्षित मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग योग को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करके इस्लाम को प्रगतिवाद के मार्ग पर अग्रसर करेगा।

Updated : 18 Nov 2017 12:00 AM GMT
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